घूप कुडू ,लावणी, कोली, गरबा रास, कर्मा, कालबेलिया चकरी, भवाई, थाट्या नृत्य से सजा मालवा उत्सव का अंतिम दिन
इंदौर : इंदौर गौरव दिवस के अंतर्गत आयोजित मालवा उत्सव का आगाज जिस भव्यता के साथ हुआ था, मंगलवार को समापन भी उसी भव्यता, निरंतरता और उत्साह के साथ हुआ। आखरी दिन भी लोक कलाकारों की प्रतिभा मंच पर शिद्दत के साथ मुखरित हुई।
लोक संस्कृति मंच के संयोजक शंकर लालवानी ने इंदौर की जनता को इंदौर गौरव दिवस की बधाई दी। लालवानी ने बताया कि मालवा उत्सव के अंतिम दिन लालबाग परिसर में हर तरफ रौनक नजर आ रही थी।हर व्यक्ति इस उत्सवी माहौल को जी लेना चाहता था। कोई शिल्प बाजार से अपने पसंद की वस्तु की खरीदारी में व्यस्त था, तो दूसरी तरफ फूड स्टॉल पर इंदौरी रंग चढ़ा था।मालवी जायके के साथ संपूर्ण भारतवर्ष के व्यंजनों का लोगों ने जमकर लुत्फ उठाया।
लोक संस्कृति मंच के सचिव दीपक लवंगड़े ने बताया कि सांस्कृतिक कार्यक्रम में गुजरात से परिवर्तन के दौर की नई कलाकार टीवी शो व्यास एवं समूह ने स्वयं वायलिन बजा कर अपने दल के साथ गुजराती गरबा प्रस्तुत किया। गरबा बड़ा ही खूबसूरत था।यह गरबा इंदौर गौरव दिवस को मालवा उत्सव के मंच पर सार्थक कर गया ।आदिवासी गोंड समूह द्वारा करमा नृत्य जिसमें आदिवासी पुरुष महिला एक दूसरे का हाथ पकड़कर कंधे पर हाथ रखकर नृत्य करते हैं मांदल की थाप पर किया गया। नृत्य, आदिवासी अंचल की गौरव गाथा को इंदौर की गौरव गाथा से मिला रहा था। ओडिशा से आए लोक कलाकारों ने घुपकुडू नृत्य किया जिसमें एक महिला सिर पर चटाई रखकर मुर्गे के साथ नृत्य करती नजर आई। यह नृत्य पतझड़ के समय उड़ीसा के परिवारों द्वारा शहर में आकर जीवन यापन के लिए किया जाता है। गुजराती रास एवं काठियावाड़ी रास भी इस मंच पर अपना रंग जमा गया। महाराष्ट्र के लावणी की चपलता सभी के मन को भा गई, कोली नृत्य का चप्पू चलाना भी मन को आनंदित कर गया। राजस्थान से आए शिवनारायण समूह द्वारा कालबेलिया नृत्य पेश किया गया। यह नृत्य सपेरों द्वारा बीन बजाकर सांप पकड़ने के लिए किया जाता है। राजस्थान का चकरी नृत्य जो कंजर समुदाय का पारंपरिक लोक नृत्य है भी पेश किया गया। मालवा निमाड़ का पनिहारी नृत्य जिसमें महिलाएं कुए पर पानी भरने जाते समय सुख दुख की बातें करती हैं ग्रामीण परिवेश का यह सुंदर नृत्य भी मनोहारी बन पड़ा था। इसी के साथ गणगौर नृत्य भी प्रस्तुत किया गया।
मनोज बारवा द्वारा मालवीय अंदाज में पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ शंखनाद भी किया गया और केसरिया बालम की धुन प्रस्तुत की गई। प्रतिभा लोक कला मंडल द्वारा राजस्थान का भवानी नृत्य सिर पर पांच घड़े रखकर ज्योत जलाकर प्रस्तुत किया गया। कुल मिलाकर मालवा उत्सव लोक कला और कलाकारों का कुंभ साबित हुआ।