गांधी- नेहरू परिवार के कारण अनेक बलिदानियों को भुला दिया गया।
सिखों के बलिदान को भी कमतर आंकने की कोशिश की गईं।
उपेक्षित बलिदानियों का स्मरण राष्ट्र निर्माण के लिए आवश्यक है।
इंदौर : शहर की 35 सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा आयोजित राष्ट्र चेतना व्याख्यानमाला का रविवार को समापन हो गया। व्याख्यानमाला का यह तीसरा वर्ष है। महाराष्ट्र के प्रख्यात राष्ट्रवादी विचारक और ओजस्वी वक्ता विवेक घलसासी ने ‘स्वाधीनता संग्राम के उपेक्षित रत्न’ विषय पर प्रभावी और अविस्मरणीय उदबोधन दिया।
बलिदानियों की जानबूझकर की गई उपेक्षा।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अस्मिता का जागरण करने वाले महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और बलिदानियों की जानबूझकर उपेक्षा की गई। कांग्रेसी और वामपंथी इतिहासकारों ने सुनियोजित साजिश के तहत स्वतंत्रता संग्राम का श्रेय केवल गांधी और नेहरू परिवार तक सीमित कर दिया। इससे अनगिनत शहीदों की उपेक्षा हुई। ऐसे सभी शहीदों का स्मरण करना और उनके बलिदान के बारे में आज की पीढ़ी को बताना आवश्यक है। ऐसा करने से ही हमारे राष्ट्र का निर्माण होगा और युवा पीढ़ी को सही इतिहास का पता चलेगा। घलसासी ने कहा कि युवा पीढ़ी को पता चलना चाहिए कि हमने आजादी कितने बलिदानों के बाद प्राप्त की है। कांग्रेसी और वामपंथी इतिहासकारों ने जानबूझकर सिखों के बलिदान की भी उपेक्षा की या उन्हें कम आंकने का प्रयास किया। इस संबंध में भी इतिहास दुरुस्त करने की आवश्यकता है।
चाफेकर बन्धु सहित कई बलिदानियों को भुला दिया।
विद्वान वक्ता ने अपने धाराप्रवाह संबोधन में कहा कि वासुदेव बलवंत फड़के, चापेकर बंधु सहित अनेक ऐसे क्रांतिकारियों के बलिदान को भुला दिया गया जिनके बिना स्वाधीनता संग्राम का इतिहास अधूरा है। उन्होंने बताया कि आजादी के संग्राम में सभी वर्गो और समुदायों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। यहां तक कि सामान्य मौलवियों ने भी इस संग्राम में भाग लिया। विवेक घलसासी ने बताया कि किस तरह से वंदे मातरम की रचना हुई और इसका गान सर्वप्रथम किसने किया।उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम इतिहास के अनेक अनछुए पहलुओं को उजागर किया और उन बलिदानों के बारे में बताया जिन के बारे में इतिहास मौन है। वैशाली नगर स्थित माधव विद्यापीठ में सैकड़ों की संख्या में श्रोता इस व्याख्यान को सुनने मौजूद थे। श्री घलसासी के व्याख्यान के दौरान अनेक ऐसे प्रसंग आए जब श्रोताओं की आंखें नम हो गई और कई बार ऐसा भी हुआ कि जोश के कारण रोंगटे खड़े हो गए। रविवार के व्याख्यान की विशेषता प्रख्यात नृत्यांगना मंजूषा जोहरी की शिष्याओं द्वारा भारत माता की दीपों के साथ की गई नृत्यमय आरती थी। इंदौर के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक गौतम काले के शिष्यों द्वारा वंदे मातरम गीत की प्रस्तुति के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। संचालन रुपाली बर्वे ने किया। आभार मोहन रेडग़ांवकर ने माना।
युवाओं को दिया मार्गदर्शन।
इसके पूर्व सुबह के सत्र में युवाओं को संबोधित करते हुए विवेक घलसासी ने कहा कि कर्मशील रहना ही युवा होने की प्रमुख निशानी है । भाग्य के भरोसे बैठे रहने से कभी लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता है । उन्होंने युवाओं से कहा कि अपनी सफलता राष्ट्र पुरुष और मां भारती के चरणों मे समर्पित करें। कृष्ण को सदैव हृदय में बसा कर रखें । विनयशील और स्नेहल स्वभाव बनाएं तभी शांति प्राप्त होगी । प्रातः और निशा काल में ध्यान करना सीखें,जिससे मन और विचारों में दृढ़ता आती है । बड़ी संख्या में युवा विवेक घलसासी को सुनने और उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करने पहुंचे। कार्यक्रम में शोभा पैठनकर, कृष्णकुमार अष्ठाना , युवा उद्योगपति विनय पिंगले सहित अनेक विशिष्टजन उपस्थित थे ।