स्मृति शेष : योगेश देवले
🔻कीर्ति राणा ।
मेरा योगेश देवले से सरे राह परिचय हुआ था, उन दिनों मैं उज्जैन पदस्थ था। एक दोपहर स्कूटर से कोठी रोड की तरफ जा रहा था। एक हाथ से गाड़ी का हैंडल थाम रखा था, दूसरे हाथ में नमक लगा जाम (अमरुद) था। गाड़ी की स्पीड कम ही थी। उसी रास्ते पर सड़क किनारे खरामा खरामा घुंघराले बाल, बोलती सी आंखों वाला युवक जा रहा था। उसने तो कहा नहीं, मैंने अपनी आदत के मुताबिक स्कूटर नजदीक ले जाकर रोका। पूछा कहां जा रहे हो, बोला यूनिवर्सिटी। मैंने कहा बैठ जाओ, मैं भी उसी तरफ जा रहा हूं।
उसने पूछा आप मुझे जानते हैं क्या? मैंने कहा नहीं, मैं भी उसी तरफ जा रहा हूं, सीट खाली थी इसलिए तुम से पूछ लिया। बातचीत में उसने अपना नाम योगेश देवले और शास्त्रीय संगीत से लगाव बताया। मैंने कहा भास्कर के लिए संगीत कार्यक्रमों की रिपोर्टिंग कर सकते हो।उसने झिझकते हुए कहा मुझे अखबार के लिए लिखना नहीं आता। मैंने कहा वो मुझ पर छोड़ो। शाम को ऑफिस आ जाओ घड़ीवाला कॉम्प्लेक्स पर। वो शाम को ऑफिस आ गया, बॉडी लेंग्वेज बता रही थी किसी अखबार के दफ्तर में पहली बार आगमन हुआ है।वही झिझक, वही मासूमियत और वही साफगोई कि मैंने कभी लिखा नहीं, लिखना नहीं आता। मैंने समझाया तुम्हें सात सुरों की समझ है ना, रोज गायन की रियाज करते हो ना, आरोह-अवरोह तो जानते हो ना। बस इसी आधार पर लिख दिया करो।
अब उसका सवाल था, आप तो काफी कुछ जानते हैं, फिर मुझ से क्यों लिखवाना चाहते हैं। मैंने कहा शाम को तुम फ्री रहते हो, शास्त्रीय संगीत की समझ है, आए दिन कार्यक्रम होते रहते हैं, सभी कार्यक्रम हम अटैंड नहीं कर पाते और फिर तुम रिपोर्ट लिखोगे तो वह अधिक तथ्यात्मक होगी। बड़े कलाकारों को सुनने-साक्षात्कार करने में ‘भास्कर’ के नाम से आसानी रहेगी। जिन कलाकारों के गायन-वादन की रिपोर्ट करोगे, उनसे तुम्हें भी कुछ सीखने को मिल सकता है।
मेरी बातों का योगेश पर असर हुआ और वह लिखने को राजी हो गया।उनके पिता भी नामचीन शास्त्रीय गायक रहे हैं।उनकी स्मृति में हर साल उज्जैन में समारोह आयोजित करने वाले योगेश एक बार मुझे भी इस समारोह में सम्मानित कर चुके थे।
उज्जैन में होने वाले आयोजन की खबर वह घर से लिख कर लाता, कई बार कार्यक्रम से सीधे ऑफिस आकर लिखता।मराठी भाषी होने से छोटी इ, बड़ी ई वाली मात्रा में गलती के साथ ही बाकी त्रुटियां शुरु में अधिक रहती थी। मैं रिपोर्ट रिराइट कर के उसे पढ़ने को देता।धीरे धीरे उसकी लेखन संबंधी त्रुटियां दूर होती गईं और भास्कर में संगीत समीक्षा योगेश देवले के नाम से प्रकाशित होने लगी। कई बार वह खुद फोन पर जानकारी देता गुरुदेव आज फलां कलाकार महाकाल दर्शन को आ रहे हैं या फलानी जगह संगीत कार्यक्रम है मैं कवर कर लूं क्या।
आज सुबह जब हार्ट अटैक से योगेश देवले के निधन की सूचना मिली तो दिल धक से रह गया।ऐसा ही कुछ दिन पहले टीवी स्टार सिद्धार्थ शुक्ला के निधन की सूचना से हुआ था। दोनों की मौत में बस एक ही समानता है कि सूचना मिली और मुंह से पहला शब्द यही निकला, अरे….! योगेश देवले की फनकारी से अभी देशव्यापी पहचान मजबूत हो ही रही थी कि उससे पहले मौत ने झपट्टा मार दिया। कुछ दिनों पहले बात हुई तो अपना निर्णय सुनाते हुए कहा गुरुदेव एक महीना मौन रहने वाला हूं। फेसबुक पर जब यह संकल्प लिखा तो मैंने कमेंट्स किया मौन रहने का संकल्प लेना जितना आसान है, मन से विचार से मौन रहना बेहद कठिन है।
जूनी इंदौर में शनैश्चर जयंती पर होने वाले संगीत समारोह में हाजिरी लगाने की इच्छा जाहिर की।मुख्य पुजारी-आयोजक (स्व) ओम तिवारी जी से बात भी हो गई लेकिन कोरोना ने बाधा डाल दी। जब भी बात होती मैं कहता गुरुदेव मत कहा करो, मैं इस काबिल नहीं और न ही मुझे संगीत के सा जितनी भी समझ है। पर वह कहा मानता था।वह शायद इसलिए कहता था कि उसे संगीत कार्यक्रमों को लिखने का अवसर दिया था, उसे क्या पता एक कलाकार के रूप में उसके प्रामाणिक लेखन से अखबार की भी तो प्रतिष्ठा बढ़ गई थी।