‘दंड से न्याय’ के विमोचन समारोह में लेखक प्रवीण कक्कड़ ने किताब की रॉयल्टी पुलिस वेलफेयर में देने की घोषणा की।
🔹कीर्ति राणा।करीब ढाई महीने पहले भारत का आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) कानून बदला गया और लागू हुई ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता’ (बीएनएसएस) ने इस अवधि में एक लेखक को जन्म दे दिया।प्रवीण कक्कड़ टुकड़े-टुकड़े में लिखते तो पहले से थे लेकिन इस नये कानून पर लिखी ‘दंड से न्याय तक’ पहली किताब के प्रकाशन-विमोचन के बाद लेखकों ने भी उन्हें अपनी जमात में न्यू कमर के रूप में मान्यता दे दी है।
अभी जब पुलिस महकमा ही पुख्ता तौर पर भानासुसं की बारीकियों को समझने में लगा है तब पुलिस का खौफ खाने वाला आमजन तो यह दावा कर ही नहीं सकता कि गृह मंत्री अमित शाह द्वारा संसद में पारित कराए इस कानून को वो ए टू झेड जान चुका है।ऐसे में कक्कड़ की यह किताब पुलिस, और जिन लोगों का पुलिस से काम पड़ता है, और वो भी जो पुलिस के पचड़े में उलझना नहीं चाहते, उन सब के लिये ‘अंधा क्या चाहे दो आंखे’ जितनी ही उपयोगी है।
बीस साल पुलिस सेवा में रहने के बाद स्वेच्छा से नौकरी छोड़ने वाले प्रवीण कक्कड़ केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री के सहयोगी रहते राजनीति की बारीकियों, पुलिस-पोलिटिशियन गठजोड़ को भी नजदीक से देख चुके हैं।आमजन के लिए तो वे तब से लेकर अब तक मददगार रहे ही हैं।इस पुस्तक के विमोचन समारोह में उनकी इस खासियत की तो अतिथि वक्ताओं ने तारीफ की ही, समारोह के चश्मदीद रहे लोगों में मीडिया, राजनीति, पत्रकारिता, औद्योगिक और चिकित्सा जगत, समाजसेवा से जुड़े लोगों की तादाद बता रही थी कि वे संबंध निभाने में भी उतने ही संजीदा हैं।
एक स्थानीय होटल में हुए विमोचन समारोह में अपनी इस पहली किताब को लेकर प्रवीण कक्कड़ का कहना था मेरी ताकत मेरी मां विद्यादेवी रही हैं और यह उनकी दुआओं का ही नतीजा है कि जिन अंगुलियों ने पुलिस सेवा में शस्त्र चलाना सीखा वो अब कलम चला रहीं हैं।कॉलेज में मुझे पुस्तकालय प्रिय था, अब फिर पुस्तकों से जुड़ गया हूं।जब मैंने पुलिस विभाग छोड़ा तो लोगों ने मना किया था।मेरा मानना है आगे बढ़ने के लिये हर व्यक्ति को कंफर्ट जोन से बाहर निकलना पड़ता है।1980 में पुलिस में भर्ती हुआ।पुलिस में रहते मैंने दास साहब और देवेंद्र सिंह सेंगर जी से अनुशासन सीखा, टाइम मैनेजमेंट सीखा।पुलिस सर्विस में रहते लोगों की मदद की, वो आज भी याद करते हैं।सामाजिक क्षेत्र में भी काम किया।ढाई साल पहले लिखना शुरु किया, ढंग से लिखना भी नहीं आता था, पत्रकार मित्रों ने मदद की, हेमंत शर्मा सहित अन्य मित्रों ने समझाया-सिखाया।
एक जुलाई को जब नया कानून आया तो तय कर लिया कि इस पर लिखना है।पुलिस के नये कानून ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता’ (बीएनएसएस) और पुराने क़ानून ‘भारतीय दंड संहिता’ (आईपीसी) के बीच के बदलाव को मैने बेहद सरल भाषा में अंकित किया है।इस पुस्तक में पुराने और नए कानून में धाराओं के परिवर्तन, ऑनलाइन शिकायत सहित अन्य महत्वपूर्ण बदलाव की जानकारी है। इसके साथ ही मैने विश्व के दस श्रेष्ठ पुलिस सिस्टम, परंपरागत से लेकर आधुनिक पुलिसिंग, नया कानून महिला-बच्चों को कैसे अधिक प्रोटेक्शन देता है इस सब का भी जिक्र किया है।पहले वाले कानून में ऐसा नहीं था लेकिन इस नये कानून में पुलिस को टाइम बॉउंड किया है।दंड की अपेक्षा नया कानून न्याय का पक्षधर है।कक्कड़ ने हाथों हाथ यह घोषणा भी कर दी कि इस पुस्तक से मिलने वाली पूरी रॉयल्टी पुलिस वेलफेयर में देंगे।
