इंदौर : टैक्स प्रैक्टिश्नर्स एसोसिएशन इंदौर एवं इंदौर सीए शाखा द्वारा जीएसटी इनपुट टैक्स क्रेडिट की व्यावहारिक समस्याओं पर ग्रूप डिसक्शन का आयोजन किया गया।
इंदौर में पहली बार हुए इस नवाचार में कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों पर केस स्टडीज बनायीं गयी। इन सभी विषयों पर प्रतिभागियों को भी अपना मत रखने का मौका मिले इस हेतु ग्रुप बनाकर उस ग्रुप में दो जीएसटी एक्सपर्ट्स के निर्देशन में केस स्टडीज पर विचार विमर्श किया गया। ग्रुप में सामूहिक विचार विमर्श कर उन सभी पर अंतिम रूप से निर्णय लेकर उसे सभी सदस्यों के समक्ष समक्ष रखा गया।
आईटीसी ब्लॉक करना नियम विरुद्ध।
उक्त सेमिनार में चर्चा की गई कि विभाग फ़र्ज़ी बिलों के विरुद्ध डीलर की आईटीसी ब्लॉक कर रहे हैं यहाँ तक तो सही है लेकिन उस डीलर के द्वारा आगे बेचे गए माल जो कि असल विक्रय है; विभाग द्वारा उस की भी आईटीसी ब्लॉक की जा रही है जो नियम विरुद्ध है।
किसी सप्लायर द्वारा जीएसटीआर १ रिटर्न फ़ाइल नहीं करने पर, रिटर्न में बिल नहीं दर्शाने पर या कर का भुगतान नहीं भरने माल प्राप्त कर्ता को दोषी माना जा रहा है जबकि कार्रवाई माल बेचने वाले पर करनी चाहिए।
आईटीसी जीएसटी क़ानून की आत्मा है। विभाग द्वारा वर्तमान में इसे लेकर जो रवैया अपनाया जा रहा है, उससे इस क़ानून की मूल भावना समाप्त होती दिख रही है।
कई मुद्दों पर नहीं है क्लियारिटी।
इसमें कई मुद्दे ऐसे हैं जिसमें अभी तक क्लैरिटी नहीं है कि आईटीसी मिलेगी या नहीं, उदाहरण के लिए अगर किसी व्यापारी ने कोई माल ऐसे गोडाउन में रखा है, जिसका विवरण रजिस्ट्रेशन में नहीं है उसकी इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलेगी या नहीं इस पर विभिन्न एक्स्पर्ट्स ने चर्चा कर यह निष्कर्ष निकाला कि इनपुट टैक्स क्रेडिट की एलीजीबीलिटी रजिस्टर्ड करदाता को होती है न की रजिस्टर्ड व्यापार स्थल को। अतः क्रेडिट मिलना चाहिए।
यदि व्यापारी इवे बिल को गलत बनाता है तो उसे धारा 129, 130 की कार्रवाई का सामना करना पड़ता है। व्यापारी को इस पर टैक्स एवं पेनल्टी चुकाना पड़ती है तथा उन्हें इस पर इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलती है।
एक मामले में करदाता को जीएसटी विभाग द्वारा पंजीयन रद्द करने के लिए एक प्रिंटेड खाली फॉर्मेट में कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें जीएसटी अधिनियम या उसके तहत बनाए गए नियमों में किसी भी निर्दिष्ट प्रावधानों के गैर-अनुपालन के आधार पर पंजीकरण रद्द करने की मांग की गयी थी परन्तु यह स्पष्ट नहीं किया गया था की किस नियम या अधिनियम की किस धारा का अनुपालन नहीं किया गया है, जिसके कारण जीएसटी नंबर को कैंसिल करने की सम्भावना बनती थीl करदाता ने उपरोक्त मामले में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और यह निवेदन किया की विभाग द्वारा नोटिस केवल पंजीकरण रद्द करने के लिए जारी किया गया है, वह भी बिना कोई विशेष कारण बताए, ऐसी कोई भी कार्रवाई करदाता को वैध तरीके से अपना व्यवसाय करने से रोकती है। त्रिपुरा हाईकोर्ट ने यह फैसला दिया है की ऐसे मामलो में जीएसटी विभाग के अधिकारी नोटीस जारी करने के लिए आवश्यक न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत की न्यूनतम आवश्यकताओ का पालन करने में ही विफल रहे है। ऐसे नोटिस के आधार पर पंजीयन रद्द नहीं किया जा सकता l
इलाहबाद उच्च न्यायलय ने एक मामले में यह आदेश दिया है कि पुलिस को माल के परिवहन के दौरान चालान, इनवॉइस एवं उससे माल के मिलान का अधिकार नहीं है l उपरोक्त मामले में पुलिस को मुखबिर से सुचना मिली थी की एक वैन में अवैध माल का परिवहन हो रहा है। पुलिस द्वारा जब उस वैन को रोक कर तलाशी ली गयी तो उसमे बिना बिल के माल का परिवहन होता पाया गया। पुलिस द्वारा अवैध माल के परिवहन के कारण गाड़ी जब्त कर ली थी l व्यापारी द्वारा इस मामले की उच्च न्यायलय में याचिका दायर की गई जिसमें उन्होंने अपने पक्ष में कहा कि राज्य और केंद्रीय जीएसटी कानूनों के तहत केवल जीएसटी अधिकारियों को कानून के उचित दस्तावेजों के साथ नहीं होने पर माल की जब्ती सहित कार्रवाई करने का अधिकार प्राप्त है, पुलिस को नहीं।
उक्त सेमिनार में टीपीए प्रेसिडेंट सीए शैलेन्द्र सिंह सोलंकी, इंदौर सीए शाखा के चेयरमेन सीए आनंद जैन , टीपीए के मानद सचिव सीए अभय शर्मा , रजत धानुका, सुनील खंडेलवाल, नवीन खंडेलवाल, शैलेन्द्र पोरवाल, मनोज गुप्ता, जे पी सर्राफ, कीर्ति जोशी एवं अन्य सदस्यों ने भाग लिया !
कार्यक्रम का संचालन केंद्रीय कर सचिव सी ए कृष्ण गर्ग ने किया ! आभार प्रदर्शन सी ए रजत धानुका ने किया।