काम के साथ रिश्तों को जीना बापनाजी ने सिखाया

  
Last Updated:  February 12, 2019 " 02:12 pm"

इंदौर: खबरों के बादशाह और अपने साथियों के बीच ‘बापू’ के आत्मीय संबोधन से पहचाने जाने वाले वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र बापना अब हमारे बीच नहीं हैं। सोमवार शाम एक सड़क हादसे में उनकी जिंदगी का सफर थम गया।आज { मंगलवार 12 फरवरी } सुबह रीजनल पार्क मुक्तिधाम पर बापना जी को अंतिम विदाई देने हर वो शख्स मौजूद था जिसकी पीठ पर कभी न कभी उन्होंने हाथ रखकर उसका हौसला बढ़ाया था, हर वो इंसान मौजूद था जिसके सुख- दुख में बापू ने हाथ बंटाया था। वो तमाम संगी- साथी उपस्थित थे जिनके साथ बतियाते चाय की चुस्कियां लेना बापू की दिनचर्या में शुमार था। वो नेता, मंत्री अधिकारी और विशिष्टजन भी पहुंचे थे जिनके बारे में बापू लिखते रहते थे या खबरों को लेकर जिनसे अक्सर उनकी बात होती रहती थी। सबकी जुबान पर बापना जी से जुड़ी यादें थी, संस्मरण थे, किस्से थे। सैकड़ों आंखें सजल थीं वहीं बापनाजी के बरसों के साथी कीर्ति राणाजी फुट- फुट कर रो रहे थे। हक़ीक़त सामने थी। बापू याने महेंद्र बापना जी की पार्थिव देह देखते ही देखते पंचतत्वों में विलीन हो गई पर दिल मानने को तैयार नहीं था कि बापू जैसा जांबाज पत्रकार, जिंदादिल इंसान और रिश्तों को बनाने व जीनेवाला शख्स चला गया है।
बापना जी और सांध्य दैनिक अग्निबाण एक- दूसरे के पर्याय बने रहे। 35 साल पहले इस अखबार के साथ शुरू हुआ उनका पत्रकारिता का सफर सड़क हादसे में जिंदगी का सफर खत्म हो जाने तक बना रहा। वे चाहते तो कहीं भी, किसी भी बड़े संस्थान में जा सकते थे। सम्पादक या उससे भी बड़ा पद सुशोभित कर सकते थे। पर न तो उन्हें इंदौर छोड़ना गवारा था और न ही फील्ड की पत्रकारिता। यही कारण था कि वे जीवनभर सिटी रिपोर्टर बने रहे। स्पॉट पत्रकारिता क्या होती है ये बापनाजी ने ही नई पीढ़ी को सिखाया। कोई भी घटना- दुर्घटना या हादसा हो जाए तो स्पॉट पर सबसे पहले पहुंचने वाले बापनाजी ही होते थे। नियति का खेल देखिए कि एक हादसे ने ही उनकी जान ले ली।
ऐसा नहीं है कि बापनाजी केवल क्राइम रिपोर्टिंग में ही सिध्दहस्त थे, राजनीति और सामाजिक विषयों पर भी उनकी गहरी पकड़ थी। संदर्भ तो जैसे उन्हें रटे- रटाए रहते थे। खबरों की खबर निकालने में उनका कोई सानी नहीं था।
इंदौर शहर ने कई दिग्गज पत्रकार दिए हैं पर अपने काम को जीते हुए संबंधों को कैसे जिया जाता है ये बापनाजी ने ही बताया।
बापू तो चले गए पर उनका जीवन नई पीढ़ी के पत्रकारों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा।
विनम्र श्रद्धांजलि…।

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