🔹लेखक परिवार में नया सदस्य जुड़ा
विशेष अतिथि कहानीकार पंकज सुबीर (शिवना प्रकाशन) ने खुशी जताई कि लेखक परिवार में एक और सदस्य की वृद्धि हो गई है।प्रवीण जी ने वो रोग पाला है जो समाज को बेहतर बनाता है।ये किताब पुलिस अधिकारियों के काम की तो है ही, आमजन को भी पढ़ना चाहिए।पुलिस का डर बचपन से ही हर व्यक्ति में भर दिया जाता है।ये किताब बताती है कि नये कानून लागू होने के बाद पुलिस की छवि में भी बदलाव हुआ है।आम भाषा में लिखी सहज-सरल किताब है, लागू हुए नये कानून को समझने में यह किताब मददगार साबित होगी।
🔹एडवोकेट मनोज द्विवेदी।
सीबीआई के स्पेशल प्रॉसिक्यूटर मनोज द्विवेदी ने कहा प्रवीण भाई जब पुलिस सेवा में थे तब से मुलाकात है।समाज के प्रति उनकी सोच में सकारात्मकता और संवेदनशीलता रही है, उसकी ही परिणिति है यह पुस्तक।
तीनों पुराने कानून में तब कंट्रोल करने की प्रधानता थी।जुलाई से लागू भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता पुलिसिंग से डर खत्म करने के साथ ही सोशल जस्टिस आधारित है।आज की परिस्थिति के मुताबिक आये हैं तीनों नये कानून।आज ऑनलाइन एविडेंस सुविधा है, त्वरित न्याय की स्थिति बढ़ गई है।जब समाज कानून के प्रति जागरुक होगा तो पुलिस का भार भी कम होगा, त्वरित न्याय मिलेगा।इस विषय पर यह पहली पुस्तक कानून को जानने में भी सहायक होगी।आप का पुलिस में जलवा था, नेताओं के साथ रहते भी आप का जलवा रहा और इस किताब से भी आप का जलवा कायम हुआ है।
पूर्व डीजीपी एसके दास ।
🔹थाना लेबल तक बहुउपयोगी है यह किताब।
समारोह के मुख्य अतिथि पूर्व डीजीपी एसके दास का कहना था, इस समारोह के लिये शहर में मुझ से बेहतर कई हस्तियां हैं, मुझे लगता है पुस्तक का दायरा पुलिस से आता है, प्रवीण बीस साल मेरे साथ रहे हैं, शायद इसीलिये बुलाया है। यह पुस्तक पुलिस अधिकारियों से लेकर थाना स्तर तक के लोगों के लिये बहुउपयोगी होगी।सरल भाषा में पुराने, नये कानून के भेद को समझाने की कोशिश की गई है।इस पुस्तक का फायदा पुलिस जन और समाज को भी मिलेगा।
लोगों के मन से पुलिस का खौफ कम करने में भी यह पुस्तक सहयोगी होगी।लोगों की मदद के लिये प्रवीण जैसे कई पुलिस अफसर हैं जो हर वक्त तत्पर रहते हैं।इसके और खंड भी प्रकाशित हों यही शुभकामनाएं हैं।
संचालन कर रहे संजय पटेल ने कहा लोगों को आप का पद-रुतबा बाद में याद रहे ना रहे लेकिन इस किताब और लेखक के रूप में सदैव याद रखे जाएंगे।लेखक कभी नहीं मरता, आज से आप के हमेशा जिंदा रहने की शुरुआत है। कक्कड़ परिवार को मुबारकबाद कि आप के यहां लेखक जन्मा है।
प्रारंभ में स्वागत भाषण लेखिका ज्योति जैन ने दिया।अतिथियों को स्मृति चिह्न भेंट किये साधना कक्कड़, सलील कक्कड़, पंकज मुकाती, आदित्य तमोटिया और पूर्व विधायक संजय शुक्ला ने।