न्यायालय से जुड़ा है जनता का विश्वास, इसको बनाए रखने के लिए करें काम..

  
Last Updated:  May 21, 2023 " 12:36 pm"

मेडिएशन बिल आने के बाद लंबित मामलों के निपटारे में तेजी आएगीं – जस्टिस माहेश्वरी।

इंदौर : सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जितेंद्र कुमार माहेश्वरी के अनुसार देश की जनता की आस्था और विश्वास आज भी न्यायालय के साथ जुड़ है। जल्दी ही मेडिएशन बिल आने वाला है । इसके बाद न्यायालय के लंबित मामलों के निपटारे में और तेजी आ जाएगी।
न्यायमूर्ति माहेश्वरी जाल सभागृह में अभ्यास मंडल द्वारा आयोजित 62 वीं ग्रीष्मकालीन व्याख्यानमाला के अंतिम दिन शनिवार को ‘न्याय प्रक्रिया में गतिशीलता’ विषय पर संबोधित कर रहे थे । उन्होंने भारत में न्याय प्रक्रिया का इतिहास , रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा न्याय प्रक्रिया को लेकर कही गई बातों और कानूनी प्रक्रिया में समय – समय पर आई तेजी के बारे में जानकारी दी।

न्याय की अहमियत पर डाला प्रकाश।

उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर देवता होते हैं उसे हम देवालय कहते हैं और जिस स्थान पर न्याय होता हैं उसे हम न्यायालय कहते हैं । उसे कैसा बनाना है यह आप पर निर्भर है । राजा विक्रमादित्य और देवी अहिल्याबाई के उदाहरण देते हुए उन्होंने न्याय की अहमियत को सभी के समक्ष रखा । उन्होंने अपने उद्बोधन में रामचरितमानस के सुंदरकांड के प्रसंग से लेकर प्लेटो और चाणक्य के विचारों को भी उद्धृत किया।

1962 में खत्म हुआ ज्यूरी सिस्टम।

जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि न्यायालय में आने वाले मामले 3 तरह के होते हैं। पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रहित से जुड़े मामले। हमारे देश में 1962 में नानावटी केस के बाद ज्यूरी सिस्टम समाप्त हुआ । जनहित याचिका के माध्यम से परिणाम आए है । खातून द्वारा लगाई गई जनहित याचिका के आधार पर देश की जेल में सालों से बंद 40 हजार लोगों की रिहाई हो सकी । जनहित याचिका सामाजिक सुरक्षा , सामाजिक समरसता और राष्ट्रहित के मुद्दों पर केंद्रीत की गई थी । हमें यह सोचना होगा कि क्या आज भी जनहित याचिका इन मुद्दों पर केंद्रित है ? हम कहां पहुंच गए हैं ?

मेहता केस से वन बचे, महिलाओं को सुरक्षा मिली।

उन्होंने एमसी मेहता केस का उदाहरण देते हुए कहा कि इस मामले के कारण ही देश में वन बचा, पर्यावरण के नए कानून बने, महिलाओं को कार्यस्थल पर सुरक्षा विशाखा केस के कारण मिलना संभव हो सका।

न्याय प्रक्रिया से जुड़ा प्रत्येक व्यक्ति करें अधिक से अधिक काम।

देश में न्यायालय में लंबित मुकदमों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि दूसरें देशों में सुप्रीम कोर्ट का जज 1 साल में 8 से 100 केस सुनता है जबकि हमारे देश में हर दिन सुप्रीम कोर्ट के जज द्वारा 20 से 80 केस सुने जाते हैं । निचली अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक काम का बोझ बढ़ा है। बावजूद इसके, आम आदमी की आस्था और विश्वास न्यायालय से जुड़े है। ऐसे में न्याय की प्रक्रिया से जुड़े हर व्यक्ति का यह दायित्व है कि वह ज्यादा से ज्यादा काम करें । दूसरे देशों में हजारों नागरिकों पर एक जज है जबकि हमारे देश में एक लाख से ज्यादा नागरिकों पर एक जज है । हमें यह सोचना होगा कि जल्दी से जल्दी न्याय कैसे हो ?

उन्होंने कहा कि मेडिएशन (मध्यस्थता) के माध्यम से मामलों का निपटारा आसानी से किया जा सकता है । न्यायालयों में लंबित मामलों में से कम से कम 10% केस इस माध्यम से सुलझाए जा सकते हैं । अभी मेडिएशन के आधार पर केस सुलजाने की कोई वैधानिक प्रक्रिया हमारे देश में नहीं है । फॉरेन कंट्री में इस तरह की व्यवस्था खासी सफल है। हमारे देश में भी मेडिएशन बिल आने वाला है । हमें न्यायपालिका में तकनीक को शामिल करना होगा । इस मंशा के अनुसार ही ई कोर्ट की व्यवस्था लागू हुई । इस समय पूरे देश में मध्यप्रदेश ई – कोर्ट के संचालन में नंबर 1 पर है । हम सभी को मिलकर नागरिकों की आस्था और विश्वास को कायम रखने के लिए काम करना होगा ।

कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत अभिनव धनोतकर , दीप्ति गौर, नेताजी मोहिते ने किया । कार्यक्रम का संचालन अशोक कोठारी ने किया । कार्यक्रम के अंत में अतिथि वक्ता को स्मृति चिन्ह हिमाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल न्यायाधीश वीएस कोकजे ने भेंट किया। इस अवसर पर अभ्यास मंडल के वरिष्ठ कार्यकर्ता सुनील माकोड़े का शॉल – श्रीफल से सम्मान किया गया । अंत में आभार अभ्यास मंडल के अध्यक्ष रामेश्वर गुप्ता ने माना।

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