अपनी विरासत को सहेजकर फिर विश्वगुरु बन सकता है भारत- डॉ.रेणु

  
Last Updated:  January 27, 2020 " 03:15 pm"

इंदौर : राष्ट्र सेविका समिति के बैनर तले आयोजित लक्ष्मीबाई केलकर मौसीजी स्मृति व्याख्यानमाला के दूसरे और अंतिम दिन वृंदावन से आयी डॉ. शरद रेणु शर्मा ने अपने विचार रखे। विषय था ‘मैं रहूं या ना रहूं भारत ये रहना चाहिए।’
जाल सभागार में सन्दर्भित विषय पर बोलते हुए डॉ. रेणु ने त्रेता और द्वापर युग से लेकर वर्तमान तक एक देश के रूप में भारत की पहचान, संस्कृति और विरासत को रेखांकित किया। उन्होंने राम- कृष्ण से लेकर तमाम महापुरुषों और वीर योद्धाओं से जुड़े प्रसंगों का उल्लेख करते भारत की गौरवमयी परम्परा से श्रोताओं को रूबरू कराया।
डॉ. रेणु ने कहा की दुनिया में 46 से अधिक सभ्यताएं थीं। कालांतर में ज्यादातर सभ्यताएं या तो खत्म हो गई या विदेशी आक्रमणों ने उन्हें खत्म कर दिया। लेकिन हिन्दू या कहें भारतीय सभ्यता तमाम विदेशी आक्रमणों और सैकड़ों सालों की गुलामी के बावजूद कायम रही। यही इसकी ताकत है। इसे हमें सहेजकर आगे ले जाना है।
डॉ. रेणु ने कहा कि हमारे सारे सवालों का जवाब भगवद गीता में निहित है। सबसे बड़ा मैनेजमेंट गुरु गीता है। विदेशों ने भी इस बात को माना है। उन्होंने कहा कि हम अपने ज्ञान, संस्कृति और विरासत को साथ लेकर आगे बढ़ें तो फिर से विश्वगुरु बन सकते हैं।
डॉ. रेणु ने परिवार संस्था की अहमियत को रेखांकित करते हुए कहा की यह हमारी सबसे बड़ी ताकत है। बदलाव के दौर में भी हमें परिवार के नीति मूल्यों, आचार, विचार और पहनावे को अपनाने की जरूरत है।
सीएए को लेकर देश में फैलाए जा रहे झूठ और दुष्प्रचार को लेकर डॉ.रेणु ने ज्यादा कुछ तो नहीं कहा पर सचेत रहने और जागरूक होकर इसका मुकाबला करने पर जोर दिया।
डॉ. रेणु को सुनने के लिए बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे। उनका परिचय सीमा भिसे ने दिया। आभार आरती मिश्रा ने माना।

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