अमीर खां साहब राग मेघ गाते हुए पर्दे पर प्रकट हुए और बरसने लगे मेघ..!

  
Last Updated:  January 22, 2022 " 07:22 pm"

इंदौर : शनिवार दोपहर अभिनव कला समाज में ‘याद- ए- अमीर’ कार्यक्रम के तहत उस्ताद अमीर खां के जीवन पर आधारित लघु फ़िल्म का प्रदर्शन हो रहा था। अब इसे अनूठा संयोग ही कहा जा सकता है कि फ़िल्म में जैसे ही अमीर खां साहब का राग मेघ गाते हुए दृश्य पर्दे पर झलका, बाहर आसमान से असल में मेघ बरसने लगे। शास्त्रीय गायन के इंदौर घराने के संस्थापक माने जाने वाले उस्ताद अमीर खां के गायकी के सफर को पेश करती इस फ़िल्म ने उपस्थित शास्त्रीय संगीत के कद्रदानों को अमीर खां साहब के उन अनछुए पहलुओं से अवगत कराया जिनसे वे अनजान थे। ख्यात सितार वादक पंडित रविशंकर, तबला नवाज उस्ताद जाकिर हुसैन, पंडित शिवकुमार शर्मा, गोकुलोत्सव महाराज और अन्य दिग्गज कलाकारों के उस्ताद अमीर खां के बारे में व्यक्त किए गए विचार भी इस फ़िल्म में शामिल किए गए हैं।

फिल्मों में भी उस्ताद अमीर खां ने गाए थे गीत।

इस फ़िल्म में उस्ताद अमीर खां के बॉलीवुड फिल्मों में गाए गीतों के मुखड़े भी शामिल किए गए थे। बता दें कि अमीर खां साहब ने बैजू बावरा, झनक- झनक पायल बाजे, गूंज उठी शहनाई, शबाब, रागिनी सहित कई फिल्मों में शास्त्रीय रागों पर आधारित गीत गाए हैं।

उस्ताद अमीर खां साहब को 1967 में संगीत नाटक अकादमी के पुरस्कार और 1971 में पद्मभूषण से नवाजा गया था। 1974 में एक दुर्घटना में उनका निधन हो गया।
कार्यक्रम में मौजूद अमीर खां साहब के पुत्र शाहबाज़ खान ने बताया कि उन्होंने इस लघु फ़िल्म में अपनी आवाज दी है। अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म फेस्टिवल में भेजी जाने के कारण इसकी डबिंग इंग्लिश में की गई है। उन्होंने कहा कि यह फ़िल्म युवाओं को अमीर खां साहब के जीवन और उनकी गायकी से अवगत कराने के उद्देश्य से बनाई गई है। स्कूल- कॉलेजों में इसका प्रदर्शन किए जाने के लिए यह फ़िल्म इंदौर में ही रहेगी।

पिता की याद में भावुक हुए शाहबाज़।

कार्यक्रम के दूसरे चरण में आलोक वाजपेयी ने अभिनेता शाहबाज़ खान से उनके पिता अमीर खां साहब के बारे में बातचीत की। इस दौरान शाहबाज़ खान पिता से जुड़े संस्मरण सुनाते हुए भावुक हो गए और उनकी आंखें सजल हो उठी।

मां नहीं चाहती थी कि मैं पिता की तरह गायकी को अपनाऊँ।

शाहबाज़ खान ने कहा कि उनका जन्म इंदौर में हुआ लेकिन परवरिश और पढाई- लिखाई नागपुर में हुई। वह केवल 7 वर्ष के थे जब पिता अमीर खां साहब दुर्घटना में चल बसे थे। मां ने ही पाल पोसकर बड़ा किया। मां नहीं चाहती थी कि मैं भी पिता की तरह गायक बनूँ। बड़ा होने पर उन्होंने समझाया कि वे नहीं चाहती थीं कि लोग ये कहें कि अमीर खां साहब का बेटा उनकी तरह नहीं गाता। बॉलीवुड में कैरियर बनाने के दौरान वे जब लोगों से मिले तो पता चला कि पिता अमीर खां क्या शख्सियत थे और शास्त्रीय संगीत में उनका क्या योगदान रहा। शाहबाज़ ने कहा कि उन्हें गर्व है कि वे उस्ताद अमीर खां साहब के बेटे हैं।

