प्रवीण कुमार खारीवाल
बीते सात दिनों में दो मर्तबा जयप्रकाश चौकसे जी ने चौकाया। पिछले हफ्ते ही उन्होंने अपने मकबूल और बेमिसाल कालम ‘पर्दे के पीछे’ को विराम देने की सूचना जगजाहिर की और बुधवार सुबह उनके नहीं रहने की खबर ने मन द्रवित कर दिया। म.प्र. के बुरहानपुर कस्बे से इंदौर आकर चौकसे जी ने पहले अंग्रेजी शिक्षा में महारत हासिल की। उसके बाद फिल्म वितरण व्यवसाय में हाथ आजमाया। गुजराती कला और विज्ञान महावद्यालय में उन्होने कई होनहार छात्र गढ़े, लेकिन असली कामयाबी उन्हें अपने फिल्मी लेखन से ही मिली। इंदौर से जब नईदुनिया का मुकाबला करने रमेशचंद्र अग्रवाल की कोर टीम ने मैदान संभाला तो चौकसे जी भी उस दैनिक भास्कर की टीम में अहम सदस्य बने। अखबार भी बढ़ता गया और चौकसे जी का रुआब भी। फिल्मी दुनिया में कभी देवयानी चौबल का नाम गासिप क्वीन के रूप में धाक के साथ लिया जाता था, लेकिन चौकसे जी ने कुछ वर्षों में रुपहली दुनिया के संसार में अहम मुकाम बना लिया। उनके नियमित कालम से समाज को सिनेमा समझने में मदद मिली।भारतीय तो ठीक विश्व सिनेमा की खबरें भी वह सरलता और सजगता से पाठकों के बीच परोसते थे। यह भी जगजाहिर था कि राजकपूर और सलीम खान जैसी दिग्गज हस्तियों से उनके गहरे ताल्लूकात थे। ऐसी बड़ी हस्तियों के साथ बिताए पलों में से वो किस्से खोज लाते थे और किसी न किसी रूप में पाठकों के सामने होते थे। चौकसे जी ने इंदौर के शायर काशिद इंदौरी की मृत्यु पर एक फिल्म ‘शायद’ की पटकथा भी लिखी। इंदौर को अब तक लता मंगेशकर, उस्ताद अमीर खां, जॉनी वाकर, मकबूल फिदा हुसैन, सलीम खान, सलमान खान, डॉ. राहत इंदौरी आदि के नाम से जाना जाता था। उस फेहरिस्त में अब तक नाम जयप्रकाश चौकसे जी का भी जुड़ गया। स्व. चौकसे जी को अपने अंदाज-ए-बयां के लिए सदा याद रखा जाएगा।मेरी और टीम स्टेट प्रेस क्लब की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि।
( लेखक स्टेट प्रेस क्लब के अध्यक्ष हैं।)