भोपाल: कांग्रेस की ओर से पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को भोपाल लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाए जाने से इस सीट पर सबकी निगाहें टिक गई हैं। मप्र की वीआईपी मानी जाने वाली इस सीट पर बीते 30 वर्षों से बीजेपी का कब्जा है।
कमलनाथ के चक्रव्यूह में फंसे दिग्विजय सिंह..!
भोपाल से दिग्विजय सिंह को प्रत्याशी तो बना दिया गया पर राजनीति के जानकार जानते हैं कि ये कांग्रेस की गुटीय राजनीति और अंदरूनी खींचतान का नतीजा है। दरअसल सीएम की कुर्सी के पहले हकदार ज्योतिरादित्य सिंधिया थे। उनको किनारे कर खुद सीएम बनने के लिए कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह को साथ में ले लिया जबकि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनवाने में जीतोड़ मेहनत सिंधिया ने की थी ये हक़ीक़त है। कमलनाथ को गांधी परिवार का करीबी होने और दिग्विजय सिंह से हाथ मिलाने का फायदा मिला। सीएम की कुर्सी सिंधिया के हाथ से छिटककर कमलनाथ के पास चली गई। कमलनाथ सीएम बन तो गए लेकिन दिग्विजय सिंह सुपर सीएम की तरह बर्ताव करने लगे। सरकार के हर फैसले में वे दखल देने लगे। मंत्रियों के कामकाज में हस्तक्षेप करना दिग्विजय सिंह का शगल बन गया था। सीएम कमलनाथ भी राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी हैं। पहले तो उन्होंने सिंधिया को यूपी का प्रभार दिलवाकर मप्र की राजनीति से बाहर कर दिया उसके बाद दिग्गी राजा के लिए चक्रव्यूह रचने लगे। दिग्विजय सिंह की दखलंदाजी उनके लिए भी परेशानी का सबब बनने लगी थी। लोकसभा का चुनाव उनके लिए वो अवसर ले आया जिसका उन्हें इंतजार था। मुश्किल सीटों पर दमदार प्रत्याशी उतारने का माहौल बनाते हुए दिग्विजय सिंह पर दबाव बनाया गया कि वे इंदौर या भोपाल से चुनाव लड़कर कांग्रेस का 30 साल से चला आ रहा सूखा खत्म करें। सियासत के धुरंधर खिलाड़ी दिग्विजय सिंह ने पहले तो इसे हल्के में लिया पर जब दबाव बढ़ने लगा तो वे नाखुश नजर आए। वे अपनी घरेलू सीट राजगढ़ के अलावा और कहीं से लड़ने के इच्छुक नहीं थे। बचने के लिए उन्होंने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर मामला छोड़ दिया। सीएम कमलनाथ दिग्विजय सिंह को राजनीतिक वनवास देने का ये मौका छोड़ना नहीं चाहते थे इसलिए उन्होंने पूरी घेराबंदी करते हुए पार्टी आलाकमान { राहुल गांधी } के गले ये बात उतार दी कि सिर्फ दिग्विजय सिंह ही कांग्रेस को भोपाल की सीट जितवा सकते हैं। कमलनाथ की पुख्ता रणनीति को इस बात से भी समझा जा सकता है कि उन्होंने दिग्विजय सिंह के भोपाल से चुनाव लड़ने की घोषणा पहले ही कर दी जबकि पार्टी की ओर से अधिकृत तौर पर प्रत्याशियों की लिस्ट घंटों बाद जारी की गई जिसमें भोपाल से दिग्विजय सिंह का भी नाम था। तमाम कोशिश के बाद भी दिग्विजय सिंह कमलनाथ के बनाए चक्रव्यूह में फंस ही गए।
अपना एकछत्र राज चाहते हैं कमलनाथ।
कांग्रेस की गुटीय राजनीति में हर बड़ा नेता अपने समकक्ष किसी दूसरे नेता की मौजूदगी बर्दाश्त नहीं करता। कमलनाथ भी नहीं चाहते थे कि दिग्विजय सिंह की दखलंदाजी उनके लिए नासूर बन जाए। इसके चलते उन्होंने कुशलता से अपनी रणनीति को अंजाम दिया और दिग्विजय सिंह को ऐसे मुकाबले में उतार दिया जिसे जीतना उनके लिए नामुमकिन नहीं पर बेहद दुष्कर अवश्य है।