मिर्गी के होते हैं कई प्रकार, उसी के अनुरूप किया जाता है उपचार।
दी गई दवाइयों से नियमित सेवन से लगभग तीन साल में ठीक हो जाते हैं मिर्गी के मरीज।
अवर लाइव इंडिया. कॉम से चर्चा में बोली न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. मोनिका पोरवाल बागुल।
इंदौर : इंसान के शरीर में मस्तिष्क की सरंचना बेहद जटिल है। ऐसे में इससे जुड़ी बीमारियां और उनका निदान भी मुश्किल भरा होता है, हालांकि चिकित्सा विज्ञान की उत्तरोत्तर प्रगति के साथ मस्तिष्क संबंधी बीमारियों की पहचान, जांच और इलाज अब सुगमता से होने लगा है।
एपिलेप्सी याने मिर्गी मस्तिष्क से जुड़ी एक ऐसी बीमारी है जिसके मरीजों की तादाद हर साल बढ़ रही है। बच्चे हों या बड़े, महिला हो या पुरुष, किसी को भी ये बीमारी हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय मिर्गी दिवस के उपलक्ष्य में हमने मिर्गी की बीमारी से जुड़े लक्षण, कारण, बचाव और उपचार को लेकर एमजीएम मेडिकल कॉलेज से संबद्ध एमवाय अस्पताल की न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. मोनिका पोरवाल (बागुल) से चर्चा की।
मस्तिष्क में विद्युत तरंगों की असामान्य गतिविधि के कारण पड़ता है मिर्गी का दौरा।
डॉ. मोनिका पोरवाल (बागुल) ने बताया कि मस्तिष्क के किसी हिस्से में विद्युत तरंगों की असामान्य गतिविधि (न्यूरोनल डिस्चार्ज) के कारण मिर्गी के दौरे पड़ने लगते हैं। इसके चलते बेहोंशी छाना, शरीर में अकड़न व झटके आना, दांत भींचना, आंखे फेर लेना, मुंह तिरछा होना, मुंह से झाग आना, कपड़ों में ही लघुशंका का हो जाना जैसे प्रभाव शरीर में नजर आते हैं। कुछ मिनटों के अंतराल में यह झटके रुक जाते हैं और व्यक्ति की चेतना लौट आती है। होश में आने पर उनींदापन, सिरदर्द और घबराहट जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं।
लोग समझ लेते हैं ऊपरी बाधा।
डॉ. मोनिका ने बताया कि मिर्गी को लेकर आम लोगों में बहुत भ्रांतियां हैं। कुछ लोग इसे धुजनी समझ लेते हैं तो ग्रामीण क्षेत्रों में इसे ऊपरी बाधा समझकर लोग झाड़ – फूंक के चक्कर में पड़ जाते हैं जबकि जरूरत मिर्गी के मरीज को जल्द से जल्द उपचार मुहैया कराने की होती है।
इन कारणों से भी हो सकती है मिर्गी की बीमारी।
डॉ. मोनिका के अनुसार कई ऐसे अन्य कारण भी हैं जिनसे मिर्गी के दौरे पड़ सकते हैं जैसे :-
अनुवांशिक।
सिर पर चोट या आघात।
स्ट्रोक या मस्तिष्क में रक्तस्राव।
मस्तिष्क में संक्रमण या सूजन, जैसे मेनिनजाइटिस।
मस्तिष्क में ट्यूमर, अल्जाइमर।
ब्रेन में थक्के जम जाने से अथवा दिमाग की नस फटने से होनेवाला लकवा।
शराब या नशीले पदार्थों का अत्यधिक सेवन।
मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी होना।
ये कारक बढ़ाते हैं एपिलेप्सी की जोखिम :-
भूखे पेट रहना, नींद पूरी न होना।
शुगर का अत्यधिक कम या ज्यादा होना।
