शहर के विकास में नागरिकों की सहभागिता जरूरी है

  
Last Updated:  December 29, 2020 " 04:14 pm"

इंदौर : मप्र का सांस्कृतिक और वाणिज्यिक शहर इंदौर हमेशा से एक अच्छा उदाहरण पेश करता रहा है। शहर की विभिन्न सामाजिक संस्थाओं का सरोकार शहर के जनप्रतिनिधियों से हमेशा रहा है। निगम में कई गांवों को शामिल किया गया है। अत: निगम में जो नए नियम, अधिनियम बने हैं, उनकी जानकारी महापौर सहित सभी पार्षदों को होना चाहिए। हमारी नई परिषद ऐसी हो जो शहर की सामाजिक संस्थाओं और आम नागरिकों के साथ विकास से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करने के बाद ही उन्हें अंतिम रूप दें। आने वाले समय में इंदौर नगर निगम में कई संस्थाएं जुड़ जाएंगी और उसका दायरा व बजट भी बढ़ जाएगा। अत: हमें ऐसा महापौर चाहिए जो क्वालीफाइड होने के साथ-साथ सभी विभागों के साथ समन्वय कर सके। महापौर को दलगत राजनीति से उठकर जनता से बात कर योजनाओं पर कार्य करना चाहिए। यह विचार पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन ने व्यक्त किए।वे संस्था सेवा सुरभि और इंदौर प्रेस क्लब द्वारा इंदौर नगर निगम चुनाव – 2021 को लेकर कैसी हो परिषद हमारी? विषय पर आयोजित परिचर्चा में अध्यक्षीय उद्बोधन दे रहीं थी।
श्रीमती महाजन ने अपने सारगर्भित भाषण में इंदौर नगर निगम के दायित्व और अधिकारों को रेखांकित करते हुए कहा कि हमारा पार्षद क्वालीफाइड होने के साथ सेवाभावी भी होना चाहिए। उसे अपने वार्ड के बारे में जानकारी भी होना चाहिए। नर्मदा का पानी हमें एक लीटर कितने में मिल रहा है और हम उसे जनता को कितने में दे रहे हैं, यह भी जनता को बताना चाहिए, यह कार्य पार्षद का है और उसे रेवेन्यू जनरेट करने के लिए नगर निगम का सहयोग करना चाहिए। आने वाली परिषद नकारात्मक सोच के साथ नहीं सकारात्मक सोच के साथ अपनी शुरुआत करे। इंदौर के हित में सोचने वाली प्रेस, सामाजिक संस्थाएं हैं। अब डेढ़-दो माह ही बचे हैं नई परिषद के चुनाव होने में। इसलिए हमें यह राजनीतिक दलों को बताना होगा कि हमें अपना पार्षद कैसा चाहिए, हमें इस बात पर बल देना होगा कि हमारा प्रतिनिधि ईमानदार हो। यह दबाव बनने पर राजनीतिक दलों को भी इस बारे में सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा। इंदौर की जनता से जिसका संवाद रहेगा वही हमारा पार्षद होगा।

नियम- कानूनों की हो जानकारी।

विषय प्रवर्तन करते हुए उच्च न्यायालय के अतिरिक्त महाधिवक्ता पुष्यमित्र भार्गव ने कहा कि इंदौर एक ऐसा शहर है, जहां 1870 में पहली बार नगर संरचना बनी। 1906 में पहली बार बिलावली तालाब का फिल्टर प्लांट बना और 1912 में यहां के लोगों ने चुनकर नगर पालिका का गठन किया। 1956 में नगर पालिका से वह नगर निगम बनी। श्री भार्गव ने आगे कहा कि इंदौर में सबसे पहले ग्लोबल सिटी का कान्सेप्ट आया,जहां पर आईआईटी के साथ आईआईएम दोनों हैं। यह शहर शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र भी है। इंदौर का रेवेन्यू कैसे बढ़े, हाईराईज बिल्डिंगों का डेवलपमेंट कैसा हो? और टेंडर प्रक्रिया कितनी पारदर्शी हो, इसकी चिंता नई परिषद और महापौर को करना जरूरी है। नई परिषद को इंदौर की शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य और स्वावलंबन के बारे में भी विस्तार से प्लान करना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि हमारा शहर 550 किलोमीटर में फैला है, जहां सैकड़ों गलियां है और इसकी आबादी 40 लाख के करीब है। अत: इतने बड़े शहर के विकास के लिए हमारे महापौर के पास विकास का बेहतर विजन होना चाहिए। जो नगर पालिका अधिनियम है, उसी के माध्यम से परिषद का संचालन हो सकता है तो उसी को दृष्टिगत रखते हुए हमें अपने नगर परिषद चुनना है। एक शहर की परिषद वहां की सरकार होती और महापौर वहां एक तरह से सीएम होता है। यह परिषद कैसे कार्य करेगी यह सबसे महत्वपूर्ण है। पुरानी सेक्शन 37 के अधिकारों को समझने वाला कोई व्यक्ति मेयर इन कौंसिल के हिसाब से कार्य नहीं करते है तो उस कमिश्नर को हटाने का अधिकार है। परिषद का संचालन और परिषद की सोच ये दोनों कैसे संभव हो यह महत्वपूर्ण विषय है।

