1988 में हुआ था पुलिस विभाग में पदस्थ विनोद कुमार चौरसिया का किडनी ट्रांसप्लांट।
ट्रांसप्लांट के बाद 37 वर्षों से जी रहें हैं सामान्य जीवन।
इंदौर : मानव शरीर में दो किडनियां होती हैं। अनियंत्रित बीपी, डायबिटीज या अन्य किसी कारण के चलते किडनी खराब हो जाए तो ट्रांसप्लांट ही एकमात्र सहारा बचता है क्योंकि डायलिसिस पर ज्यादा समय तक निर्भर नहीं रहा जा सकता। जागरूकता के अभाव में लोग अभी भी किडनी ट्रांसप्लांट कराने में हिचकते हैं जबकि ट्रांसप्लांट के बाद न केवल सामान्य दिनचर्या के साथ लंबा जीवन बिना किसी परेशानी के जिया जा सकता है। ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जिसमें किडनी ट्रांसप्लांट के 50 साल से अधिक होने के बाद भी लोग सामान्य जीवन जी रहे हैं।किडनी ट्रांसप्लांट का एक ऐसा उदाहरण इंदौर में भी है। युवावस्था में किडनी ट्रांसप्लांट के बाद शादी, नौकरी और अब रिटायरमेंट। किडनी ट्रांसप्लांट की सफलता की जीती-जागती मिसाल हैं पुलिस के वायरलेस विभाग में पदस्थ एएसआई विनोद कुमार चौरसिया(62)। पुलिस विभाग में कॉन्स्टेबल के तौर पर उनके करियर की शुरुआत हुई। वे छिंदवाड़ा में पदस्थ थे। सब कुछ अच्छा चल रहा था तभी 1988 में सिर्फ 22 साल की उम्र में पीलिया के कारण इन्फेक्शन से उनकी दोनों किडनियां ख़राब हो गई। जबलपुर मेडिकल कॉलेज से उन्हें सेंट्रल इंडिया के तत्कालीन एकमात्र किडनी ट्रांसप्लांट सेंटर चोइथराम अस्पताल रेफर किया गया। यहां उनके केस की स्टडी कर नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. अचल सिपाहा ने उन्हें किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी। विनोद चौरसिया की मां ने उन्हें किडनी डोनेट की और 19/11/1988 को उनका सफल ट्रांसप्लांट किया गया। 1994 में चौरसिया की शादी और दो बच्चे हुए जिन्हें उन्होंने अच्छी शिक्षा प्रदान की। बड़ा पुत्र विनायक टीसीएस इंदौर में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्यरत है जबकि छोटा पुत्र विवेक चौरसिया बिल्डिंग मटेरियल का कारोबार कर रहे हैं। नौकरी में प्रमोशन भी मिला और 31 जनवरी को वे असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर रेडियो के पद से रिटायर हो गए। उनकी कहानी हर उस व्यक्ति के लिए उम्मीद का दूसरा नाम है जो खुद या जिसके परिजन किडनी की बीमारी से जूझ रहे हैं। चौरसिया इस बात की मिसाल है कि किडनी ट्रांसप्लांट के बाद भी सामान्य दिनचर्या के साथ विवाह कर पारिवारिक जीवन जिया जा सकता है। आप पुलिस विभाग जैसी कठिन नौकरी भी कर सकते हैं और अपने जीवन को पूरे आनंद के साथ जी सकते हैं। चौरसिया कहते हैं कि ट्रांसप्लांट के बाद मेरे दो प्रमोशन हुए। ट्रांसप्लांट के बाद मैंने तीन साल तक रायपुर में भी सेवाएं दी। इससे साबित होता है कि ट्रांसप्लांट के बाद सही देखरेख के जरिये सामान्य जीवन जिया जा सकता है।
परिवार से लेकर सरकार तक सभी का सहयोग मिला।
