कला, संस्कृति और मेरी स्मृतियां विषय पर व्याख्यान।
द्वितीय स्थान पर रहने पर भी प्रथम की उम्मीद बनी रहती है।
इंदौर : मैं पढ़ाई में कभी अव्वल नहीं रहा, हमेशा सेकेंड ही पास हुआ लेकिन उससे मन में कभी हताशा नहीं हुई। एंकरिंग को प्रोफेशन तो बाद में बनाया पहले उसे एक जुनून की तरह ही जिया।थियेटर में आने से टीम वर्क सीखा और किशोरवय के संकोची स्वभाव की झिझक टूटी। एंकर केवल प्रस्तुतकर्ता तक सीमित रहे तो सफल होता है।
ये बात संस्कृतिकर्मी, समीक्षक और वरिष्ठ एंकर संजय पटेल ने हरि ॐ योग केंद्र चेरिटेबल ट्रस्ट एवं योग विभाग चोइथराम कॉलेज द्वारा आयोजित बियांड मेडिसिन कार्यक्रम श्रृंखला में बतौर प्रमुख वक्ता व्यक्त किए।
संजय पटेल ने बताया कि उन्हें थियेटर में रियाज़ और रंगकर्म में रिहर्सल से अलहदा ऐसी विधा की तलाश थी जिसमें संलग्न होने से मन की सांस्कृतिक क्षुधा शांत हो सके। पिता सीए बनाना चाहते थे और मैं आना चाहता था एडवरटाइजिंग की ओर। पिता ने व्यापार के लिए धन देने से मना कर दिया लेकिन मां ने अपनी बचत में से दस हजार रुपए दिए और कहा कि अपनी स्वेच्छा का काम करो, मां के दिए वे दस हज़ार रुपए आज तक खत्म नहीं हुए। पिता के शब्द और मां की हिम्मत से ही जीवन है।
संजय पटेल ने एंकर के रूप में अपनी मंचीय यात्रा के रोचक संस्मरण भी सुनाए जिसमें लता अलंकरण में आए ग़ज़ल शहंशाह मेहदी हसन और फिल्म संगीत के भीष्म पितामह अनिल विश्वास के साथ बीते पलों की याद भावपूर्ण थी। स्वर कोकिला लता मंगेशकर के संघर्ष के शब्दचित्र ने श्रोताओं को भावुक कर दिया। संजय पटेल ने बताया हर व्यक्ति के करियर में एक ट्रेनिंग प्वाइंट जरूर होता है। अस्सी के दशक में आयोजित एक संगीत सभा के एंकर को किसी निजी कारण से सभागार से घर जाना पड़ा। आयोजकों ने श्रोताओं में मौजूद संजय पटेल से माइक संभालने का आग्रह किया। उन्होंने इस काम को बखूबी निभाया और पंडित शिवकुमार शर्मा को श्रोताओं से रूबरू किया । आयोजन था आई टी सी संगीत सम्मेलन। यही कार्यक्रम उनके लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ।
प्रारंभ में जयंत भिसे, मोहन अग्रवाल के विशेष आतिथ्य में, स्वागत भाषण अश्विनी वर्मा ने दिया,स्वागत पवन जैन, डॉ. आर के बाजपेई, मधुसूदन सोमानी, फिरोज दाजी ने किया। संचालन कपिल जोशी ने किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में प्रबुद्ध श्रोता उपस्थित रहे।