सत्ता की चाबी किसे सौंपेगा मालवा – निमाड़..?

  
Last Updated:  November 25, 2023 " 06:20 pm"

पिछले चुनाव से ज्यादा हुए मतदान को लेकर सियासी दलों के अपने अपने दांवे।

🔹प्रदीप जोशी🔹

इंदौर : विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों को मालवा – निमाड़ से सत्ता प्राप्ति की उम्मीद बंधी हुई है। सूबे की 66 विधानसभा सीटों पर जिस उत्साह से लोगों ने मतदान में हिस्सा लिया वह हैरान करने वाला रहा क्योंकि इस बार ना तो लहर जैसा कोई सीन था और ना ही किसी चेहरे पर यह चुनाव लड़ा गया। दीपावली जैसे प्रमुख त्योहार के बीच चुनाव का माहौल भी कुछ खास रंग नहीं जमा पाया। खास बात यह रही कि जनता ने मतदान वाले दिन तक चुप्पी धारण किए रखी। पिछले चुनाव के मुकाबले दो से तीन फीसदी तक ज्यादा मतदान सूबे में होने को कांग्रेस और भाजपा अपनी अपनी जीत बता रही है। बहरहाल, 3 दिसंबर को पता चलेगा कि दोनों दलों के दांवों में कितना दम था। सूबे में पहली बार कांग्रेस और भाजपा को अपने अपने बागियों से भी जुझना पड़ा। मालवा निमाड़ की दस सीटों पर बागियों ने त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया। इनमे धार सीट पर मुकाबला चतुष्कोणीय रहा जिसमें भाजपा के वरिष्ठ नेता विक्रम वर्मा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

55 सीटों पर 70 से 90 फीसदी तक मतदान।

देश की राजनीति का मालवा- निमाड़ पर असर सबसे ज्यादा रहता है। यहीं कारण है कि हर लहर का साथ यह सूबा देता रहा है। चाहे लहर सत्ता पक्ष की हो या सत्ता के विरोध की। इस बार सीन किसी लहर का नहीं बना, बावजूद इसके अंचल की 55 विधानसभा सीटों पर 77 से 90 फीसदी तक मतदान हुआ। सबसे ज्यादा 90 प्रतिशत वोट उज्जैन संभाग की सैलाना विधानसभा सीट पर डले। 23 विधानसभा सीट ऐसी है जहां मतदान 80 प्रतिशत से ज्यादा है। चुनावी विशेषज्ञ इतनी तादाद में हुए मतदान को लेकर मानते है कि भले इस चुनाव में कोई चेहरा या लहर नहीं थी फिर भी जनता में कुछ अंडर करंट था। अब इसको लेकर सियासी दलों के अपने अपने दावे हैं।

11 सीटों पर बागियों ने उलझाएं पेंच।

चुनावों में बगावती तैवर देखना आम बात है मगर पहली बार मालवा- निमाड़ में भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों को अपने नेताओं की बगावत झेलना पड़ी। सूबे की दस विधानसभा सीटों पर पेंच उलझे हुए हैं, खास बात यह है कि पार्टी से बगावत कर मैदान पकड़ने वाले नेता भी अपनी जीत के दावे में पीछे नहीं हैं। गौरतलब है कि भाजपा के रूठों को मनाने के लिए खुद अमित शाह जैसे नेता ने बात की। तमाम कोशिशों के बाद भी भाजपा को 6 सीटों पर और कांग्रेस को 4 सीटों पर बागियों ने त्रिकोणीय संघर्ष में उलझा दिया।

इन सीटों पर उलझी भाजपा।

रूठों को मनाने के लिए की गई तमाम कोशिशों के बाद कुछ मान गए तो कुछ ने गुजारिश अनसुना कर मैदान पकड़ लिया। इनमे सबसे ज्यादा चर्चित सीट धार की है जहां से पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री विक्रम वर्मा की पत्नी नीना वर्मा प्रत्याशी है। भाजपा के राजीव यादव बागी होकर मैदान में आ गए। पार्टी के तमाम नेताओं को धता बताते हुए यादव ने पूरी ताकत से चुनाव लड़ा।

मंत्री ओमप्रकाश सकलेचा की जावद सीट पर भी भाजपा को अपने ही बागी पूरणमल अहिर की चुनौती झेलना पड़ गई। अहिर भी टिकट के दांवेदार थे। पार्टी ने उनके दावे को खारिज कर दिया।इससे नाराज होकर उन्होंने मैदान पकड़ लिया।

बुरहानपुर में नंदकुमार सिंह चौहान नंदू भैया के पुत्र हर्षवर्धन सिंह को मनाने के लिए पार्टी के तमाम नेता जुटे थे। सारे प्रयास विफल हो गए क्योंकि हर्ष ने चुनाव लड़ने का पक्का इरादा कर इस सीट पर अर्चना चिटनीस को त्रिकोणीय मुकाबले में ला दिया।

