इंदौर : सांसद शंकर लालवानी ने गुरुवार को संसद में सिंधी में दिए गए भाषण में सात मांगे सरकार के समक्ष रखीं थीं। उनमें सिंधी भाषा व संस्कृति के उत्थान के लिए राष्ट्रीय सिंधी अकादमीं गठित करने, सिंधी भाषा का राष्ट्रीय चैनल शुरू करने, सिंधी यूनिवर्सिटी स्थापित करने और सिंधी भाषियों के लिए अलग प्रान्त स्थापित करने की मांग प्रमुख थीं। देखा जाए तो किसी भी भाषा, साहित्य और संस्कृति के उत्थान की मांग करने में कुछ भी गलत नहीं है लेकिन अलग सिंधी प्रांत स्थापित करने की मांग को क्या जायज ठहराया जा सकता है..? क्या इसतरह की मांग संसद में रखकर सांसद लालवानी जाने- अनजाने में अलगाव के बीज तो नहीं बो रहे हैं..? वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा ने सांसद लालवानी की इस मांग को गलत और विभेदकारी बताया है।
अलग राज्य की मांग करना गलत।
वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा का कहना है कि संसद में सिंधी भाषा में अपनी बात कह कह सांसद शंकर लालवानी ने अन्य समाजों को भी प्रभावित किया लेकिन अलग सिंधी राज्य की मांग कर सब गुड़ गोबर कर दिया। उनकी बात सुनकर ऐसा लगा कि कहीं
साढ़े पांच लाख से अधिक मतों से लालवानी को जीता कर इंदौर के मतदाताओं ने गलती तो नहीं कर दी।
सांसद की इस मांग से प्रेरित होकर कल से सांसद ओवैसी मुसलमानों के लिए अलग राज्य की मांग कर दे तो क्या वह जायज होगा..?
अलगाव को बढ़ावा दे सकती है इसतरह की मांग।
सांसद लालवानी सुलझे विचारों वाले हैं, जाहिर है उन्होंने देश-विदेश के सिंधियों का दिल जीतने के लिए ही यह मांग की होगी किंतु उनकी यह मांग भविष्य में विघटनकारी हालात का कारण भी बन सकती है।
ऐसी मांग करने के पहले वे आठ बार सांसद रहीं-लोकसभा की पूर्व स्पीकर सुमित्रा महाजन से ही ज्ञान प्राप्त कर लेते।उनसे बात करने में सर्वाधिक मतों से जीत का घमंड आड़े आता हो तो सिंधी समाज का देश में मान-सम्मान बढ़ाने वाले पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवानी से ही मार्गदर्शन ले लेते।उनसे यही पूछ लेते कि आप ने आज तक अलग सिंधी राज्य की मांग क्यों नहीं की।
मुझे लगता है सांसद लालवानी ऐसी मांग कर के आडवानीजी से भी आगे निकलने और सिंधी समाज के सर्वमान्य नेता बनने की शातिर राजनीति खेल रहे हैं।
सांसद यह याद रखे कि कहीं उनकी मांग हिंदू-सिंधू के बीच दरार का कारण ना बन जाए। अभी ऐसा कुछ नहीं है लेकिन अलग सिंधी राज्य की मांग जोर पकड़ने लगेगी तो समाज के अन्य वर्गों में गलत संदेश जा सकता है, जो देश की एकता के लिए घातक होगा।