समाज में आई नैतिक गिरावट से रूबरू कराता नाटक ‘अंत हाजिर हो’

  
Last Updated:  September 26, 2021 " 11:41 am"

इंदौर : सारी गालियां मां, बहन या बेटी पर आ कर ही क्यूं दम लेती है। ये गालियां नहीं बल्कि समाज की ढकी-छुपी सच्चाइयां है। ये उस नाटक के कुछ संवाद हैं जो अभिनव कला समाज के मंच पर संस्था अनवरत के कलाकारों ने शिद्धत के साथ मंचित किया।

नाटक की शुरूआत धीरज नाम के एक युवक के घर से होती है जहां कुछ युवा रंगकर्मी एक नुक्कड़ नाटक की रिहर्सल में जुटे हैं। नुक्कड़ नाटक बाबू जी की थाली एक ऐसी महिला की कहानी है, जिसने अपना पूरा जीवन अपने परिवार और पति की सेवा में लगा दिया। धीरे -धीरे नाटक आगे बढ़ता है तो पता चलता है कि नाटककार शिल्पा ने यह नुक्कड़ नाटक करने से मना कर दिया है।

शिल्पा अब एक नया नाटक करना चाहती है। उसके बाकी साथी परेशान हो जाते है कि उन्होंने बाबू जी की थाली के पोस्टर पूरी यूनिर्वसिटी में लगा दिए है। अब सिर्फ दस दिन बचे है ऐसे में नया नाटक कैसे हो पाएगा। मंच पर मुख्य रूप से पांच पात्र है, जिनमें तीन लड़के और दो लड़कियां है। धीरज, जिसके घर पर रिहर्सल होती है, इरफान और रोली, जो आपस मे अच्छे दोस्त भी है और सुधांशु। शिल्पा इस नाटक मंडली की लेखक भी है और सुधांशु की मित्र भी। सुधांशु को पता चलता है कि शिल्पा इन दिनों एक डायरी पर नाटक लिखने में व्यस्त है। वह डायरी शिल्पा को उसकी किसी सहेली ने दी है। सुधांशु अपने मित्रों को बताता है कि शिल्पा इन दिनों उस डायरी की वजह से बहुत पेरशान है। सुधांशु, जिसे शिल्पा ने डायरी के बारे में बता दिया है, सब को उस डायरी के बारे में बताता है। सुधांशु बताता है कि वह डायरी उसकी सहेली ने शिल्पा को दी है। जो उसकी सहेली की छोटी बहन की है। सुधांशु जैसे-जैसे डायरी की घटनाओं का ज़िक्र करता रहता है वैसे ही मंच के दूसरे कौने पर वह सब अभिनीत भी होता रहता है।

डायरी लिखने वाली लड़की पर इल्जाम लगाया जाता है कि उसने अपने पापा के रैक की सभी किताबें बीच से आधी आधी काट दी है। बाद में पता चलता है कि उनमें से ज्यादातर किताबें अश्लील थी। जैसे जैसे कहानी आगे बढती है, तो पता चलता है कि उसने यानी डायरी लिखने वाली लड़की ने अपने ही पिता को अपनी बड़ी बहन के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देखा है, जिसके कारण छोटी के मन पर गहरा पभाव पड़ता है और वो बेहद परेशान हो जाती है। नाटक के अंत जब सब कलाकार नाटक के अंत की बात कर रहे होते है तो बाहर से एक युवक आता है और आकर शिल्पा को बताता है कि छोटी ने पंखे से लटक कर अपनी जान दे दी है। तब सब को पता चलता है कि डायरी लिखने वाली कोई ओर नहीं बल्कि शिल्पा की ही छोटी बहन है।छोटी की आत्महत्या पर सब कलाकार चिल्लाते है कि ये अंत हमें मंजूर नहीं और शिल्पा के साथ सभी कलाकार मंच से चिल्लाते है अंत हाजिर हो…।

मंच पर थे – अतुल पैठारी, किशन ओझा, फ़हीम खान, सिमरन वर्मा, मुस्कान रंसौरे, प्रकृति चौहान, नितिन एवं नितेश उपाध्याय

मंच के पीछे –

संगीत – देवेश धाबलिया, जिश्नु भट्टाचार्य
गायन – सुरभि मोटे
प्रकाश – अर्जुन नायक

प्रारम्भ में कवि-पत्रकार आलोक श्रीवास्तव ने दीप प्रज्जवलित कर नाटक का शुभारंभ किया। अतिथियों का स्वागत नितेश उपाध्याय,अमन काज़ी, प्रवीण कुमार खारीवाल,मीना राणा शाह,कमल कस्तूरी, सोनाली यादव,प्रवीण धनोतिया ने किया। आभार नितेश उपाध्याय ने माना।

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