🔺 12 फीसदी छात्रों के मन में आया खुदकुशी का विचार
🔼 95 फीसद विद्यार्थी ऑनलाइन अध्ययन पद्धति -मंच के लिए नए, लगभग पूरे सप्ताह 6 से 10 घंटे तक अध्यनरत रहे।
🔼 93.4 फीसद विद्यार्थियों ने माना शिक्षा की गुणवत्ता में समझौता हुआ है।
🔼 86 फीसद ने माना यह नयी शिक्षा प्रणाली अत्यंत उत्तेजक एवं तनावपूर्ण है।
🔼 75 फीसद विद्यार्थियों ने कोविड-19 के दौरान मानसिक तनाव अनुभव किया।
🔼 35-37 फीसद विद्यार्थी (माध्यमिक शिक्षा) उच्च स्तर के तनाव से ग्रस्त रहे।
🔼 70 फीसद माइग्रेन, गर्दन और पीठ में दर्द, आंखों पर दबाव आदि के शिकार रहे।
🔼 85 फीसदी विद्यार्थी ऑनलाइन मूल्यांकन से भी असंतुष्ट हैं।
🔹कीर्ति राणा, इंदौर
कोरोना के बढ़ते प्रभाव और स्कूल-कॉलेजों में फिजिकल डिस्टेंसिंग पालन के चलते शुरु हुई ऑनलाइन एजुकेशन को स्टूडेंट-पालकों ने स्वीकार तो कर लिया, लेकिन इस नई तरीके वाली पढ़ाई के अब नकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं।कोरोना के तीव्र प्रभाव के दौरान विद्यालयों के बंद होने एवं सामाजिक दृष्टि से एकाकीपन ने विद्यार्थियों के जीवन पर अतिरिक्त तनाव और दबाव डाला है।इतना ही नहीं कोविड-19 महामारी ने विद्यालयीन प्रणाली में असमानताओं को और अधिक व्यापक बना दिया है।यह तथ्य आईआईएम इंदौर की प्रोफेसर डॉ सुरभि दयाल द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आए हैं।
डॉ दयाल ने कोविड महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा पद्धति के प्रभाव को समझने के लिए एक सर्वेक्षण किया। यह सर्वेक्षण विद्यार्थियों की सीखने की प्रक्रिया और उनके हितों को ध्यान में रखकर किया गया है। ये विद्यार्थी या तो सम्पन्न शिक्षण संस्थानों में अध्यनरत हैं या हाई स्कूल के विद्यार्थी हैं जो पेशेवर संस्थानों में प्रवेश पाने के इच्छुक हैं। ऑनलाइन क्लासेस से जुड़े छात्रों के आंकड़ों के संग्रह हेतु एक विशेष प्रश्नोत्तरी तैयार की गयी जिसमें विद्यार्थियों की पृष्ठभूमि, ऑनलाइन शिक्षण के अनुभव और जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव आदि प्रश्न शामिल थे। चर्चा में डॉ सुरभि दयाल में बताया कि इस सर्वेक्षण 95 फीसद विद्यार्थी ऑनलाइन अध्ययन पद्धति-मंच के लिए नए हैं और वे लगभग पूरे सप्ताह अध्यनरत रहे। प्रतिदिन औसतन 5-6 घण्टे एवं 10 फीसद विद्यार्थी नौ से दस घण्टे तक ऑनलाइन अध्ययन कर रहे है। 93.4 फीसद विद्यार्थियों का मानना है की ऑनलाइन अध्यन पद्धति की वजह से शिक्षा की गुणवत्ता में समझौता हुआ है ! यह आकंड़ा इंगित करता है की एक ओर विद्यार्थी पारम्परिक शिक्षा प्रणाली का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं तो दूसरी ओर वे ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करने के लिए अधिक समय देने के लिए मजबूर हैं।
86 फीसद विद्यार्थियों ने माना कि ऑनलाइन मंच पर घर के आरामदायक वातावरण से बात कर सकते हैं परन्तु फिर भी यह नयी शिक्षा प्रणाली उनके लिए अत्यंत उत्तेजक एवं तनावपूर्ण है।यह तनाव विद्यार्थियों में ऑनलाइन शिक्षण एवं अध्ययन की प्रकिया के प्रति असंतुष्टि, शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता करने और सामाजिक एकाकीपन को अपने साथ ला रही है।
75 फीसद विद्यार्थियों ने कोविड-19 के दौरान मानसिक तनाव अनुभव किया। यह उन पहले किये गए अध्ययनों के विपरीत है जिनमें भारत में माध्यमिक शिक्षा में केवल 35-37 फीसद विद्यार्थी उच्च स्तर के तनाव से ग्रस्त रहे।70फीसद विद्यार्थी माइग्रेन, गर्दन में दर्द, पीठ में दर्द और आंखों पर दबाव इत्यादि स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं के शिकार रहे। यह तनाव का उच्च स्तर एवं अन्य स्वास्थ्य समस्याएं उन विद्यार्थियों के लिए अधिक चेतावनी कारक है जो पहले से ही किसी प्रकार के कमजोर/खतरनाक दौर से गुज़र रहे हैं । इस रिपोर्ट के अनुसार जो विद्यार्थी व्यावसायिक एवं प्रतिष्ठित संस्थानों में अध्यनरत है उनमें स्कूली विद्यार्थियों की तुलना में तनाव का स्तर उच्च है। क्योंकि उन्हें एक और ऑनलाइन प्रणाली के साथ समायोजन करना है और दूसरी और कोविड महामारी की वजह से घर वापस जाने के कारण नए तरीके से परिवार के साथ तालमेल बैठाना है।
प्रतिभागियों ने अपने शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक कल्याण को प्रभावित करने के लिए ऑनलाइन शिक्षण के दबाव, सामाजिक संपर्क पर प्रतिबंध, भावनात्मक समर्थन की अनुपलब्धता इत्यादि को जिम्मेदार बताया। 12 फीसद प्रतिभागियों ने माना कि कोरोना काल और एकाकीपन के चलते उनके मन में आत्महत्या संबंधी विचार भी आए। यही नहीं आधे से ज्यादा उत्तरदाता इस महामारी की वजह से अपने जीवन और व्यवसाय में अनिश्चितता महसूस कर रहे हैं।
कुल मिलाकर 85फीसदी विद्यार्थी ऑनलाइन मूल्यांकन से भी असंतुष्ट हैं।उनका मानना है कि ऑनलाइन प्रारूप में धोखाधड़ी करना आसान है, जिन विद्यार्थियों में तकनीकी दक्षता है वो अनुचित लाभ उठा रहे हैं तथा इंटरनेट कि अनिश्चितता उन्हें हानि पंहुचा रही है।
इस शोध में पाया गया कि कोविड-19 ने छात्रों के मानसिक, भावात्मक और शारीरिक सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। डॉ. दयाल का सुझाव है कि परिवार के सदस्यों और शिक्षकों को बच्चों के व्यवहार में किसी भी तरह के बदलाव के प्रति अत्यंत संवेदनशील ओर सचेत रहने की आवश्यकता है । उनका दायित्व है कि वे उनकी समस्याओं को बिना रेखांकित किये समझें ओर उन्हें भावनात्मक सहयोग एवं विश्वास प्रदान करें ताकि जरुरत पड़ने पर बच्चे उनसे मदद माँगने में सहज महसूस करे। परिवार ही ऐसे कठिन समय में भावनात्मक सम्बल देकर उनके दवाब को कम करने में काफी मदद कर सकते हैं।