डॉक्टरों का कहना है मरीज के वर्कोहलिक (अत्यधिक काम करने) होने और शुगर के कारण भी डेमेज हुआ लीवर ।
कीर्ति राणा इंदौर : ख्यात नाड़ी रोग विशेषज्ञ डॉ. पुष्पा श्रीवास्तव के उपचार से ठीक हुए सैंकड़ों मरीजों के लिये तो यह खबर सुकूनदायी ही है कि थर्ड स्टेज के लीवर सिरोसिस के कारण मौत के मुंह तक पहुंच चुकी पुष्पा श्रीवास्तव को बेटी वैदिका द्वारा लीवर डोनेट करने के कारण जीवनदान मिल गया है। मां को 600 ग्राम लीवर डोनेट करने के बाद एक तरह से बेटी अब मां की ही मां बन गई है।मुंबई के कोकिलाबेन धीरुभाई अंबानी हॉस्पिटल में एक पखवाड़े पहले हुए लीवर प्रत्यारोपण के बाद उनकी हालत में तेजी से सुधार है जबकि बेटी वैदिका को पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद डॉक्टरों ने छुट्टी दे दी और वो इंदौर लौट आई हैं।
मरीजों को आयुर्वेदिक उपचार से ठीक करने वाली पुष्पा श्रीवास्तव खुद अपनी गंभीर बीमारी को नहीं पकड़ पाईं तो उसका कारण था शुगर का असर। लीवर संबंधी बीमारी का शिकार मरीजों के बारे में आम धारणा यही रहती है कि शराब-सिगरेट आदि के अत्याधिक सेवन (अलकोहलिक) से लीवर डेमेज हुआ होगा। डॉ पुष्पा का केस कुछ अलग था। देश के सुप्रसिद्ध लीवर रोग विशेषज्ञ डॉ. सोमनाथ चटोपाध्याय ने उनका लीवर डेमेज होने का कारण वर्कोहलिक के साथ ही शुगर होना भी बताया है।यानी तनाव झेलते हुए निरंतर काम में भिड़े रहना।वो कब शुगर का शिकार हो गईं खुद उन्हें ही लंबे समय बाद पता चला, थकान व शुगर संबंधी अन्य लक्षणों को वो यह समझ कर नजरअंदाज करती रहीं कि काम की अधिकता के कारण ऐसा हो रहा है।
गलत बीमारी के लिये भर्ती हुईं, सही बीमारी पता चली !
दीपावली के कुछ दिन पहले भोजन में आलू का पराठा, साबूदाने की खिचड़ी खाने के बाद पेट दर्द शुरु हुआ तो मान लिया कि खाने की गड़बड़ी है। शाम को समीप के अस्पताल में दाखिल हुईं, रात में लगातार लूज मोशन से हालत बिगड़ने लगी, सोनोग्राफी में पता चला लीवर पर असर है।तुरंत कोकिलाबेन हॉस्पिटल (इंदौर) में एडमिट किया गया। वहां हुई विभिन्न जांचों का निष्कर्ष यह था कि लीवर संक्रमण थर्ड स्टेज तक पहुंच गया है, गले से लेकर पेट तक अंदरुनी गठानें कभी भी फूट सकती हैं। तुरंत एंडोस्कोपी कर उन गठानों को नियंत्रित किया गया।
मरीज को लेकर परिजन इंदौर से मुंबई पहुंचे और अंधेरी (मुंबई) स्थित कोकिलाबेन धीरुभाई अंबानी हॉस्पिटल में पदस्थ डॉ. सोमनाथ चट्टोपाध्याय (पैंक्रियाटो-बिलियरी सर्जरी और लीवर ट्रांसप्लांट के प्रमुख) से मिले। मरीज के परीक्षण बाद उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि लीवर ट्रांसप्लांट अनिवार्य है, तुरंत डोनर का इंतजाम करिए।
सर्जरी के बाद स्वास्थ्य में तेजी से सुधार है।
पति अशोक श्नीवास्तव ने बताया, सर्जरी के बाद उनके स्वास्थ्य में तेजी से सुधार है। किसी ब्रेन डैड मरीज के ऑर्गन डोनेशन का इंतजार करने की अपेक्षा हम ने ही लाइव लीवर डोनर के रूप में डोनेशन का मन बना लिया था। जब लीवर डोनेट करने की बात चली तो डॉक्टरों ने उम्र 50 वर्ष से अधिक होने के कारण मुझे (अशोक श्रीवास्तव को) रिजेक्ट कर दिया। बेटे वरुण की जिद थी कि मैं ही लीवर दूंगा लेकिन तमाम तरह की जांचों में उसका लीवर भी अमान्य कर दिया गया। बेटी वैदिका चाहती थी कि मम्मी को जीवनदान के लिये वो लीवर डोनेट करे। दसियों तरह की जांच के बाद डॉक्टरों की टीम ने उन्हें उपयुक्त पाया।