इंदौर : कोरोना काल के बाद इस बार त्योहारों की रौनक पुनः लौट आई है। सामाजिक, धार्मिक जुलूस निकलना प्रारंभ हो गए हैं। इसी के चलते मोहर्रम की दस तारीख को परंपरा का निर्वहन करते हुए शहर भर से ताज़िए व अखाड़े निकलकर राजवाड़ा का चक्कर लगाते हुए करबला पहुंचे। जगह – जगह ताजियों व अखाड़ों का इस्तकबाल किया गया।
शाही शानों शौकत के साथ निकला सरकारी ताजिया।
मोहर्रम पर निकलने वाला सरकारी ताजिया आकर्षण का केंद्र रहता है।इसे मन्नत का ताजिया भी कहा जाता है।होलकर रियासत काल से शुरू हुई सरकारी ताज़िए की परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है। मंगलवार को इमामबाड़े से उठा सरकारी ताजिया राजवाड़ा का चक्कर लगाते हुए प्रिंस यशवंत रोड, मोतीतबेला, कलेक्टर कार्यालय के सामने से होते हुए करबला मैदान पहुंचा। उसके पीछे अन्य ताज़िए और अखाड़े भी करबला पहुंचे। शहर काजी इशरत अली भी सरकारी ताज़िए के साथ चलते हुए लोगों का अभिवादन कर रहे थे।
एकता और भाईचारे का प्रतीक है सरकारी ताजिया।
सरकारी ताजिया हमेशा से एकता और भाईचारे का प्रतीक रहा है। यही कारण है की बड़ी तादाद में हिंदू समुदाय के महिला – पुरुष भी इसके साथ चलते हैं। इसे मन्नत का ताजिया भी माना जाता है।इसी के चलते सरकारी ताजिया निकलने के दौरान महिलाएं अपने छोटे बच्चों को लेकर ताज़िए के नीचे से गुजरती नजर आई। उन्होंने अपने बच्चों के बेहतर भविष्य और घर – परिवार की खुशहाली की दुआ मांगी।
अखाड़ों के शेर रहे आकर्षण का केंद्र।
ताजियों के साथ चल रहे अखाड़ों के कलाकारों के करतब और शेर की वेशभूषा धारण किए युवा आकर्षण का केंद्र रहे। खासकर बच्चों का उन्होंने भरपूर मनोरंजन किया।