शहर के विकास में हो सामाजिक संस्थाओं की भागीदारी।

इंदौर प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने स्वागत भाषण में कहा कि इंदौर शहर ने स्वच्छता में लगातार चार बार नंबर वन का खिताब हासिल किया है और इसके अलावा भी कई तरह के विकास के कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इन सबके बावजूद यह देखने में आया कि जनतंत्र में जनता की आवाज और उनकी सहभागिता की तरफ ध्यान देने में निगम परिषद का रवैया कम सकारात्मक रहा। इंदौर के विकास में ताई का हमेशा से सकारात्मक सहयोग और योगदान रहा है। नई परिषद में भी ताई का मार्गदर्शन लिया जाना चाहिए। शहर के विकास में सामाजिक संस्थाओं का हमेशा से योगदान रहा है।

राजनीति से उठकर हो शहर का विकास।

वरिष्ठ भाजपा नेता गोविंद मालू ने कहा कि शहर में विकास की संभावनाएं और क्षमताएं दोनों ही बहुत हैं। आवश्यकता है उसे निखारने की। शहर की बेहतरी के लिए हमें ऐसी निगम परिषद चाहिए, जहां पर बैठा व्यक्ति राजनीति और पूर्वाग्रह से उठकर विकास के कार्य करे। नई परिषद में अच्छे पार्षद चुनकर आएं। उन्हें परिषद को यह बताना चाहिए कि उनके क्या कार्य हैं और क्या अधिकार हैं। राजस्व एकत्रीकरण में भी पार्षद को नगर निगम का सहयोग करना चाहिए। हर कार्य के लिए समय सीमा निर्धारित करना चाहिए। स्मार्ट सिटी के साथ स्मार्ट सिटीजन इस शहर का नारा होना चाहिए।

ऐप के जरिये जनता से जुड़े कार्यों की दें जानकारी।

पूर्व विधायक सत्यनारायण पटेल ने कहा कि नगर निगम को एक ऐसा ऐप बनाना चाहिए जिसमें आम जनता से जुड़े सभी कार्यों का उल्लेख हो। सभी वार्डों में हॉकर जोन बने। मास्टर प्लान लागू करने से पहले नई परिषद को चाहिए कि वह बुद्धिजीवियों से विचार-विमर्श के बाद ही उसे लागू करें।

मीडिया के साथ बनाएं संवाद।

पूर्व महापौर उमाशशि शर्मा ने कहा कि नई परिषद को आम जनता से जुडऩे के लिए मीडिया के साथ बैठकर संवाद करना चाहिए। साथ ही शहर के प्रबुद्धजनों के साथ बैठकर जो योजनाएं आती हैं, उस पर उनकी राय लेना चाहिए। हर माह प्रत्येक वार्ड में महापौर परिषद बैठे और उस वार्ड की समस्याओं को हल करे। परिषद को महापौर पर भी कंट्रोल रखना चाहिए, ताकि शहर का विकास सही दिशा में हो सके। शहर की सबसे बड़ी समस्या जल और ड्रेनेज है, अत: इन दोनों का अलग से विभाग होना चाहिए, ताकि आमजन अपनी समस्याओं का समाधान एक विशेष स्थान पर जाकर करवा सके।

अधिकार सम्पन्न और आत्मनिर्भर हो निगम परिषद।

निगम सभापति अजयसिंह नरूका ने कहा कि हमारी परिषद ने स्वच्छता में बहुत कार्य किया है इंदौर देश में चार बार नंबर वन आया है। यातायात सुधार में भी इंदौर आगे है। वर्ष 2004-05 में शहरी विकास के लिए एक सेटअप बना था, जिसमें तमाम तरह की चुनौतियां भी थीं। इन सभी को नियंत्रित करने के लिए इस सेटअप प्लान को तत्कालीन लोक प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर ने पूरे प्रदेश में क्रियान्वित किया था। परिषद अधिकार संपन्न होना चाहिए ताकि सारे कार्य करने में आसानी हो। स्मार्ट सिटी में नगर पालिका निगम मात्र नोडल एजेंसी है, जिसके अधिकार सीमित हैं। इंदौर को आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाने के लिए नगर निगम में रेवेन्यू कैसे जनरेट हो, इसके लिए नई परिषद को समग्र दृष्टि से चिंतन करना होगा। सारे अधिकार किसी एक व्यक्ति के पास न होकर उनका विकेंद्रीकरण होना चाहिए। निगम में संसाधनों की भी कमीं है, उसे आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता है।