लीविंग डोनर होने के कारण डॉक्टरों-अधिकारियों के मेडिकल बोर्ड के साथ एकाधिक मीटिंग, सैकड़ों दस्तावेज आदि की अनिवार्यता के बाद मरीज और डोनर के प्रिऑपरेटिव वर्कअप में लीवर सहित शरीर के तमाम अंगों के फिटनेस की 30 से 50 तरह की जांच प्रकिया हुई ताकि पेशेंट और डोनर को सर्जरी के लिये मानसिक रूप से तैयार किया जा सके।इस सबके बाद लीवर ट्रांसप्लांट सर्जरी 8 से 10 घंटे तक चली। ऑपरेशन के बाद पोस्ट ऑपरेटिव केयर में दोनों मरीज आइसोलेटेड रूम में चौबीस घंटे की निगरानी में रहे। लीविंग डोनर वैदिका श्रीवास्तव को सात दिन बाद अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया, वो घर आ गई हैं जबकि उनकी मां पुष्पा अभी अस्पताल में ही हैं। वैदिका बताती हैं मां से रोज बात करती हूं।अभी पोस्ट ऑपरेटिव केयर में डॉक्टरों की देखरेख में हैं। पापा (अशोक श्रीवास्तव) मेरी भाभी (रेशम) उनकी देखभाल में लगे हैं। मां की दो बेस्ट फ्रेंड आशा कुलकर्णी और शशि गुप्ता आंटी हॉस्पिटल के साथ ही अंधेरी में किराए का जो घर लिया है वहां पहले दिन से ही व्यवस्था संभाल रही थीं।
डोनेट किया हिस्सा चार से छह सप्ताह में उसी साइज में हो जाता है-डॉ सोमनाथ।
लीवर ट्रासप्लांट विशेषज्ञ डॉ. सोमनाथ चटोपाध्याय कहते हैं शरीर के विभिन्न अंगों में ब्लड और लीवर थोड़े समय बाद फिर विकसित हो जाते हैं।लीवर सर्जरी वाले मरीज-डोनर में जागरुकता के लिये डॉ. चटोपाध्याय वीडियो के जरिये भी उन्हें समझाते हैं कि डोनर के लीवर का जो कुछ हिस्सा काटकर मरीज के सड़ चुके लीवर वाले हिस्से की जगह लगाया जाता है। चार से छह सप्ताह के बीच डोनर के लीवर का वह हिस्सा फिर विकसित हो जाता है।साथ ही मरीज की क्वॉलिटी ऑफ लाइफ भी बेहतर हो जाती है।लीवर ट्रांसप्लांट सर्वाइवल रेट 85-90 प्रतिशत रहता है।इस केस में डोनर का 600 ग्राम लीवर लिया गया है जो अधिकतम 6 महीने में रिकवर हो जाएगा। डोनर को हेल्दी फूड लेने के लिये कहा है, तेज मिर्च-मसाले से परहेज रखना है।
मम्मी आप जिंदा लौट कर तो आओगे ना।
लीविंग डोनर के रूप में (ज्योतिषाचार्य) वैदिका का चयन होने के बाद जब परिजन मुंबई जा रहे थे तब उनकी दोनों बेटियों वेदांशी (14) और मणि (5) को सम्हालने की जिम्मेदारी दादी उषा श्रीवास्तव पर थी। हार्ट पेशेंट रहीं उषा जी को 6 स्टेन डल चुके हैं, बायपास सर्जरी भी हो चुकी है।बुजुर्ग उषा जी ने पोतियों का पूरा ध्यान रखा लेकिन अपनी मम्मी को मुंबई के लिये विदा करते रुआसी हुईं बेटियां पूछती रहीं थीं मम्मी आप जिंदा लौट कर आओगे ना, मम्मी आप मत दो लीवर, कभी आप चली गईं तो?
डोनर के रूप में उनका विल पॉवर देख कर डॉ. सोमनाथ और उनकी टीम भी चकित थी। एक अन्य मरीज के परिजनों की उनसे कॉउंसलिंग भी करवाई तो वो भी लीवर डोनेट करने को तैयार हो गए।
वेदिका कहती हैं यदि मेरे पति डॉ. सौरभ, ससुर सुरेंद्र जी और सास उषा जी ने साथ नहीं दिया होता तो मैं यह निर्णय नहीं ले पाती, क्योंकि मैं उस परिवार की बेटी से पहले इस परिवार की बहू हूं। उषा श्रीवास्तव का कहना था मुझे जब बहु ने बताया तो धक्का लगा।मुझे बहु के फैसले पर नाज तो है लेकिन एक महिला पर परिवार का कितना दायित्व रहता है यह मैं जानती हूं। डॉ. सौरभ का कहना था मेरे राजी होने से ज्यादा मम्मी-पापा की मंजूरी जरूरी थी। वैदिका मेरी बेटियों की मां है लेकिन उसके इस काम से समाज में बेटियों का मान बढ़ेगा।