भावप्रवण थी अमीर खां साहब की गायकी।

शाहबाज़ ने कहा कि अमीर खां साहब डूबकर गाते थे। उनकी गायकी में भाव प्रवणता थी। वे फ़क़ीर किस्म के इंसान थे। पैसों के लिए उन्होंने कभी नहीं गाया। उन्हें विदेशों में बसने और संगीत सिखाने के कई ऑफर मिले पर उन्होंने इनकार कर दिया। उनका कहना था कि वे अपनी गायकी की विरासत देश की भावी पीढ़ी के लिए छोड़ जाएंगे। आज का दौर तो पूरीतरह कमर्शियल हो गया है।

शास्त्रीय संगीत में फ्यूजन उचित नहीं।

शाहबाज़ खान ने कहा कि बदलते वक्त के साथ शास्त्रीय संगीत में प्रयोग होने लगे हैं। विदेशी संगीत के साथ फ्यूजन बनाए जा रहे हैं पर इसे वे ठीक नहीं मानते। भारतीय शास्त्रीय संगीत अपने आप में परिपूर्ण है। इसकी शुद्धता कायम रहनी चाहिए।

ख्याल गायकी उस्ताद अमीर खां की देन।

शाहबाज़ ने कहा कि अमीर खां साहब इंदौर घराने के संस्थापक थे। ख्याल गायकी उन्हीं की देन है। तमाम गायकों ने उनकी गायकी को अपनाया पर इसे स्वीकार करने से कतराते हैं।

इंदौर घराने को ऊंचाई देने के लिए एकजुट हों।

शाहबाज़ खान ने कहा कि वे चाहते हैं कि गायकी में इंदौर घराने का नाम भी शिखर पर पहुंचे। इस दिशा में एकजुट होने की जरूरत है। उन्होंने इस मामले में अभिनव कला समाज के अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल से पहल करने का आग्रह किया।

मेहनत का कोई शॉर्टकट नहीं होता।

शाहबाज़ ने कहा कि नई पीढ़ी उस्ताद अमीर खां साहब की सादगी और मेहनत को अपनाएं। सुरों पर ध्यान दें। मेहनत का कोई शॉर्टकट नहीं होता है।

कई फिल्मों और टीवी सीरियलों में काम कर चुके शाहबाज़ खान ने श्रोताओं के आग्रह पर अपनी फिल्मों और सीरियलों के चुनिंदा संवाद भी अपनी दमदार आवाज में पेश किए।

इंदौर घराने को सहेजने में अभिनव कला समाज निभाएगा अहम भूमिका।

अभिनव कला समाज के अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल ने उस्ताद अमीर खां साहब की अभिनव कला समाज में हुई महफिलों के सुनहरे दौर का जिक्र करते हुए इंदौर घराने को आगे बढ़ाने को शहर की सांस्कृतिक पहचान के लिए जरूरी बताया। उन्होंने आश्वस्त किया कि अभिनव कला समाज इंदौर घराने और उस्ताद अमीर खां साहब की विरासत को संजोने और उसे आगे बढाने में अहम भूमिका निभाएगा। शिक्षाविद प्रो. आरके जैन ने अमीर खां साहब पर शोध पीठ की स्थापना का सुझाव दिया।

प्रारम्भ में शाहबाज़ खां का स्वागत कमल कस्तूरी, पंडित सुनील मसूरकर, सत्यकाम शास्त्री और डॉ. जावेद अहमद शाह ने किया।स्मृति चिन्ह विजय पारिख व विजय गावड़े ने भेंट किए। स्वागत भाषण बुंदु खां ने दिया। आभार सोनाली यादव ने माना। इस अवसर पर बड़ी संख्या में रसिक श्रोता, कलाकार और सांस्कृतिक संस्थाओं के प्रतिनिधि मौजूद थे।

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