दानदाताओं के शहर में पुत्र के दाह संस्कार के लिए भटकने पर मजबूर हुए गरीब परिजन, सफाईकर्मी, गार्ड और एक कारोबारी बनें देवदूत..

  
Last Updated:  July 15, 2020 " 03:20 pm"

अस्पताल के सफाई कर्मी और गार्ड ने की शव वाहन में मदद..!

फलक पर नाम लिखवाने वाले दानदाताओं की नहीं जागी संवेदना..?

कारोबारी सुक्का भाटिया ने निभाया मानवता का धर्म..

*कीर्ति राणा*

इंदौर : शहर के श्मशान घाटों पर दानदाताओं के नाम नंबर लिखे जरूर हैं किंतु मुसीबत के वक्त दानदाता भी बहाने बनाने से बाज नहीं आते। बीते रविवार को दोपहर से शाम तक निर्धन-असहाय वृद्ध माता-पिता अपने इकलौते जवान बेटे के दाह संस्कार के लिए हाथ फैलाते रहे। लॉक डाउन वाला रविवार नहीं होता तो इनकी मदद के लिए कई हाथ उठ जाते।

अस्पताल के सफाई कर्मी और गार्ड ने शव वाहन के लिए किया चंदा..

एमटीएच अस्पताल के भृत्य संजय करोसिया और गेटकीपर योगेश भंडारी ने कुछ पैसे मिलाए, कुछ लोगों से मदद लेकर शव वाहन के लिए 800 रु तो जुटा लिए लेकिन श्मशान घाट के ठेकेदारों ने बिना लकड़ी का दाम चुकाए शवदाह से इंकार कर दिया।अंतत: श्रमिक क्षेत्र के व्यापारी सुक्का भाटिया और उनके भतीजे यशपाल ने मदद की तो शवदाह हो सका।

खांसी की शिकायत पर एमटीएच में किया था भर्ती।

सरस्वती नगर निवासी मुन्नीबाई और गणपत गेहलोत के पुत्र संजय गेहलोत (25 वर्ष) को गत सोमवार को खांसी की शिकायत पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की सर्वे रिपोर्ट के आधार पर एमटीएच अस्पताल में भर्ती कराया गया था, हालांकि उसकी रिपोर्ट नेगेटिव आई थी। शनिवार को छुट्टी हो गई थी लेकिन कोरोना संक्रिमत मरीज होने की शंका में ऑटो रिक्शा वाले ने सवारी ले जाने से इंकार कर दिया।इसी बीच संजय को फिर बैचेनी महसूस हुई तो उसे वापस दाखिल करा के मां- बाप घर आ गए।रविवार की सुबह सरस्वती नगर निवासी पड़ोसी को अस्पताल से संजय के निधन और उसका शव एमवायएच में रखा होने की सूचना दी गई।
एमटीएच अस्पताल के सफाईकर्मी संजय करोसिया और मेनगेट गार्ड योगेश भंडारी मृतक संजय के वृद्ध माता-पिता को लेकर एमवायएच पहुंचे। अस्पताल वालों ने शव सौंप तो दिया लेकिन छुट्टी मजदूरी करने वाले गणपत गेहलोत के पास बेटे का शव ले जाने और दाह संस्कार करने के लिए फूटी कौड़ी तक नहीं थी।बेटा पेंटर था, हर दिन हजार-आठ सौ रु कमा लेता था,जो थोड़ी बचत कर रखी थी वह अस्पताल आने-जाने व अन्य खर्चों में समाप्त हो गई।
संजय और योगेश ने आसपास के लोगों से चंदा जुटाकर शव वाहन का किराया ₹ 800 एकत्र कर लिए।यहां से शव लेकर पहले जूनी इंदौर श्मशान घाट पहुंचे। वहां के ठेकेदार ने लकड़ी खर्च के 4 हजार रु जमा कराने पर ही दाह कर्म करने की बात कही। यहां लगे बोर्ड पर लिखे दानदाताओं से आर्थिक मदद के लिए संजय करोसिया ने फोन भी लगाया किंतु बात नहीं बनी।
यहां से शव लेकर वे मालवा मिल श्मशान घाट पहुंचे वहां भी यही समस्या सामने आई।शव वाहन वहीं छोड़कर दोनों दाहकर्म की व्यवस्था के लिए मालवा मिल क्षेत्र में दानदाता ढूंढने निकले। होटल दिव्य पैलेस पर व्यापारी सुक्का भाटिया को उन्होंने परेशानी बताई। सुक्का और उनके भतीजे यशपाल भाटिया ने उनकी परेशानी सुनकर लकड़ी खर्च में सहयोग किया तब कहीं जाकर मृतक युवक का अंतिम संस्कार हो सका। इकलौते पुत्र की मौत के बाद अब माता-पिता के सामने समस्या थी कि रात के खाने का क्या होगा।श्मशान घाट में इस सारे माजरे के साक्षी एक व्यक्ति ने उनकी मदद के लिए कुछ नकदी रुपए दिए, तो दोनों की आंखों से टपकते आंसु दुआओं में बदल गए।

बुरे वक्त में किसी के काम आना
तो सबसे बड़ा धर्म -सुक्का भाटिया ।

व्यापारी सुक्का भाटिया का कहना था वे दोनों मदद के लिए आए थे। पूरी घटना सुन कर मेरा तो क्या किसी का भी दिल पसीज जाता। बुरे वक्त में हम किसी के काम आ जाएं इससे बड़ा धर्म और मानवीयता हो नहीं सकती। मेरा भतीजा यशपाल भी सहयोग को राजी हो गया।

नाम लिखवाने में आगे रहने वाले दानदाताओं ने किया निराश..

एमटीएच अस्पताल के सफाईकर्मी संजय करोसिया और योगेश भंडारी का कहना था हमारे पास जितने रुपए थे इस काम के लिए दे दिए। दुख तो यह है कि बोर्ड पर जिन दानदाताओं के नाम लिखे हैं, उन्होंने सहयोग तो दूर ढंग से बात तक नहीं की।लॉकडाउन के कारण भी मदद जुटाने में परेशानी आई, सुक्का भाटिया जी ने जो सहयोग किया वही सच्चा धर्म है।

(फ़ोटो कारोबारी सुक्का भाटिया का है, जिनकी मदद से मृत युवक का दाह संस्कार हो सका)

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