केवल उत्सव नहीं, पुरातन संस्कृति का प्रतिबिंब है भगोरिया

  
Last Updated:  March 19, 2024 " 04:33 pm"

🔹कैलाश विजयवर्गीय🔹

जनजातीय संस्कृति का महापर्व भगोरिया 18 मार्च से शुरू हो गया है। मालवा-निमाड़ के ग्रामीण अंचल फिर उमंग और उल्लास के साथ इसे मानने जुट रहे हैं। पड़ोसी राज्यों में मजदूरी करने गए हमारे मेहनतकश परिवारजन भी भगोरिया और होली मनाने के लिए अपने-अपने गांव-फलियों में लौटने लगे हैं। ग्रामीण ढोल-मांदल की थाप पर झूमने लगे हैं।

भगोरिया को पिछले साल ही मध्यप्रदेश सरकार ने राजकीय पर्व घोषित किया था। मध्य प्रदेश की लोकप्रिय भाजपा सरकार का यह निर्णय इस बात का प्रमाण है कि सामाजिक एवं सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। वैसे भी परंपरागत मेले और पर्व हमारे गौरवशाली इतिहास का वर्तमान से मेल करवाते हैं। युवा पीढ़ी संस्कारों और सरोकारों का यह पाठ पढ़कर अपनी परंपराओं को न केवल स्वीकार करती है बल्कि अनुशासित रूप से अनुकरण के लिए भी स्वयं को समर्पित करती है।

भगोरिया की एक पहचान यह भी है कि हजारों की तादाद में उमड़ने वाली ग्रामीणों की भीड़ के बावजूद अनुकरणीय अनुशासन होता है। हर तरफ पारंपरिक वाद्य यंत्र ढोल-मांदल के साथ थाली की खनक पर लयबद्ध थिरकन का दौर चलता है। पूरे सात दिनों तक कहीं भी इतने वृहदस्तर पर ऐसा कोई भी उत्सव नहीं मनाया जाता।

माना जाता है कि भगोरिया की शुरुआत राजा भोज के कालखंड में हुई थी। तत्कालीन भील राजाओं कासूमरा और बालून ने अपनी राजधानी भगोर में मेले की शुरुआत की। इसके बाद अन्य क्षेत्रों में भी यह आयोजन होने लगा। कालांतर में स्थानीय हाट और मेलों में लोग इसे भगोरिया कहने लगे। पश्चिमी निमाड़, झाबुआ-आलीराजपुर, धार, बड़वानी में भगोरिया अधिक धूमधाम से मनाया जाता है। भगोरिया के दौरान ग्रामीण जन ढोल-मांदल एवं बांसुरी बजाते हुए मस्ती में झूमते हैं। गुड़ की जलेबी, भजिये, खारिये (सेंव), पान, कुल्फी की दुकानों से मेले सजे रहते हैं।

दरअसल, भारत के अनेक भागों में आदिवासी समुदायों की एक विशेष महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर है। यहां तक कि उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान का अंग है। भगोरिया एक ऐसा महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे अलग-अलग तरीकों के साथ मध्य भारत के छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार और महाराष्ट्र में मनाया जाता है। इसे अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है, जैसे कि भागोरा, भगौरिया, भगोरी, भगोरीया, बघोरिया आदि। मध्य प्रदेश के लिए यह विशेष गर्व का पर्व इसलिए भी है कि इसे आदिवासी समुदायों के सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्व की प्रतीक के रूप में अब अधिक मान्यता मिलती जा रही है।

सत्य तो यह भी है कि भगोरिया का पर्व आदिवासी समुदायों की महत्वपूर्ण सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। इसका आयोजन समाज में एकता, सामाजिक समरसता और समृद्धि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया जाता है। इस पर्व के माध्यम से लोग अपनी परंपराओं को समझते हैं और इसे अपने जीवन में अमल में भी लाते हैं। भगोरिया पर्व का आयोजन समाज के प्राचीन रीति-रिवाजों और संस्कृति को मजबूत करने का भी प्रभावी माध्यम है। इसे पर्व के दौरान आदिवासी समुदाय परंपरा के साथ अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता को भी दोहराता है। यही पर्व का महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि यह आदिवासी समुदायों की भावनाओं, संस्कृति और ऐतिहासिक पारंपरिकता को दर्शाता है। भगोरिया पर्व का आयोजन भले ही साल में एक बार होता है लेकिन इससे जुड़ी स्मृतियों वर्षभर मन को आनंदित रखती हैं।

भगोरिया एक महत्वपूर्ण आदिवासी पर्व है जो भारतीय समाज की विविधता और समृद्धि का प्रतीक है। यह आदिवासी समुदायों की भावनाओं, संस्कृति, और परंपराओं को मजबूत करने का एक माध्यम है। इस पर्व के माध्यम से लोग अपने समुदाय के गौरव को महसूस करते हैं और अपनी धार्मिक व सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने का संकल्प लेते हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस वर्ष भी भगोरिया पर्व समाज में एकता, सद्भावना, और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और प्रेम व सद्भावना की नई मिसाल बनेगा।

पर्व के लिए पधारने वाले सभी परिवार जनों को मेरी ढेर सारी बधाई और अग्रिम शुभकामनाएं।

(लेखक मध्यप्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री हैं)

Facebook Comments

Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *