पहले दिन गायन – वादन की दी गई प्रस्तुति।
इंदौर : पद्मभूषण पंडित सीआर व्यास हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का जाना माना नाम है। किराना, ग्वालियर और आगरा घराने की गायकी का प्रतिनिधित्व करने वाले पंडित सीआर व्यास ने अपनी स्वतंत्र गायन शैली भी विकसित की। उन्होंने कई बंदिशों व रागों की रचना की। उनकी स्मृति को बनाए रखने के लिए उन्हीं की सुशिष्या, इंदौर की वरिष्ठ गायिका शोभा चौधरी 22 वर्षों से गुनिजान संगीत समारोह का आयोजन करती आ रही हैं। यह पंडितजी का जन्म शताब्दी वर्ष है। इसे यादगार बनाने के लिए श्रीमती चौधरी ने पंचम निषाद संगीत संस्थान इंदौर, संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार, संस्कृति संचालनालय म. प्र. सरकार, इंडो थाई और वामन हरि पेठे ज्वेलर्स के संयुक्त बैनर तले 23 वा दो दिवसीय गुनिजान संगीत समारोह जाल सभागृह में आयोजित किया है।
समारोह के पहले दिन कार्यक्रम का शुभारंभ महापौर पुष्यमित्र भार्गव, स्मिता सहस्त्रबुद्धे – कुलपति राजा मानसिंग तोमर संगीत, कला विश्वविद्यालय, ग्वालियर, बडा रावला जूनी इंदौर के वरदराज मंडलोई, इंडो थाई के पारस दोषी ने दीप प्रज्वलित कर किया।
वसंत के आगमन के चलते जब कुदरत भी नव श्रृंगार कर झूम रही हो, ऐसे उल्लासित माहौल में सबसे पहले मंच पर विदुषी वीणा सहस्रबुद्धे की सुशिष्या श्रीमती सुलेखा भट्ट की आमद हुई। उन्होंने राग वाचस्पति से अपने गायन की शुरुआत की। इस राग मे बडे ख्याल की बंदिश “सांचो तेरो नाम” विलम्बित एक ताल , मध्य लय की बंदिश “लगन मोरी लागी” आडा चौताल में और छोटा ख्याल की बंदिश “नेहा लगे प्रीतम तेरो संग” द्रुत तीन ताल में निबध्द थी। इसके बाद निर्गुणी भजन “सुनता है गुरु ज्ञानी” गाकर उन्होंने श्रोताओं से विदा ली। उनके साथ तबले पर अशेष उपाध्याय और हार्मोनियम पर दीपक खसरावल ने संगत की। तानपूरे पर थे निष्ठा दुचक्के और लविना लेले।
कार्यक्रम की अगली कड़ी में दिल्ली से पधारे भागलपुर मिश्रा घराने के ख्यात वायलिन वादक पं. डॉ. संतोष नाहर ने मंच संभाला। सुमधुर दक्षिण भारतीय राग चारूकेशी में आलाप के बाद उन्होंने मध्य लय, गत तीन ताल और द्रुत गत सुनायी। पंडित नाहर के वादन में राग की बढत, स्वर विस्तार, अलंकारिक तानें गमक की प्रस्तुति की खासियत देखने को मिली। द्रुत गत में सपाट तान, झाला में तबले के साथ वार्तालाप की जुगलबंदी सराहनीय रही। पंडित नाहर ने अपने वादन का समापन मिश्र काफी में ठुमरी से किया। तबले पर ख्यात तबलावादक दुर्जय भौमिक ने बखूबी साथ निभाया।
समारोह के पहले दिन की तीसरी और अंतिम प्रस्तुति पं. सी. आर. व्यास के सुपुत्र और सुशिष्य पं. सुहास व्यास ने दी। राग स्वानंदी मे जगन्नाथ बुवा की बंदिश “जियरा मानत नाही” विलंबित एक ताल में प्रस्तुत करने के बाद त्रिताल में “चतुर तुमहो प्राण प्रिया” और एकताल द्रुत में “तोहे रे गाऊं मै आज” सुनाकर उन्होंने श्रोताओं की भरपूर दाद पाई। पं. सी. आर. व्यास द्वारा रचित बंदिश गाकर पंडित सुहास ने जन्म शताब्दी आयोजन मे अपने पिता व गुरु को आत्मीय स्वरांजलि अर्पित की। वसंत ऋतु का अहसास कराते हुए राग वसंत में पारंपरिक बंदिश” अंबुवा मोरा” धीमा त्रिताल में और “मोरा लेहो प्रणाम ” द्रुत एकताल में सुनाकर उन्होंने सभा का समापन किया। तबले पर भरत कामत और हार्मोनियम पर सुयोग कुंडलकर ने संगति की। तानपूरे पर स्मिता बिरारी और केदार मोडक थे।