मप्र मराठी साहित्य सम्मेलन के औपचारिक शुभारंभ समारोह में बोले अतिथि।
मराठी को रोजगार की भाषा बनाने पर भी दिया जोर।
वरिष्ठ मराठी साहित्यकारों का किया गया सम्मान।
इंदौर : तकनीकि क्रांति के इस दौर में नई पीढ़ी अपनी मातृभाषा से दूर होती जा रही है। पढ़ने की जो ललक पुरानी पीढ़ी में हुआ करती थी वो नई पीढ़ी में नजर नहीं आती, ऐसे में मातृभाषा मराठी के अस्तित्व का बनाए रखना बड़ी चुनौती है। जरूरत इस बात की है कि नई पीढ़ी को मराठी साहित्य संबंधी पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाए।
ये बात मप्र मराठी साहित्य संघ और मप्र साहित्य अकादमी भोपाल के बैनर तले आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन और नवें प्रांतीय सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में वक्ताओं ने कही। दो दिवसीय इस सम्मेलन का आयोजन रीगल तिराहा स्थित प्रीतमलाल दुआ सभागृह में किया गया है।
भाषा को रोजगार से जोड़ना जरूरी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. मिलिंद जोशी ने मराठी भाषा के सरंक्षण और उसे वैश्विक स्तर पर पहुंचाने के लिए उसे रोजगार की भाषा बनाने पर जोर दिया। उनका कहना था कि नई पीढ़ी उसी भाषा को अपनाती है, जिसमें उसे रोजगार के अवसर मिले।
बच्चों में मराठी साहित्य पढ़ने की आदत डालें।
डॉ. जितेंद्र जामदार ने कहा कि मराठी भाषी परिवारों के बच्चे अपने घरों में ही अपनी मातृभाषा मराठी में बात नहीं करते। माता – पिता को चाहिए कि वे बच्चों को मराठी में बात करने के लिए समझाइश दें। यही नहीं उन्हें मराठी भाषा, साहित्य और संस्कृति से जुड़ी पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रेरित करें। कार्यक्रम में मप्र मराठी अकादमी के निदेशक उदय परांजपे ने भी अपने विचार रखे।
इन साहित्यकारों का किया गया सम्मान।
कार्यक्रम के दौरान प्रशांत पोल जबलपुर, श्रीनिवास हवलदार और मेघना निरखीवाले इंदौर, चंद्रकांत जोशी नासिक और उमा कंपूवाले ग्वालियर को शॉल – श्रीफल भेंटकर सम्मानित किया गया।
मराठी साहित्य सम्मेलन की औपचारिक शुरुआत अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुई। आयोजकों की ओर से अतिथि स्वागत मप्र मराठी साहित्य संघ के अध्यक्ष पुरुषोत्तम सप्रे ने किया। संचालन मोहन रेडगांवकर ने किया।
इस अवसर पर उस्ताद अलाउद्दीन खां कला और संगीत अकादमी, मप्र के निदेशक जयंत भिसे सहित कई गणमान्य नागरिक और साहित्य प्रेमी मौजूद रहे।