राष्ट्र की सुरक्षा नीति के पितामह थे वीर सावरकर

  
Last Updated:  May 28, 2023 " 12:34 am"

कांग्रेस में शामिल होने का न्योता सावरकर ने ठुकरा दिया था।

कुशल रणनीतिकार और युगदृष्टा थे सावरकर

सावरकर जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित व्याख्यान में बोले केंद्रीय सूचना आयुक्त उदय माहुरकर

इंदौर : वीर सावरकर युगदृष्टा और चाणक्य नीति पर चलने वाले महामानव थे। अगर गांधीजी को राष्ट्रपिता कहा जाता है तो वीर सावरकर राष्ट्र की सुरक्षा नीति के पितामह थे। उनके बारे में हमेशा भ्रांतियां फैलाकर उन्हें अंग्रेजों का समर्थक बताने की कोशिश की गई जबकि अंग्रेज उनसे खौफ खाते थे और उन्हें अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे। सावरकर की नीतियों पर देश चला होता तो 20 वर्ष पहले ही महाशक्ति बन चुका होता।

ये बात केंद्रीय सूचना आयुक्त उदय माहुरकर ने कही। वे संस्था मित्र मेला द्वारा वीर सावरकर की 140 वी जयंती पर जीएसआईटीएस के सभागार में आयोजित व्याख्यान में बोल रहे थे। व्याख्यान का विषय था ‘राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के पितामह वीर सावरकर’। कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व राज्यपाल जस्टिस वीएस कोकजे ने की।

सावरकर को मिला था कांग्रेस से न्योता।

वीर सावरकर पर पुस्तक का लेखन करने वाले उदय माहूरकर ने यह खुलासा किया कि तत्कालीन कांग्रेस नेताओं ने वीर सावरकर के जेल से रिहा होने के बाद उन्हें कांग्रेस में शामिल होने का न्योता दिया था पर सावरकर ने उनका प्रस्ताव ठुकराते हुए 1937 में हिंदू महासभा का गठन किया था। भारत के विभाजन की पैरवी सावरकर ने कभी नहीं की। ये झूठ कांग्रेस का फैलाया हुआ है। दरअसल, 1930 में अल्लामा इकबाल ने मुस्लिमों के लिए अलग राष्ट्र की मांग उठाई थी। उसके बाद रहमत चौधरी ने 1932 में पाकिस्तान के निर्माण की बात कही थी। बाद में जिन्ना ने इसे आगे बढ़ाया। सावरकर ने इस बारे में आगाह किया था कि भारत के विभाजन की बुनियाद रची जा रही है। वे तुष्टिकरण के विरोधी और हिंदुओ को समान अधिकारों के पक्षधर थे। विभाजन के असली जिम्मेदार तो गांधीजी और कांग्रेस थे, जिन्होंने देश के टुकड़े करने वाले प्रस्ताव को मंजूरी दी।

सावरकर का माफीनामा रणनीति का हिस्सा।

माहुरकर ने कहा कि वीर सावरकर चाणक्य नीति के ज्ञाता और छत्रपति शिवाजी महाराज से प्रेरित थे। लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए परिस्थितिनुसार दो कदम पीछे हटना वे रणनीतिक रूप से उचित मानते थे। अंग्रेजों को माफीनामा उनकी इसी रणनीति का हिस्सा था, ताकि बाहर आकर वे लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ जागरूक कर सकें।यही नहीं हिंदुओं को सेना में भरती होने के लिए प्रेरित करना भी उनकी दूरदृष्टि का परिचायक था। मौका पड़ने पर बंदूक का मुंह दुश्मन की ओर मोड़ा जा सके।

आजाद हिंद फौज के पीछे सावरकर की प्रेरणा।

माहुरकर ने कहा कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस को आजाद हिंद फौज के गठन की प्रेरणा वीर सावरकर और रास बिहारी बोस ने दी थी। भगत सिंह, मदन लाल ढींगरा सहित तमाम क्रांतिकारी वीर सावरकर को अपना आदर्श मानते थे।

गांधीजी की हत्या के मामले में फंसाने का किया गया प्रयास।

वीर सावरकर को गांधीजी की हत्या के मामले में भी फंसाने की कोशिश की गई थी पर वे बेदाग निकले। बाद में 1978 में सावरकर के खिलाफ बयान देने वाले व्यक्ति ने खुद कबूला कि उसने तत्कालीन सरकार के दबाव में सावरकर को फंसाने के लिए झूठा बयान दिया था।

माहुरकर ने कहा कि सावरकर कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति और हिंदुओं के साथ दोयम दर्जे के बर्ताव के घोर विरोधी थे। वे राष्ट्र को सर्वोपरि रखते थे। उन्होंने देश की आजादी के लिए अमानवीय यातनाएं सहीं।

सावरकर ने समाज और राष्ट्र निर्माण का काम किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस वीएस कोकजे ने कहा कि 140 साल बाद भी देश की युवा शक्ति वीर सावरकर के बारे में जानने, समझने का प्रयास कर रही है, यह उनके विचारों के जीवित रहने का प्रमाण है। सावरकर ने राजनीति की बजाए समाज और राष्ट्र निर्माण का कार्य किया। वे भारतीयता और भारत के मूल सिद्धांत पर चले।

कार्यक्रम में समाज सेवी पंकज देव मुख्य अतिथि के बतौर मौजूद रहे।

प्रारंभ में अतिथि परिचय और स्वागत के बाद विषय प्रवर्तन प्रसन्न शुक्ला ने किया। संचालन कुणाल भंवर ने किया।आभार अक्षय ने माना। बड़ी संख्या में युवा और प्रबुद्धजन व्याख्यान सुनने के लिए मौजूद रहे।

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