विकास कार्यों में भ्रष्टाचार पर लगे अंकुश।

वरिष्ठ पार्षद छोटे यादव ने कहा कि शहर के विकास की जवाबदारी किसी एक राजनीतिक दल की नहीं होकर सभी दलों की है। हमारे पार्षद विकास कार्य करना चाहते हैं, किंतु अधिकारी नियमों की आड़ लेकर कार्य नहीं करने देते। शहर में नाला टेपिंग के नाम पर करोड़ों रुपए के कार्य हमारे अधिकारी कर रहे हैं, जिसमें बड़ी मात्रा में भ्रष्टाचार भी हो रहा है, लेकिन जानकारी के अभाव में निगम परिषद उसे रोक नहीं पाती। हमारे यहां कई योजनाएं कागजों पर क्रियान्वित हो रही हैं और इसकी जानकारी भी पार्षदों को नहीं लग पाती। सारा दोष पार्षद में नहीं होता सिस्टम कहां जा रहा है यह देखना चाहिए। नगर निगम में अधिकारी किस क्षेत्र का विशेषज्ञ है और कार्य क्या कर रहा है। इसके लिए जनप्रतिनिधि के साथ ही अधिकारियों की भी जवाबदारी तय होना चाहिए। परिषद में सिर्फ मोहर लगाना होता है इसके लिए कोई भी दल की परिषद हो। सभी राजनीतिक दलों को तय करना चाहिए कि वे टिकट किसे दें। पार्षद का टिकट पढ़े-लिखे और विशेषज्ञों को देने की जिम्मेदारी राजनीतिक दलों की है। दोनों दलों को चाहिए कि अपने प्रतिनिधि को बैठाकर बताए कि आपका काम है अपने वार्ड का विकास करना। उन्हें परेशानी आने पर उनका मार्गदर्शन करना चाहिए।

पार्षद टीनू जैन ने कहा कि निगम जोन की बजाय वार्ड स्तर पर कार्यालय बने, जिससे आम जनता को अपने कार्य कराने में सहूलियत रहे और उनके काम वार्ड कार्यालय पर ही हो जाएं। नई परिषद ऐसी होना चाहिए जहां विकास और सुधार के लिए भी विरोध हो तो उसे स्वीकार करना चाहिए।

धरोहरों के जीर्णोद्धार में स्थानीय विशेषज्ञों की हो भागीदारी।

पद्मश्री भालू मोंढे ने कहा कि इंदौर में अभी काफी हेरीटेज बिल्डिंग का रिनोवेशन हो रहा है, जिसमें राजबाड़ा, गोपाल मंदिर, गांधी हॉल और लालबाग शामिल हैं। जिला कोर्ट भी यहां से जा रहा है, इसके जाने के बाद यहां क्या किया जाएगा इस बारे में कोई सोचता ही नहीं, इसकी जानकारी आम जनता को भी नहीं है। नगर परिषद को इन सब बातों को जनता के सामने रखना चाहिए। शहर की धरहर के रिनोवेशन में कितना बजट लग रहा, इसकी डिजाइन कैसी है आदि बातों की जानकारी आम जनता को भी होना चाहिए। शहर के विकास के लिए स्थानीय कलाकारों विशेषज्ञों से बातचीत कर इसकी प्लानिंग करना चाहिए। शहर में पेड़ों की गिनती तो होती हैं, कितने पेड़ लगना है यह घोषणा भी हो जाती है, लेकिन लगे कि नहीं इसकी कोई मॉनिटरिंग नहीं होती है।
परिचर्चा में ईश्वर बाहेती,
सामाजिक कार्यकर्ता अशोक कोठारी, पूर्व एड़ीएम रामेश्वर गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा,
मालवा चेंबर्स ऑफ कॉमर्स के सुरेश हरियाणी, ऑटो रिक्शा यूनियन के राजेश बिड़कर,पूर्व पार्षद पद्मा भोजे, मुरली दम्मानी,
स्कूल पैरेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अनुरोध जैन,
उद्योगपति प्रमोद डफरिया, देवेंद्र बंसल और माला ठाकुर ने भी परिचर्चा में अपने विचार रखे।

आयोजक संस्था सेवा सुरभि के अध्यक्ष ओमप्रकाश नरेडा ने बताया कि सभी वक्ताओं के अलावा अनिल भोजे, यशवर्धन, शिवाजी मोहिते आदि ने भी नई परिषद को लेकर लिखित में अपने सुझाव दिए। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलित कर किया गया। कार्यक्रम का संचालन कार्यक्रम संयोजक अतुल सेठ ने किया। आभार पर्यावरणविद डॉ. ओ.पी. जोशी ने माना। अंत में सेवा सुरभि और इंदौर प्रेस क्लब की ओर से अतिथियों को कमल कलवानी और संजय त्रिपाठी ने स्मृति चिह्न भेंट किए। कार्यक्रम में म.प्र. मराठी अकादमी के पूर्व अध्यक्ष अश्विन खरे, सावरमल शर्मा, बृहन महाराष्ट्र मंडल के अध्यक्ष मिलिंद महाजन, नेताजी मोहिते, डॉ. दिव्या गुप्ता, पार्षद कंचन गिदवानी, ज्योति तोमर, समाजसेवी अलका सैनी, इंदौर प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष प्रदीप जोशी, कोषाध्यक्ष संजय त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार चंद्रप्रकाश गुप्ता, राजेंद्र कोपरगांवकर, लक्ष्मीकांत पंडित, प्रवीण जोशी सहित बड़ी संख्या में गणमान्यजन उपस्थित थे।

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