चौरसिया बताते हैं, किडनी ट्रांसप्लांट के लिए जहां एक ओर परिवार का सहयोग मिला वहीं ऑफिस के साथियों ने भी पूरा सहयोग किया। उस समय मुझे ब्लड की जितनी भी आवश्यकता थी वह सभी मेरे साथियों ने ही उपलब्ध कराया। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद पुलिस की पूरी नौकरी की। चौरसिया का दावा है कि वे संभवतः एकमात्र ऐसे पुलिसकर्मी हैं, जिन्होंने किडनी ट्रांसप्लांट के बाद इतना लंबा और सुखी पारिवारिक जीवन जिया है। इसी के चलते उन्होंने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के लिए भी अप्लाई किया है। चौरसिया बताते हैं ट्रांसप्लांट अब आधुनिक तकनीक से होने लगा है जिसमें खतरा कम से कम रह गया है इसलिए परिवार के सदस्यों को ज्यादा से ज्यादा डोनेशन की तरफ ध्यान देना चाहिए और अपने परिवार के मरीज को नया जीवन देना चाहिए अब इसमें खतरा नाम मात्र रह गया है।
शादी में नहीं आई कोई समस्या।
एएसआई चौरसिया की पत्नी कुमुद चौरसिया ने बताया कि उनकी शादी को 31 वर्ष हो चुके हैं। जब शादी की बात चली तो डॉ. अचल सिपाहा ने हिम्मत दी और कहा कि कोई समस्या नहीं आएगी। उनकी समझाइश के बाद परिवार वाले भी मान गए। 1994 में शादी हुई, तब से अब तक कभी कोई स्वास्थ्यगत समस्या सामने नहीं आई। दोनों बच्चे भी अब अपने पैरों पर खड़े हैं।
मरीज और डोनर दोनों जीते हैं स्वस्थ्य जीवन।
चौरसिया का किडनी ट्रांसप्लांट करवाने वाले सीनियर नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ.अचल सिपाहा बताते हैं कि ट्रांसप्लांट के लिए डोनर रूप में चौरसिया कि मां आगे आई। जब उन्हें हमने समझाया कि उनका और उनके बेटे का एक ऑपरेशन होगा, जिससे उनके बेटे की जान बचाई जा सकती है तो वह तुरंत तैयार हो गई। गांव की भोलीभाली सी महिला शिया बाई ने कहा कि यदि मेरे एक छोटे से ऑपरेशन से मेरे बच्चे की जान बचाई जा सकती है तो आप तुरंत ऑपरेशन कर दीजिए। 6 महीने आराम करने के बाद वे भी पूर्णतः स्वस्थ्य हो गई और 70 से अधिक वर्षों तक जीवित रही। किडनी ट्रांसप्लांट को लेकर लोग अनावश्यक रूप से डरते हैं। ज्यादातर लोग किडनी ट्रांसप्लांट के बाद सामान्य जीवन जीते हैं।किडनी यदि माता-पिता या भाई-बहन की हो तो सफलता की संभावना 90% तक बढ़ जाती है।
जीवन की गुणवत्ता बढ़ाता है ट्रांसप्लांट।
चौरसिया की मौजूदा नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. नेहा अग्रवाल कहती हैं कि 70% किडनी ट्रांसप्लांट में किसी तरह की समस्या नहीं होती है। ट्रांसप्लांट के बाद इन्फेक्शन का खतरा रहता है क्योंकि इन्हें लगातार इम्युनिटी कम करने वाली दवाइयां दी जाती है इसलिए हेल्दी लाइफस्टाइल और डाइट रखना बहुत जरुरी होता है। यदि आप डॉक्टर की हर बात का अक्षरशः पालन कर रहे हैं तो ट्रांसप्लांट के बाद पूरा जीवन अच्छी तरह जिया जा सकता है, जो डायलिसिस के साथ संभव नहीं होता है। उन्होंने बताया कि ट्रांसप्लांट के बाद एएसआई चौरसिया को केवल दो दवाइयां नियमित रूप से लेनी पड़ती हैं वहीं कुछ सावधानियां भी रखनी पड़ती हैं। बाहर के खानपान से परहेज के साथ गर्म अथवा आरओ का पानी पीने की सलाह ट्रांसप्लांट के बाद हर मरीज को दी जाती है। एएसआई चौरसिया ने सभी हिदायतों का पूरी तरह पालन किया इसलिए वे ट्रांसप्लांट 37 वर्षों बाद भी सामान्य जीवन जी रहे हैं। उन्हें कोई समस्या नहीं है।