नई दिल्ली: 5 राज्यों के चुनाव में राफेल सौदे को भी कांग्रेस ने मुद्दा बनाया था। कांग्रेस के तमाम बड़े नेता इस सौदे में भ्रष्टाचार का शोर मचाकर पीएम मोदी की छवि को धूमिल करने का प्रयास कर रहे थे। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी खुद चुनावी सभाओं में पीएम मोदी के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे। उन्होंने एक तरह से पीएम मोदी के खिलाफ घृणा और नफरत फैलाने का अभियान छेड़ रखा था। सभाओं में वे कांग्रेसजनों से पीएम मोदी के खिलाफ ‘ चौकीदार चोर है’ के नारे लगवाते रहे।
एक सोची- समझी रणनीति के तहत ये सब किया जा रहा था ताकि राहुल को महागठबंधन का नेता बनवाकर लोकसभा चुनाव में उन्हें मोदी की बराबरी में खड़ा किया जा सके। 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में इसकी जमीन तैयार की गई। राहुल गांधी और कांग्रेस के नेता राफेल को लेकर लगातार दुष्प्रचार तो करते रहे पर जब भी उनसे पूछा जाता कि वे इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं जाते तो वे सवाल को टाल जाते थे। विधानसभा चुनाव के दौरान इंदौर आये कपिल सिब्बल और अन्य नेताओं से हमने ये सवाल किया था पर उनके पास कोई जवाब नहीं होता था। एक बड़े नेता ने तो स्वीकार भी किया था कि उनके पास राफेल सौदे में अनियमितता का कोई सबूत नहीं है। कांग्रेस और उसके युवराज जानते थे की सुप्रीम कोर्ट में वे टिक नहीं पाएंगे, उन्हें वहां जाना भी नहीं था। सुप्रीम कोर्ट में 4 लोगों ने राफेल को लेकर याचिकाएं लगाई थी उनमें अरुण शौरी, बीजेपी के बागी नेता यशवंत सिन्हा, वकील प्रशांत भूषण और आप पार्टी के नेता संजय सिंह शामिल थे, पर कांग्रेस ने पार्टी बनने में कोई रुचि नहीं दिखाई। राहुल गांधी का एकमात्र एजेंडा पीएम मोदी के खिलाफ झूठा प्रपोगंडा कर राजनीतिक लाभ लेना था उसमे वे सफल भी रहे।
बीजेपी नहीं दे पाई कारगर जवाब
हैरत की बात ये रही कि बीजेपी के तमाम बड़े नेता कांग्रेस के दुष्प्रचार का कारगर जवाब नहीं दे पाए। नेशनल हेराल्ड घोटाले में जमानत पर चल रहे राहुल गांधी और अन्य घोटालों में जांच के घेरे में फंसे कांग्रेस के नेता पीएम मोदी को लगातार चोर ठहराते रहे पर बीजेपी पलटवार करने की बजाय सफाई देती रही। कांग्रेस की बनाई रणनीति में वो उलझती चली गई और कांग्रेस ने वो हासिल कर लिया जो उसने सोचा था।
सुप्रीम कोर्ट पर भी ऐतबार नहीं।
देश में न्यायपालिका ही वो जगह है जहाँ लोगों को इंसाफ मिलता है। उनका भरोसा न्यायपालिका पर है लेकिन कांग्रेस का नहीं है। हर छोटी- मोटी बात को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली कांग्रेस को राफेल मामले में उसी सबसे बड़ी अदालत के फैसले पर ऐतबार नहीं है। सर्वोच्च अदालत ने राफेल की खरीद प्रक्रिया, कीमत, गुणवत्ता, ऑफसेट पार्टनर का चयन सहित उन तमाम बिंदुओं पर अपना फैसला सुनाया है जिनके सहारे कांग्रेस ने झूठ का मायाजाल रचा था। कोर्ट ने तमाम आरोपों को कसौटी पर परखने के बाद ये साफ कर दिया कि राफेल सौदे में कोई गड़बड़ी नहीं हुई और सभी याचिकाएं खारिज कर दी। सुप्रीम अदालत ने यहां तक कहा कि राफेल देश की जरूरत है। इस फैसले से कांग्रेस और राहुल गांधी के दुष्प्रचार की पोल खुल गई। ऐसे में अपनी बात को सही ठहराने के लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर ही सवाल खड़े कर दिए और उसके निर्णय को एकतरफा बता दिया।वे अभी भी जेपीसी से जांच की मांग पर अड़े हैं जबकि सुप्रीम कोर्ट मामले का निपटारा करते हुए ये भी कह चुकी है राफेल सौदे की किसी तरह की जांच की कोई जरूरत नहीं है।
बहरहाल कांग्रेस अब चाहे जो तर्क दे ये साबित हो गया है कि राफेल को लेकर उसने जो झूठा अभियान चलाया था वो ध्वस्त हो हो गया है। उसे तो सुप्रीम कोर्ट का शुक्रगुजार होना चाहिए कि ये फैसला विधानसभा चुनाव के बाद आया। अगर पहले आ गया होता तो शायद तीन राज्यों में जो सत्ता मिली है उससे वंचित रहना पड़ता।