सोडियम का लेवल कम होना आदि।
मिर्गी के प्रकार :-
डॉ. मोनिका पोरवाल (बागुल)ने बताया कि मिर्गी के अनेक प्रकार होते हैं, उसी के अनुरूप उसका इलाज भी किया जाता है। जैसे
अचानक से चौंक जाना।
हाथ से किसी चीज का एकाएक छूट जाना।
हाथ मलने, होंठ अंदर – बाहर करने वाली मिर्गी।
बच्चों को बोर्ड पर लिखा समझ नहीं आना अर्थात अफसेंट माइंडेड होना।
खड़े – खड़े अचानक गिर जाना (ड्रॉप अटैक) आदि।
मिर्गी का दौरा पड़ने पर क्या करें, क्या न करे :-
डॉ. मोनिका ने बताया कि मिर्गी का दौरा पड़ने के बाद लगभग पांच से दस मिनट में झटके थम जाते हैं और मरीज होश में आ जाता है। ऐसे में इस तरह का कोई काम न करें जिससे मरीज की परेशानी में इजाफा हो जाए।
मरीज को जूता या प्याज न सुंघाएं।
दौरा पड़ने पर मरीज को कभी भी पैरों से उठाने और बेहोशी में पानी पिलाने का प्रयास न करें।
दांत भींचे हुए हों और दांतों में जबान फंस रही हो तो चम्मच या रूमाल आदि दांतों के बीच रखकर जबान को अंदर कर दें।
कमरे के दरवाजे – खिड़की खोल दें, पंखा चला दें और मरीज के कपड़े ढीले कर दें जिससे उसे सांस लेने में दिक्कत न हों।
मरीज को बायी करवट पर लिटाए, ताकि मुंह से निकलने वाला झाग फेफड़ों में न जाएं।
मरीज के होश में आते ही डॉक्टर से संपर्क करें और त्वरित इलाज करवाएं।
मिर्गी का परीक्षण :-
ईईजी, सिटी स्कैन, एमआरआई और ब्लड टेस्ट के जरिए मिर्गी के प्रकार की पहचान कर उसका समुचित इलाज किया जाता है।
मिर्गी का इलाज :-
डॉ. मोनिका ने बताया कि मिर्गी का इलाज संभव है। उसके प्रकार के अनुसार इलाज और उसकी अवधि तय होती है। कुछ अनुवांशिक मामलों में जीवनभर दवाइयां लेने की जरूरत पड़ती है अन्यथा ढाई से तीन साल नियमित दवाइयां लेने के साथ दौरा नहीं पड़ने पर धीरे – धीरे दवाइयां बंद कर दी जाती हैं और कुछ आवश्यक सावधानियां अपनाते हुए व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है। डॉ. मोनिका ने बताया कि वर्तमान में मिर्गी की कई कारगर दवाइयां उपलब्ध हैं, जिनके साइड इफेक्ट भी बहुत कम हैं। इनके जरिए मिर्गी के दौरे काफी हद तक नियंत्रित किए जा सकते हैं। जिन मरीजों को बार – बार दौरे पड़ते हैं और दवाइयों से भी नियंत्रित नहीं होते, उन्हें सर्जरी के जरिए ठीक किया जा सकता है। इसमें दिमाग के उस हिस्से का पता लगाया जाता है, जहां से असामान्य विद्युत तरंगे उत्पन्न होती हैं। उक्त हिस्से को ऑपरेशन करके हटा दिया जाता है जिससे मिर्गी के दौरे रुक जाते हैं।
न्यूरोसाइकोलॉजिकल परीक्षण।
डॉ. मोनिका पोरवाल बागुल ने बताया कि कई बार व्यक्ति में लक्षण मिर्गी जैसे दिखाई देते हैं पर उसका कारण मानसिक तनाव भी हो सकता है। ऐसे में न्यूरो साइकोलॉजिकल परीक्षण यह अनुमान लगाने में मदद कर सकते हैं कि मरीज को कोई मनोवैज्ञानिक समस्या है तो नहीं है, उसको देखकर फिर इलाज की दिशा तय की जाती है।