एक आग लगी है इस दिल में
धूं धूं करके ये जलता है,
डालो ना अब इसमें तुम घी
पानी पानी को तरसता है।
फूंक के रखो अब कदम यहां पे
कि कहीं से कोई जल ना जाए,
दूर रखो इन बच्चों को तो
देख के इनको दिल भर आए।
सुबह सुहानी रही ना अब ये
रात का मंज़र खौफ भरा है,
इंसान को इंसान कहने में
मुझको तो अब शरम सी आए।
एक धांस उठी है इस दिल में
रह रह कर सांस मचलती है,
एक आग लगी है इस दिल में
धूं धूं करके ये जलती है।
एक फांस उठी है इस दिल में
मौत का मातम पसरा है,
कोई तो बचा लो सबको
मेरा देश देखो जल रहा है।
सुरभि नोगजा, भोपाल
(गोविन्द मालू की बेटी की सामयिक कविता)
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