इंदौर : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह डॉ कृष्ण गोपाल ने कहा है कि नई शिक्षा नीति में लौकिक और आध्यात्मिक शिक्षा का समावेश किया गया है । हमारी शिक्षा की व्यवस्था में ऐसा ज्ञान होना चाहिए जिससे विद्यार्थी में अहंकार नहीं बल्कि लोकमंगल का भाव आएं । हम जब अपने देश के पुरातन काल की शिक्षा व्यवस्था को देखेंगे तो यह पाएंगे कि उसमें आध्यात्मिकता के भाव ने पवित्रता को जागृत किया था । आजादी के बाद भारत सरकार द्वारा दो बार बनाई गई नई शिक्षा नीति, क्रियान्वयन ना हो पाने के कारण फेल हो गई ।
मंगलवार दोपहर यहां विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में विश्वविद्यालय के खंडवा रोड स्थित सभागार में आयोजित दो दिवसीय अखिल भारतीय संस्थागत नेतृत्व समागम को संबोधित कर रहे थे । अपने संबोधन में देशभर के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आए कुलपतियों और शिक्षा संस्थानों के निदेशकों तथा शिक्षाविदों से शिक्षा की स्थिति पर उन्होंने सीधा संवाद किया । अपने संवाद में उन्होंने कहा कि भारत सरकार द्वारा जबसे नई शिक्षा नीति दी गई है तबसे इस बात की चर्चा चल रही है कि हमारे देश में शिक्षा का प्रारूप क्या हो । जब हम अपने देश में शिक्षा की बात कर रहे हैं तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि विश्व की शिक्षा की स्थिति क्या है ? आज हम राष्ट्रीय विकास और शिक्षा की बात करते हैं तो उसके लिए सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि राष्ट्रीय का मतलब क्या है ? यह शब्द जर्मनी से पैदा होकर आया है । वहां के लोगों का मानना था कि हम एक्सक्लूसिव हैं इसलिए यह हमारी अपनी एक अलग कंट्री है । पूरे विश्व में कहीं पर भाषा, कहीं पर इतिहास, धर्म ,संस्कृति, हेरिटेज के नाम पर अलग-अलग देश बने । इन सभी देशों ने अपने आपको नेशनल कहा और एक्सक्लूसिव माना । यदि हम भारत के संदर्भ में बात करें तो हम एक्सक्लूसिव ना होकर इंक्लूसिव है । हम तो सभी के लिए हैं, सभी के साथ हैं । यदि हम भारत को एक्सक्लूसिव बनाने की बात करते हैं तो हम अपने देश को शाश्वत मौलिक दर्शन से दूर करने की बात करते हैं । हमारे देश में तो एकत्व की भावना में मौलिक दर्शन की व्यवस्था का चित्रण है । हम अनंत विविधता को भी बांधकर चलते हैं । हमारे देश की अंतरात्मा आध्यात्मिक है यदि यह अंतरात्मा नहीं रहेगी तो भारत भी नहीं रहेगा।
उन्होंने शिक्षा की चर्चा करते हुए कहा कि जब देश गुलाम था तो उस समय पर हमारे देश की शिक्षा को लेकर भ्रम पैदा किया गया । उसके पूर्व की शिक्षा की स्थिति को हम देखें तो हमारे देश में कभी भी शिक्षा का कोई शुल्क नहीं लिया जाता था । गुरुकुल की व्यवस्था थी और वहां पढ़ने के लिए आने वाले हर बच्चे को शिक्षा उपलब्ध कराई जाती थी और उसे एक योग्य तथा जिम्मेदार नागरिक के रूप में तैयार किया जाता था । गुलामी के दौरान अंग्रेजों द्वारा शिक्षा के माध्यम से हमारी संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश की गई । उस समय हमारे देश के शिक्षा संस्थान पवित्र थे । वहां पर मर्यादा थी । हमारे देश में शिक्षा में लौकिक और आध्यात्मिक शिक्षा का समावेश था । यदि हम अपने देश की शिक्षा की व्यवस्था को बेहतर करना चाहते हैं तो उसमें आध्यात्मिक शिक्षा का होना आवश्यक है । इसी से विद्यार्थी को लोकमंगल का भाव मिल सकेगा । इसी से विद्यार्थी यह जान सकेगा कि हमें अधर्म नहीं करना है । आध्यात्मिकता के भाव से सद्गुण का उद्भव होता है । प्रेम उत्पन्न होता है और दोष समाप्त होता है ।
