वर्ष 2020 के कोरोना संकट ने अद्वितीय शिक्षाओं को हमारे जीवन में जोड़ दिया है। पिछले कई वर्षो में भी शायद जितने पाठ का ज्ञान न हो सका, वह कुछ ही महीनों में कोरोना ने सीखा दिए हैं। आज हम आर्थिक मंदी के दौर में हैं। महान अर्थशास्त्री चाणक्य के अनुसार हमें बुरे समय या विपत्ति के लिए कुछ न कुछ धन अवश्य संग्रह करके रखना चाहिए। यह बात आज की परिस्थितियों के देखते हुए स्वतः सिद्ध हो गई। प्राचीन काल से प्रचलित योग के महत्व को आज हमने जाना कि किस प्रकार मजबूत प्रतिरक्षा तंत्र के साथ हम असाध्य रोगों का सामना कर सकते हैं। प्रकृति ने भी शिक्षा दी कि मानव खुद को वसुंधरा का नरेश न समझे। उन्नति की अंधाधुंध दौड़ में प्रकृति के प्राकृतिक संतुलन के पक्षों को नगण्य न समझे। सनातन धर्म के मूल्यों का महत्व शायद अब जाकर समझ में आया कि क्यों हाथ जोड़कर अभिवादन करना चाहिए एवं क्यों सात्विक जीवन शैली ही श्रेयस्कर होती है।
कोरोना ने सीमित संसाधनों में जीना सिखाया..
इस लॉकडाउन में महिलाओं ने बहुत कुछ नवीन करने का प्रयास किया। पुरुष वर्ग ने भी उनके साथ घर के कार्यो में सहभागिता निभाई। समाज के बहुत से उदार वर्ग असहायों की निःस्वार्थ सेवा के लिए आगे आए । कोरोना काल में डॉक्टर, पुलिस, स्वास्थ्यकर्मी, सफाईकर्मी, दान-दाता, आवश्यक सेवा प्रदाता ही सच्चे नायक के रूप में सामने आए। कोरोना त्रासदी के इस दौर ने हमे आपस में प्रत्यक्ष मिलकर वार्तालाप करने के बजाय यह सीखा दिया कि दूर रहकर भी वेबिनार, ऑनलाइन के जरिए आपस में विचारो एवं ज्ञान का आदान-प्रदान किया जा सकता है। बिना व्यर्थ खर्चो के भी जीवन शांतिप्रिय तरीके से चल रहा है। हम दूसरों पर निर्भर हुए बिना अपनी हर समस्या को कुछ हद तक स्वयं सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। हमारी जीवन जीने की शैली में अभूतपूर्व परिवर्तन आए हैं। हम तीज-त्यौहार और कई महत्वपूर्ण उत्सवों को घरों में ही एवं उपलब्ध संसाधनों के साथ मना रहे हैं। कोरोना ने शहरी एवं ग्रामीण परिवेश को स्वच्छता के प्रति सतर्क एवं जाग्रत किया है। कोरोना ने हमें साफ-सफाई के नियमों के प्रति जागरूक किया है।
लॉकडाउन में प्रसारित किए गए रामायण-महाभारत ने आज हमें धर्म का ज्ञान कराया है। कोरोना ने सही मायनों में हमें आजादी की कीमत समझाई है। होटल, मॉल, शॉपिंग इन सब से दूर आज हम आंतरिक खुशी अपनों में ढूँढ रहे है। घर का शुद्ध भोजन हम करने लगे हैं। शादी-ब्याह में अब कोई आडंबर नहीं रहा है। फिजूल खर्च नियंत्रित हुए हैं। संतुलित व्यय के बीच विवाह सम्पन्न हो रहे हैं। बचत राशि को हम किसी जरूरतमन्द की शिक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी मदद के रूप में उपयोग कर सकते हैं। इसी प्रकार मृत्यु भोज पर होने वाले अनावश्यक खर्चों पर भी नियंत्रण आया है। संतोष में ही सच्चा सुख निहित है, यह एहसास कोरोना ने दिलाया है।कोरोना काल में यह भी अनुभव हुआ कि घर में बहुत से छोटे-बड़े ऐसे कार्य होते हैं जिनमें परिवार के सदस्य चाहे वह बच्चे हो या बूढ़े सभी हाथ बंटा सकते हैं।
सेहत को लेकर हुए जागरूक..
आज विलासिता एवं आडंबर की चीजे हमारे लिए ज्यादा उपयोगी नहीं रही हैं। कोरोना ने अनायास ही हमें दूसरों के मर्म को महसूस करने पर विवश किया है और यह शिक्षा दी कि स्वस्थ्य शरीर ही जीवन की सबसे बड़ी पूँजी है।जीवन के बहुत सारे सत्य पक्ष उजागर हुए है। हमने कई बार आपदा में अवसर को तलाशने का प्रयास किया। हमने बिना तीर्थ स्थानों में जाकर हृदय के सच्चे भावों से परम पिता परमेश्वर का आह्वान किया और घर को ही मंदिर में परिवर्तित किया। आर्थिक मंदी ने सच्चे और झूठे मित्रों एवं रिश्तेदारों के बीच अंतर करना सीखा दिया।अब हमने व्यर्थ बाहर घूमना बंद कर दिया है। वही अमूल्य समय हम घर के महत्वपूर्ण कार्यों में दे रहे हैं।
जीवन शैली में आया बदलाव..
अब हमारे आश्वासन के कुछ शब्द ही पड़ोसियों एवं मित्रों का मनोबल बढ़ा रहे हैं। हमारी जीवन शैली में अविश्वासनीय बदलाव जैसे: व्यर्थ घूमना, यत्र-तत्र थूकना, व्यसन संबंधी आदतों में परिवर्तन आया है। कोरोना विषाणु ने जिंदगी में ठहराव सा ला दिया है। शायद ये कोरोना संकट हमारे द्वारा किए गए पूर्व कर्मों का परिणाम हैं। आज हम सबका दायित्व है कि हम हर निर्णय देश, समाज एवं सम्पूर्ण मानवता के हित को दृष्टिगत रखकर ले। यह चिंतन मनन का विषय है कि किस प्रकार हम हर वर्ग को मजबूती प्रदान करें और उनका मनोबल बढ़ाएं। आज भले ही सम्पूर्ण विश्व कोरोना त्रासदी से जूझ रहा है परंतु वास्तव में कोरोना ने हमें अपनी जीवन शैली में अभूतपूर्व बदलाव कर आडंबरमुक्त, स्वच्छ, मितव्ययी एवं अनुशासित जीवन जीना सीखा दिया है।“`
*डॉ. रीना रवि मालपानी*