अडानी की एक भी कंपनी देश के टॉप टेन करदाताओं में क्यों नहीं..?

  
Last Updated:  February 2, 2023 " 09:56 pm"

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से उठे सवालों पर संवाद कार्यक्रम में मुख्य वक्ता ने आयकर विभाग से किया सवाल।

इंदौर : हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट से उजागर हुई अडानी समूह की गड़बड़ियों के बाद भी देश का एक वर्ग गौतम अडानी का इस तरह बचाव कर रहा है जैसे अडानी देश का पर्याय हो। दुनिया के टॉप तीन रईसों में शामिल होने के बाद भी अडानी उद्योग समूह की एक भी कंपनी देश के टॉप टेन करदाताओं में शामिल नहीं थी। जब अडानी की संपत्ति आकाश छू रही थी तब देश का आयकर विभाग कहाँ सो रहा था ?

ये बात वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य जयशंकर गुप्त ने स्टेट प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश एवं अभ्युदय सांस्कृतिक मंच द्वारा “हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से उठे सवाल” विषय पर आयोजित संवाद कार्यक्रम में कही। उन्होंने कहा कि आम आदमी को छोटा सा लोन देने से पूर्व बैंकें एवं वित्तीय संस्थाएं इतनी बारीकी से जानकारी निकालती हैं कि वह परेशान हो जाता है। वहीं अडानी जैसे उद्योग समूहों को जाने किस दबाव में लाखों करोड़ का ऋण मिल जाता है। आज अडानी समूह पर लगभग उसकी सम्पत्तियों के बराबर ऋण है, फिर भी दुनिया के सबसे रईसों में कैसे गिना जा सकता है ? आज देश में मीडिया भी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट कैसे तैयार हुई इस पर बहस कर रहा है, जबकि बहस इस बात पर होना चाहिए कि रिपोर्ट में उठाए गए मुद्दों पर अडानी समूह का जवाब क्या है ? भारत सरकार को भी इन प्रश्नों के परिपेक्ष्य में अडानी समूह के संदर्भ में अपनी स्थिति स्पष्ट करना चाहिए। आज कोई राहुल गांधी की यात्रा में शामिल हो जाए तो देश की जांच एजेंसियां उसके पीछे लग जाती हैं, जबकि अडानी की किसी भी कारगुजारी पर जाँच एजेंसियों ने गौर नहीं किया। गुप्त ने कहा कि बड़े अफ़सोस कि बात है कि देश के हर बड़े घोटाले को उजागर करने में भारतीय मीडिया चूक जाता है। बोफोर्स, राफेल से लगाकर वर्तमान में अडानी तक, हर गड़बड़ी को उजागर करने का श्रेय विदेशी मीडिया को ही जाता रहा है। आज कुछ कंपनियाँ देश की सम्पत्तियों को लूटने में हर संभव रास्ता अख़्तियार कर रही हैं, लेकिन मीडिया खामोश है।

वरिष्ठ पत्रकार एवं संस्कृतिकर्मी आलोक बाजपेयी से संवाद करते हुए मीडिया की छवि “गोदी मीडिया” की बन जाने पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए गुप्त ने कहा आज सरकारों को देश के मीडिया पर नियंत्रण करते आ गया है। मीडिया मालिकों से सीधे सेटिंग, विज्ञापनों का दबाव एवं मीडिया समूह के अन्य उद्योगों को टारगेट करने जैसे हथियारों से मीडिया पर नियंत्रण कर लिया गया है। एक ज़माने में बात उठी थी कि झुकने के लिए कहा तो रेंगने लगे, लेकिन आज मीडिया संस्थानों की’ स्थिति ऐसी हो गई है कि वे स्वतः बिना कहे ही रेंगने लगे हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार कमिटेड ब्यूरोक्रेसी, ज्यूडिशयरी आदि के जरिए पूर्ण नियंत्रण चाहती है, यहाँ तक कि केबिनेट तक बेअसर हो गई है। धीरे -धीरे सभी संवैधानिक संस्थाओं को निष्प्रभावी कर, किसी भी विरोध की संभावना को ही समाप्त कर लंबे समय तक निष्कंटक राज्य का सपना है। अपनी ही प्रेस काउंसिल का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि पहले सरकार ने सात महीने तक काउंसिल का अध्यक्ष घोषित नहीं किया और अधिकांश कार्यकाल निकल जाने के बाद भी लोकसभा अध्यक्ष ने अपने कोटे के तीन सदस्य मनोनीत नहीं किए हैं। उन्होने कहा कि देश कि जनता आज ने स्वतः स्वेच्छा से आपातकाल ओढ़ रखा है। आज जितना निष्क्रिय एवं निष्प्रभावी विपक्ष देश के इतिहास पहले कभी नहीं था। श्री गुप्त ने उम्मीद जताई कि देश की जनता और मीडिया फिर से अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होंगे।

कार्यक्र्म से पूर्व स्टेट प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश के अध्यक्ष प्रवीण कुमार खारीवाल, वरिष्ठ पत्रकार सुभाष खंडेलवाल, अनिल जैन, कीर्ति राणा, मनोहर लिम्बोदिया, गौरव चतुर्वेदी, कमल कस्तूरी, मीना राणा शाह, शिवकान्त बाजपेयी एवं सुनील वर्मा ने किया। कार्यक्रम का संचालन नवनीत शुक्ला ने किया। आभार आकाश चौकसे ने माना। इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता सर्वश्री किशोर कोडवानी, शिवाजी मोहिते, मोहम्मद शफ़ी शेख, परवेज़ खान, राकेश द्विवेदी, ओमप्रकाश खटके, कॉमरेड कैलाश लिम्बोदिया, कॉमरेड भारत सिंह ठाकुर, नरेश राय आदि विशेष रूप से उपस्थित थे।

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