पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी के 300 करोड़ के आउटसोर्स मैनपॉवर टेंडर में कथित घोटाले की जांच ईओडब्ल्यू करेगी

  
Last Updated:  January 13, 2021 " 03:34 am"

इंदौर : पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी के 300 करोड़ के आउटसोर्स मैनपॉवर के टेंडर में कथित घोटाले की जांच ईओडब्ल्यू करेगी। भोपाल के एक आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा दायर याचिका पर सीजेएम भोपाल की अदालत ने ईओडब्ल्यू को जांच का आदेश देते हुए प्रतिवेदन पेश करने को कहा है।

भोपाल निवासी शिकायतकर्ता अवधेश भार्गव ने खुद इंदौर प्रेस क्लब में पत्रकार वार्ता कर ये जानकारी दी। उन्होंने बताया कि 2017 में पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी मप्र में 300 करोड़ के आउटसोर्स मैनपॉवर के टेंडर जारी हुए थे। उक्त टेंडर में पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी में जिन कम्पनियों को काम मिला था, उनमें प्राइम वन वर्कफोर्स प्रायवेट लि. , बीवीजी इंडिया लि., बालाजी सिक्योरिटी सर्विसेज प्रा. लि. और थर्ड आई सिक्युरिटी सर्विसेज प्रा. लि. इंदौर शामिल थे। इन कम्पनियों को पीएफ से राशि मिलती थी जो कर्मचारियों को देना होती है। इसी के साथ पीएम की योजना pmpry के तहत भी राशि मिलती थी, जिससे कर्मचारियों की भविष्यनिधि में राशि समायोजित की जा सके। हालांकि दोनों में से किसी एक योजना के जरिए ही राशि लेकर समायोजित करने का नियम है।

चारों ठेकेदार कम्पनियों ने किया घपला।

शिकायतकर्ता भार्गव ने बताया कि निविदा काल में इन कम्पनियों ने प्रथम दृष्टया 300 करोड़ के टेंडर में करोड़ों रुपयों का गबन किया है। सूचना के अधिकार में मिली जानकारी के बाद उन्होंने इस घोटाले की शिकायत पीएफ कमिश्नर से की। इसपर पीएफ के चार अधिकारियों के दल द्वारा घोटाले की जांच करने के बाद रिपोर्ट पेश की गई। इसके आधार पर पीएफ कमिश्नर ने इस मामले में विद्युत वितरण कम्पनी के अधिकारियों को सूचना पत्र लिखकर पूरे घोटाले की विस्तृत जानकारी दी, ताकि दोषी कम्पनियों पर कार्रवाई हो और गबन की गई राशि की वसूली हो सके। सम्बंधित कम्पनियों को भी पीएफ कमिश्नर ने नोटिस जारी किए थे। हैरानी की बात ये है कि विद्युत वितरण कम्पनी ने किसी भी ठेकेदार कम्पनी पर कार्रवाई नहीं की।

2019 में दोबारा इन कम्पनियों को टेंडर में विस्तार देकर वर्क आर्डर जारी कर दिए गए।जबकि चारों ठेकेदार कम्पनियों से वसूली की जाना थी और इन्हें काली सूची में डाला जाना था। विद्युत वितरण कम्पनी के तत्कालीन अधिकारियों की भूमिका पर भी शिक़ायतकर्ता ने सवाल खड़े किए। उनका कहना है कि अधिकारियों ने करोड़ों के घोटाले का खुलासा होने के बाद भी मामले को दबाए रखा। यदि पूरे प्रदेश में सभी कम्पनियों की 7 साल के कार्य की जांच की जाए तो यह घोटाला 2 हजार करोड़ को पार कर सकता है। इन ठेकेदार कम्पनियों ने पीएफ के जो चालान विद्युत वितरण कम्पनी में जमा किए वो फर्जी हैं। फोटोशॉप से एडिट कर याने सरकारी कागजों से छेड़छाड़ करते हुए राशि बदल दी गई। चालान में TRRN नम्बर तो एक है लेकिन राशि बदल दी गई है।
भार्गव के अनुसार उन्होंने पीएफ विभाग की वेबसाइट से निकाली तो पता चला की चालान में हेराफेरी की गई है। इस तरह कई कारनामें कर करोड़ों का चूना विद्युत वितरण कम्पनी पश्चिम क्षेत्र को लगाया गया। याने पीएफ की राशि हड़प ली गई। वहीं चालान में छेड़छाड़ कर pmpry योजना में आई राशि भी डकार गए। इस मामले में उक्त कम्पनियों को ब्लैक लिस्ट करने की जहमत भी विद्युत वितरण कम्पनी के अधिकारियों ने नहीं उठाई। कई कर्मचारियों पीएफ का लाभ समय पर नहीं मिल पाया। घोटाले की राशि का भार प्रदेश के बिजली उपभोक्ताओं पर पड़ा।

शिकायत कर्ता अवधेश भार्गव के अनुसार उन्होंने इस मामले में ईओडब्ल्यू में शिकायत की थी। वहीं सीजेएम की अदालत ने ईओडब्ल्यू को एफआईआर दर्ज कर जांच प्रतिवेदन पेश करने के आदेश दिए। ईओडब्ल्यू को इसके बाद आदेश की कापी के साथ उन्होंने पत्र दिया कि उक्त प्रकरण में धारा 156 3 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत एफआईआर दर्ज की जाए। भार्गव ने कहा कि बावजूद इसके अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं की गई है। इसके चलते वे हाईकोर्ट की शरण लेंगे।

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