इंदौर: आखिरकार लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन को भी टिकट की दौड़ से हटना पड़ा। आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गजों का टिकट कटने के बाद आशंका यही जताई जा रही थी कि सुमित्रा ताई को भी इस बार उम्मीदवारी नहीं मिलेगी लेकिन 8 बार की अजेय योद्धा ताई को भरोसा था कि इंदौर से वे ही चुनाव लड़ेंगी क्योंकि उनकी जीत का रिकॉर्ड बेहद अच्छा रहा है। उन्होंने तो काफी पहले से चुनाव लड़ने की तैयारी के साथ कार्यकर्ताओं की वार्ड वार बैठकें लेना भी शुरू कर दिया था। इंदौर में उनके कद का कोई और नेता बीजेपी के पास नहीं होने से सभी को ये भरोसा था कि ताई ही 9 वी बार भी चुनाव लड़ेंगी पर जैसे- जैसे समय बीतने लगा ये भरोसा डगमगाने लगा।
75 की उम्र आयी आड़े..।
ऐसा नहीं है कि सुमित्रा महाजन की सक्रियता में कोई कमी थी पर उम्रदराज नेताओं को चुनाव नहीं लड़ाने की मोदी- शाह की नीति उनपर भारी पड़ गई। मप्र की कई सीटों पर बीजेपी ने अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए लेकिन 30 साल से उसका गढ़ मानी जानेवाली इंदौर की सीट पर प्रत्याशी की घोषणा नहीं कि गई। ये संदेश था ताई के लिए की वे इस सीट से अपनी दावेदारी खुद ही छोड़ दें। हाल ही में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ने भी अप्रत्यक्ष रूप से ताई को इशारा किया था वे खुद ही चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर दें।
निराश ताई के पास नहीं था कोई विकल्प।
आडवाणी और जोशी का टिकट कटने के बाद से ही ये माना जाने लगा था कि अब बारी ताई की है। ताई को हवा का रुख उसी समय भांप लेना था पर पता नहीं क्यों उन्हें ये यकीन था की उनकी बेदाग छवि और तीन दशक के जीत के रिकॉर्ड के चलते पार्टी उनका टिकट नहीं काटेगी। लंबे इंतजार के बाद भी जब उन्हें प्रत्याशी बनाने की घोषणा पार्टी की तरफ से नहीं हुई तो उनका धैर्य जवाब दे गया और उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर दिया। कहा तो ये भी जा रहा है कि पार्टी आलाकमान ने उन्हें टिकट काटने की बात बता दी थी ऐसे में ताई के सामने कोई और विकल्प नहीं रह गया था।
दावेदार हुए सक्रिय..।
ताई के पीछे हटते ही चुनाव लड़ने के इच्छुक कई दावेदार सक्रिय हो गए हैं। हालांकि कैलाशजी को टिकट देने की चर्चा फिर से चल पड़ी है। इसके अलावा महापौर मालिनी गौड़ और विधायक रमेश मेंदोला भी मजबूत दावेदार हो सकते हैं।