इंदौर : सानंद न्यास द्वारा डीएवीवी के खंडवा रोड स्थित सभागृह में आयोजित मराठी नाट्य स्पर्धा में संस्था “पथिक” इंदौर ने अद्वैत दादरकर लिखित हास्य नाटक ‘मास्तर ब्लास्टर’ का मंचन किया। नाटक का निर्देशन सतीश श्रोत्री ने किया।नेता पुत्र के बिगड़ैल बेटे को सुधारने की कवायद में एक मूल्यों पर चलने वाला मास्टर भी किस तरह रास्ता भटककर गलत राह पर चला जाता है, इसका मनोजरंजक चित्रण नाटक में देखने को मिला।
ये था नाटक का कथानक।
महाराष्ट्र के एक गांव का विधायक तानाजी खराडे पैसे से बहुत अमीर है और राजनीति में उसका रुतबा है। इस विधायक का एक बिगड़ा हुआ 23 साल का बेटा श्यामसुंदर बरसों से 10 कक्षा में फेल होता आ रहा है। तानाजी अपने इस नालायक बेटे को प्रायव्हेट ट्यूशन के लिए किसी योग्य शिक्षक की तलाश में रहते है। महानगर मुम्बई निवासी योग्य और सिंद्धान्तवादी शिक्षक महेश साने, जो एक सरकारी स्कूल में प्रधान अध्यापक हैं, उनके विद्यार्थियों का परीक्षा परिणाम हर वर्ष 100% रहता है, से तानाजी अपने बेटे को पढाने का अनुरोध करते हैं। सरकारी स्कुल के प्राचार्य होने के कारण उन्हें व्यक्तिगत रूप से ट्यूशन लेने की अनुमति नहीं होती, इस लिए वे प्रायव्हेट ट्यूशन देने में अपनी असमर्थता जताते हैं, इस पर तानाजी अपने राजनैतिक रसूख और पैसों के बल पर साने सर को अपने बिगड़ैल बेटे को पढानें के लिए दबाव बनाते हैं। साने सर अपने 40 वर्ष की उम्र में भी ब्रम्हचारी जीवन व्यतीत कर रहे होते हैं। उनके घर प्रतिदिन उन्हीं की एक कुंवारी विद्यार्थिंनी अमृता देशपांडे नियमित खाने का टिफिन ले कर आती है। साने सर उसी के कहने पर श्यामसुंदर को पढानें की जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं। अब श्याम की पढ़ाई शुरू होती है लेकिन उसे पढ़ाई में जरा भी दिलचस्पी नहीं होती है। इस लिए वो सीधे सादे, भोले भाले साने सर को आपनी बुरी आदतों के साथ शामिल करने की कोशिशों में जुट जाता है। यहीं से सारा दृश्य बदलने लगता है। जिस शिक्षक पर बिगड़ैल छात्र को नैतिक मूल्यों की शिक्षा देकर सही राह पर लाने की जिम्मेदारी होती है, वही उस छात्र की बुरी आदतों का शिकार होने लगता है। श्याम, साने सर के यहां पढ़ने के लिए आता था लेकिन पढ़ने के बजाय खिड़की में खड़े होकर दुर्बीन से सामने वाली बिल्डिंग में औरतों को ताका करता था। शुरुआत में साने सर ने श्याम को उसकी पसंद के हिसाब से अर्थात मोबाइल-फेसबुक-व्हाट्सएप के जरिए पढानें की कोशिश की लेकिन अपनी बुरी आदतें जैसे तमाखू, शराब, मोबाइल चेटिंग आदि की वजह से श्याम का पढ़ाई में मन नहीं लगता था। दुर्बीन से औरतों को ताकने की गंदी आदत के कारण मंगलाबाई का घरवाला मद्रासी अन्ना, साने सर और श्याम को उनके घर आकर मारने की धमकियां देकर जाता है, फिर भी श्याम की आदतों में कोई सुधार नहीं आता। है। श्याम एक बार साने सर से नाचने वाली मंजूळा बाई का तमाशा-लावणी नृत्य देखनें चलने की जिद करता है, साने सर उसकी बातों में आ कर चले भी जाते हैं और फिर दोनों शराब पीकर घर आते हैं। इतना ही नहीं तमाशे में नाचने वाली मैनावती को भी श्याम अपने प्रेमजाल में फंसा लेता है। मैनावती श्याम को ढूंढते हुए साने सर के घर आ जाती है, उसी समय श्याम के पिता तानाजी भी सर के घर आते हैं। मैनावती को वहां देखकर वे चौक जाते हैं और श्याम से माफी की याचना करने लगते हैं। श्याम तुरंत समझ जाता है कि उसके पिता का भी मैनावती के साथ चक्कर है। श्याम अपने पिता को ब्लैकमेल करने की कोशिश करनें लगता है, लेकिन “अंत भला तो सब भला”…श्याम के परीक्षा का परिणाम आता है और वह उसमें उत्तीर्ण हो जाता है। श्याम को अपनी सारी बुरी आदतों का एहसास होता है। वो साने सर और अपने पिता को अपनी बुरी आदतें छोड़ सुधरने का वचन देता है। इस तरह से नाटक का सुखांत होता है।
कमाल की रही संवाद अदायगी और टाइमिंग।
हास्य नाटकों में संवाद अदायगी के साथ टाइमिंग बेहद मायने रखता है। सही समय पर मारा गया सही पंच दर्शकों की भरपूर दाद ले जाता है। इस नाटक में ऐसे कई पंच थे जिन्होंने हाल में मौजूद दर्शकों को ठहाके लगाने पर मजबूर कर दिया। अंत तक दर्शक नाटक का लुत्फ उठाते रहे।
कलाकारों का आपसी तालमेल, संवाद अदायगी, मुद्रा व आंगिक अभिनय देखने लायक थे।
ये थे कलाकार और उनके किरदार।
साने सर की भूमिका में नीलमाधव भुसारी और श्याम की भूमिका में संजीव दिघे की जबरदस्त जुगलबंदी देखने को मिली। दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करने में दोनों की अग्रणी भूमिका रही। तानाजी की भूमिका में ललित कुलकर्णी ने अपने मंजे हुए कलाकार होने का परिचय दिया। अमृता की भूमिका में श्रीमती सारिका आपटे ने पहली बार मंच पर अपने अभिनय की बानगी पेश की। मद्रासी अन्ना की भूमिका में सागर शेंडे ने अपने दमदार अभिनय किया। मंजुळाबाई की भूमिका में श्रीमती विपुला श्रीवास्तव की लावणी नाटक का उजला पक्ष रही। मैनावती की शोख भूमिका में श्रीमती शुभदा केकरे उम्दा ने अभिनय किया। नाटक में सतीश श्रोत्री की निर्देशकीय पकड़ साफ झलक रही थी। नाटक में
नेपथ्य – नंदकिशोर बर्वे
प्रकाश योजना – अविनाश शिवनकर, संगीत योजना – रुपेश आपटे, रंगभूषा – राहुल प्रजापति और वेशभूषा – श्रीमती स्वाति श्रोत्री की थी जो कथानक का प्रभाव बढ़ाने में सहायक रही।
कुल मिलाकर पथिक की प्रस्तुति ‘मांस्तर ब्लास्टर हास्य का ब्लास्टर डोज दर्शकों को देने में कामयाब रही।