बंगलुरू : 2 दिन पूर्व ट्विटर पर इंफोसिस के मालिक नारायण मूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति की सब्जियां बेचते हुए फोटो वायरल हुई थी। बाद में हकीकत की तलाश की गई तो पता चला कि वास्तव में फोटो सुधा मूर्ति की ही है, जो 2480 करोड रुपए की मालकिन है। इसके बावजूद सबके मन में सवाल उठ रहा था कि आखिर वे सब्जियां क्यों बेच रही है..?
खबर नवीसों ने जब सूत्रों के जरिए पड़ताल की तो जो वो सच सामने आया जिसे जानकर हर किसी के मन में सुधा मूर्ति के लिए आदरभाव कई गुना बढ़ गया।
दरअसल, “सुधा मूर्ति राघवेंद्र मठ (मंदिर) में प्रति वर्ष 3 दिन के लिए आती हैं, चुपचाप। वहां पर फल, सब्जी काटना, व्यवस्थित करना, रसोई के काम में लगना, यह सब काम वे खुद अपने हाथों से करती हैं, आम भक्तों की तरह।
अहम को मारने की विधि है सेवा।
जब उनसे पूछा गया इस तरह काम करने की वजह और जरूरत क्या है ? तो उन्होंने कहा “यह अपने अहम को मारने की एक विधि है, जो मैंने पंजाब में गुरुद्वारे में होने वाली कार सेवा को देखकर सीखी है। पैसों का दान देना अच्छी बात है, किंतु स्वयं शारीरिक श्रम करना व सामान्य लोगों के साथ, सामान्य लोगों की तरह रहना, यह मुझे अहंकार में डूबने नहीं देता। वर्ष भर मैं इसी कारण से सेवा भाव में रहती हूं।”
सुधाजी पूछने पर भी नहीं बताती की वह कितना व कहां कहाँ दान करती हैं, कैसे करती हैं। (यह निश्चित है कि वह करोड़ों में है)
विनम्रता की मूर्ति हैं, मूर्ति दम्पत्ति।
मूर्ति दम्पत्ति विनम्रता का पर्याय है। स्वयं नारायण मूर्ति को जो 68 वर्ष के हो गए हैं, को एक कार्यक्रम में 78 वर्षीय रतन टाटा के पैर छूते हुए सब ने देखा है। विनम्रता जब उभरती है, तो ऐसी घटनाएं सामान्य होती हैं। इतने बड़े कारपोरेट संस्थान और करोड़ों की संपत्ति के मालिक होने के बाद भी ऐसा साधारण जीवन, विनम्रता और उच्च विचार बिरलों में ही नजर आते हैं। मूर्ति दम्पत्ति उन तमाम बड़े कारोबारियों के लिए उदाहरण हैं, जो आम जनता से पैसा इकठ्ठा कर करोड़ों रुपए केवल अपने ऐशो आराम पर खर्च कर देते हैं।