उन्होंने कहा कि हमारे देश की शिक्षा को सेक्युलर बनाकर उसके दार्शनिक सिद्धांत हटा दिए गए । शिक्षा को पूरी तरह से आध्यात्मिक भाव से अलग कर दिया गया। इस शिक्षा को भारतीय दर्शन के प्रकाश में किया जाना आवश्यक है।आजादी के पूर्व तो हमारे देश में आध्यात्मिक शिक्षा भी अनिवार्य थी लेकिन आजादी के बाद इस पर विचार ही नहीं किया गया । भारत सरकार द्वारा 1963 में डॉ. संपूर्णानंद की अध्यक्षता में बनाई गई कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में यह कहा था कि हमारी शिक्षा नीति में शिक्षा की गंगा तो गंगोत्री में ही सूख गई है । इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि पिंजरा खाली रह गया है और पक्षी उड़ गया है । हमें अपने बच्चों को ऐसी शिक्षा देना होगी जिससे उनके मन में अहंकार का भाव जागृत नहीं हो बल्कि वह क्षमतावान बनकर तैयार हो और इस विश्व का नेतृत्व करें । हमारे अतीत में ऐसे कई उदाहरण हैं जब बड़े-बड़े पदों पर आसीन व्यक्तियों ने उस पद और बड़े वेतन को ठोकर मार दी और एक शिक्षक के रूप में कार्य करना पसंद किया था । भारत की प्रगति की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जिस समय देश को आजादी मिल रही थी उस समय अंग्रेजों ने पूरी दुनिया में यह भ्रम फैला दिया था कि भारत के लोग भूख से मर जाएंगे । इन लोगों में प्रशासनिक क्षमता नहीं है । यह लोग कई टुकड़े में बंट जाएंगे । जिस समय हमारा देश आजाद हुआ था उस समय देश के पास में 40 से 50 करोड़ आबादी का पेट भरने के लायक खाद्यान्न भी नहीं था । आज हमारे देश का खाद्य पदार्थों का निर्यात 12665 जहाज हैं, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है । आज दुनिया में सबसे ज्यादा दूध भारत में होता है । हमारे यहां 18 करोड टन दूध पैदा होता है । शक्कर और हरी सब्जियां भी दुनिया में सबसे ज्यादा भारत ही पैदा करता है । हम ही कई देशों को यह सभी वस्तुएं उपलब्ध करा रहे हैं । हमारे देश में आजादी के समय चिकित्सा शिक्षा की मात्र 1000 सीट थी , जबकि आज 98000 सीट हैं । उस वक्त हमारे देश में मात्र 7% साक्षरता थी जबकि आज 80% से ज्यादा साक्षरता है । ईसा से 1000 साल पहले विश्व की अर्थव्यवस्था में भारत का हिस्सा 30% था जबकि भारत गुलामी से जब आजाद हुआ उस समय पर यह हिस्सा 2% रह गया था । भारत हर चीज का एक्सपोर्ट करता था । हमें अपने आज के दौर के विद्यार्थियों को पुरातन काल के इस गौरवशाली इतिहास से भी अवगत कराना होगा । भारत की शिक्षा नीति की सफलता हमारे अतीत के गौरव को वर्तमान की चुनौतियों के साथ मिलाकर विद्यार्थियों को पढ़ाने से है । हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हमें अपने देश को अमेरिका की जेरॉक्स कॉपी नहीं बनाना है । यदि ऐसा हमने किया तो जो परेशानी आज अमेरिका भोग रहा है वहीं आने का वाले कल में भारत को भुगतना पड़ेगी । ऐसी स्थितियां नहीं बने इसी के लिए वर्तमान में नई शिक्षा नीति लाई गई है, जो उन्नत और विश्व गुरु भारत का मार्ग प्रशस्त करेंगी।