18वीं प्रेस्टीज इंटरनेशनल मैनेजमेंट कांफ्रेंस में वक्ताओं ने शोध को समाजोन्नमूलक बनाने पर जोर दिया।
इंदौर: भारतीय अर्थव्यवस्था ने आजादी के बाद से कई सकारात्मक बदलाव देखे हैं लेकिन यह कई चुनौतियों से भी घिरी हुई है। भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के बावजूद, भारत की प्रति व्यक्ति आय बेहद कम है। अपनी आबादी के बीच आय के समान वितरण के लिए भारत को और आर्थिक सुधारों की आवश्यकता है।
यह बात न्येनरोड बिजनेस यूनिवर्सिटी हॉलैंड के वित्त के प्रोफेसर डॉ. डेनिस विंक ने प्रेस्टीज प्रबंध संस्थान द्वारा “आर्थिक विकास और समाज कल्याण के लिए बदलते प्रबंधन प्रथाओं और प्रक्रियाओं’ विषय पर आयोजित 18वें प्रेस्टीज अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि भारत मूलभूत आर्थिक सुधारों तथा ढांचागत विकास के जरिए ही आर्थिक स्थिरता और आय की असमानता को कम कर सकने में सक्षम हो सकता है।
शोध में समाज के लिए भी प्रासंगिकता हो : डॉ. रेणु जैन
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर की कुलपति डॉ. रेणु जैन ने सभी क्षेत्रों में सीखने और समझने के अनुभवों को बढ़ाने के लिए नवीन अनुसंधान कौशल के साथ अकादमिक उत्कृष्टता को एकीकृत करने की जरूरत को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि शोध का फोकस इस बात पर होना चाहिए कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना पृथ्वी पर जीवन कैसे फले-फूले। साथ ही शोध में समाज के लिए उसकी कुछ प्रासंगिकता भी होनी चाहिए।
प्रबंधन प्रथाओं में बदलाव लाकर भारत फाइव ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनने की ओर अग्रसर : डेविश जैन।
प्रेस्टीज एजुकेशन फाउंडेशन के चेयरमैन तथा प्रेस्टीज यूनिवर्सिटी के चांसलर डॉ. डेविश जैन ने विभिन्न क्षेत्रों में भारत की शानदार उपलब्धि का ब्यौरा प्रस्तुत करते हुए प्रबंधन के सिद्धांतों के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि किसी भी संगठन में कार्यकुशलता को अधिकतम करने के लिए इन सिद्धांतों का लगातार पालन करना कितना महत्वपूर्ण है।उन्होंने कहा कि प्रबंधन प्रथाओं और सिद्धांतों का समाज और अंततः पूरे देश पर गहरा प्रभाव हो सकता है। डॉ जैन ने कहा कि नविन प्रबंधन प्रथाओं को अपनाकर तथा वर्तमान प्रबंधन प्रथाओं में बदलाव लाने के कारण ही भारत ने अपनी अर्थ व्यवस्था को संभाला बल्कि अब भारत दुनिया में फाइव ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनने की ओर अग्रसर है।
उत्कृष्ट विचारों से दुनिया, समाज बदल सकता है : देबाशीष मल्लिक।
पीआईएमआर के वरिष्ठ निदेशक डॉ. देबाशीष मल्लिक ने उन शोध कार्यों की आवश्यकता पर जोर दिया, जिनका समाज पर सकारात्मक प्रभाव हो और जो समाज में योगदान दे सके। उन्होंने कहा कि अद्भुत आइडियाज पर आधारित अनुसंधान से समाज और दुनिया में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।
विजेता बनने के लिए रिजेक्शन का सामना करना सीखें: डॉ. राजा रॉय चौधरी।
डार्विन ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के सीईओ डॉ. राजा रॉय चौधरी ने कहा कि विजेता बनने के लिए हमें रिजेक्शन का सामना करना सीखना होगा। अपने जीवन के अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने बताया कि अस्वीकृति को कैसे गले लगाया जाए और इसे स्वीकृति में कैसे बदला जाए। उन्होंने सफल होने के चार नेतृत्व मंत्र भी दिए।
पीआईएमआर के निदेशक डॉ. एस रमन अय्यर ने नेतृत्व के बारे में बात करते हुए कहा कि नेतृत्व सभी नेताओं की पहचान करने और उनका पोषण करने के बारे में है।
रॉयल सुंदरम जनरल इंश्योरेंस कंपनी के कंट्री हेड, परीक्षित वैद्य ने बताया कि कैसे विफलता को समाधान प्रदान करने के अवसर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। सर्कल हेड, पंजाब नेशनल बैंक इंदौर, मृत्युंजय ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे डेटा भारत को विकास की दिशा में जबरदस्त रूप से बदल सकता है।
डॉ चौधरी, डॉ डेनिस विंक को पीआईएमआर पुरस्कार।
कार्यक्रम के दौरान, डॉ राजा राय चौधरी को पीआईएमआर मैनेजमेंट एक्सीलेंस पुरस्कार और डॉ डेनिस विंक को प्रतिष्ठित पीआईएमआर एमिनेंट एकेडमियन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर,प्रेस्टीज प्रबंध संस्थान के संकायों को भी उनके प्रकाशनों के लिए तथा 8 शोधकर्ताओं को पीएचडी उपाधि से सम्मानित किया गया। अतिथियों द्वारा प्रेस्टीज प्रबंध संस्थान की एक इंटरनेशनल जर्नल का विमोचन भी किया गया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. निधि शर्मा ने किया जबकि सम्मेलन के संयोजक डॉ. नितिन तांतेड ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
इंटरनेशनल कांफ्रेंस के पहले दिन के दूसरे सत्र में आईएमटी, गाजियाबाद के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अभिज्ञान सरकार द्वारा कार्यशाला का संचालन किया गया। इस दौरान उन्होंने गुणवत्तापूर्ण जर्नल प्रकाशन बनाने से संबंधित अपने अनुभवों को साझा किया।