जोबट में पूर्व विधायक रहे माधोसिंह डाबर पार्टी के फैसले से नाराज होकर बगावत कर बैठे। पार्टी के तमाम बड़े नेताओं ने उन्हें मनाया मगर माधो दादा पर कोई असर नहीं हुआ। ताजा ताजा भाजपाई हुए विशाल रावत को त्रिकोणीय मुकाबले में जुझना पड़ा।

अलीराजपुर में पूर्व जिलाध्यक्ष वकील सिंह ठकराला पार्टी के फैसले के विरोध में मैदान में डट गए थे। उन्होंने पार्टी नेताओं के फरमान को अनसुना कर छोटे भाई सुरेंद्रसिंह ठकरावा को मैदान में उतार कर त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बना दी।

इंदौर जिले की देपालपुर सीट पर तीखे तैवर दिखाने वाले हिन्दूवादी नेता राजेंद्र चौधरी पार्टी की तमाम कोशिशों के बाद भी मैदान से हटने को तैयार नहीं हुए। संभवतया भाजपा में टिकट को लेकर शायद ऐसे हालात बने हो। चौधरी पूरी ताकत के साथ चुनाव मैदान में डटे और मुकाबले को संघर्षपूर्ण बना दिया।

इन सीटों पर है कांग्रेस की उलझन ।

उज्जैन जिले की बड़नगर सीट पर कांग्रेस को टिकट बदलने के कारण नये संकट का सामना करना पड़ा। पहले इस सीट से पार्टी ने राजेंद्र सिंह सोलंकी को टिकट दिया था। बाद में विरोध के चलते फिर मौजूदा विधायक मुरली मोरवाल को टिकट दे दिया। नाराज सोलंकी भी बगावत का झंडा थाम दमदारी से मैदान में डटे रहे।

इंदौर की महू सीट से कांग्रेस ने रामकिशोर शुक्ला को प्रत्याशी घोषित किया तभी से पूर्व विधायक अंतरसिंह दरबार नाराज थे। मनाने की तमाम कोशिशे नाकाम साबित हुई और दरबार ने इस सीट को त्रिकोणीय संघर्ष के स्तर पर ला दिया।

रतलाम जिले की जावरा सीट पर करणी सेना के प्रदेश प्रमुख जीवन सिंह शेरपुर ने निर्दलीय चुनाव लड़ कर दोनों दलों का तनाव बढ़ा दिया। हालांकि उन्होंने कांग्रेस से टिकट मांगा था और नाराजी भी कांग्रेस से ही थी मगर करणी सेना का असर सिर्फ जावरा ही नहीं बल्कि आसपास की आधा दर्जन सीटों पर है यहीं कारण रहा कि कांग्रेस के साथ परेशानी भाजपा को भी हो रही है।

सांवेर में अपनी बेटी के टिकट का विरोध करने वाले कांग्रेस नेता प्रेमचंद गुड्डू अपनी सियासी जमीन बचाने की जद्दोजहद में जुटे हैं। बगावत का झंडा लेकर अपनी पुरानी सीट आलोट पहुंचे गुड्डू ने मुकाबले को संघर्ष की स्थिति में ला दिया है।

धार विधानसभा में भाजपा की तरह कांग्रेस भी अपनों की बगावत झेल रही है। इस सीट से कुलदीप बुंदेला टिकट के प्रबल दांवेदार थे मगर पार्टी ने बालमुकुंद सिंह गौतम की पत्नी प्रभा गौतम को टिकट दे दिया। बुंदेला पूरी ताकत से चुनाव लडे और मुकाबला चतुष्कोणीय बना दिया।

दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर।

इस चुनाव के परिणाम का इंतजार आम जनता को भी बेसब्री से हो रहा है। कारण इस बार कई दिग्गज मैदान में थे और किसी के भी मुकाबले को एक तरफा नहीं कहा जा सकता। मतबल साफ है कि परिणाम चौकाने वाले आ जाए तो भी कोई बड़ी बात नहीं। उनके अलावा दोनों दलों के कई दिग्गज हैं जिनका राजनैतिक अस्तित्व इस चुनाव से जुड़ा है। इनमें भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, मंत्री तुलसी सिलावट, ओमप्रकाश सकलेचा, जगदीश देवडा, उषा ठाकुर, विजय शाह, डॉ मोहन यादव जैसे नाम प्रमुख है। वही कांग्रेस के दिग्गज सज्जनसिंह वर्मा, जीतू पटवारी, उमंग सिंघार, हनी बघेल, बाला बच्चन, नरेंद्र नाहटा, विजयलक्ष्मी साधो, डॉ विक्रांत भूरिया, सुभाष सोजतिया जैसे नेता प्रमुख हैं, जिनकी प्रतिष्ठा इस चुनाव में दांव पर है।

बहरहाल, तमाम दावों – प्रतिदावों, कयासों, अटकलों के बीच सबकी निगाहें तीन दिसंबर को होने वाली मतगणना पर टिकी हैं। उसी दिन पता चलेगा की बंपर वोटिंग का लाभ किसे मिला।

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