मातृभाषा दिवस पर क्षेत्रीय भाषाओं में दी गई सुरमई प्रस्तुतियां

  
Last Updated:  February 22, 2024 " 07:13 pm"

डीएवीवी के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला में किया गया अनूठा आयोजन।

इंदौर : देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर अनूठा आयोजन किया गया । इस आयोजन में हिंदी के साथ बघेली, भोजपुरी, राजस्थानी और मराठी भाषा में सुरों की बानगी पेश की गई।

वर्ष 1999 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा की गई थी। इसी उपलक्ष्य में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया । कार्यक्रम में अध्ययनशाला की छात्राओं ने अपनी मातृभाषा में प्रस्तुतियां दी। कशिश सिंह बघेल ने बघेली भाषा में रिश्तो की उलझन को बताया, तो सजल जैन ने राजस्थानी भाषा में लोकगीत प्रस्तुत किया। अनुश्री करणकार ने भगवान विट्ठल पर अपना गीत मराठी भाषा में प्रस्तुत किया, वही पल्लवी सिंह ने भोजपुरी में छठ की पूजा का गीत पेश किया । विशाखा भट्ट ने हिंदी में भगवान राम पर कविता सुनाते हुए वर्तमान दौर को जीवंत किया और भगवान से प्रार्थना की कि आप अब आ जाओ लेकिन मंदिर में मत रहना । इसके साथ ही दिव्यांशी महादिक ने कर्ण का दर्द अपने शब्दों से उजागर किया । एक सूत पुत्र की व्यथा को उन्होंने जीवंत बना दिया ।

राष्ट्रीय शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की महिला विभाग के कार्यों की प्रभारी शिक्षाविद शोभा ताई पैठणकर ने इस मौके पर कहा कि हम अपनी संवेदनाओं को मातृभाषा में ही पहुंचा सकते हैं । हम जब भी कुछ सोचते हैं, अपनी मातृभाषा में ही सोचते हैं । हम जब भी कोई सपना देखते हैं, अपनी मातृभाषा में देखते हैं । हमें अपने बच्चों को मातृभाषा से जोड़ने का काम करना चाहिए । यदि बच्चा मातृभाषा से जुड़ जाएगा तो वह परिवार, संस्कार और सभ्यता से भी जुड जाएगा ।


इस अवसर पर अध्ययनशाला की विभाग अध्यक्ष डॉ.सोनाली नरगुंदे ने भाषा के माध्यम से किए जाने वाले संचार और उसके महत्व को प्रतिवादित किया । उन्होंने कहा कि हमें अपनी मातृभाषा में बोलने में शर्म और झिझक महसूस नहीं करना चाहिए । हमें इस बात पर गौरव करना चाहिए कि हम अपनी भाषा में अपनी बात को रख पा रहे हैं । उन्होंने कहा विविध भाषाओं से समृद्ध भारत में सभी भाषाओं को जीवंत रखने की जिम्मेदारी हमारी है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से लेकर महात्मा गांधी तक के प्रयासों से भाषा का स्वरूप बचा हुआ है। हमें मातृभाषा के साथ हिन्दी के मानकीकरण पर काम करना होगा।कार्यक्रम का संचालन प्रो सुब्रत गुहा ने किया । आभार प्रदर्शन रामसागर मिश्र, संयोजक राष्ट्रीय शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास मालवा प्रांत ने किया ।

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