नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोरोना संक्रमण के कारण स्कूल बंद हैं। सिर्फ ऑनलाइन कक्षाए ही जारी हैं ऐसे में स्कूलों की रनिंग कॉस्ट काफी कम हो गई हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे में शिक्षण संस्थानों को फीस में कटौती करनी चाहिए।
कोरोना संक्रमण महामारी की वजह से स्कूल बंद कर दिए गए हैं और स्टूडेंट्स को सिर्फ ऑनलाइन कक्षाओं के जरिए शिक्षा दी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि शैक्षणिक संस्थानों को फीस कम करनी चाहिए क्योंकि मौजूदा हालत में स्कूलों में उपलब्ध विभिन्न सुविधाएं बंद हैं इसलिए स्कूलों की रनिंग कॉस्ट भी कम हो गई है।
एजुकेशन इंस्टीट्यूट्स को पैरेंट्स की मदद करनी चाहिए।
जस्टिस ए एम खानविलकर और दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि एजुकेशनल इंस्टीट्यूट के मैनेजमेंट को महामारी के चलते लोगों द्वारा फेस की जा रही समस्याओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। इन संस्थानों को आगे बढ़कर इस कठिन समय में पैरेंट्स और स्टूडेंट्स की सहायता करना चाहिए।
स्टूडेंट्स द्वारा इस्तेमाल नहीं की गई सुविधाओं के संबंध में स्कूल फीस न लें।
पीठ ने कहा कि स्कूल प्रबंधन को उन गतिविधियों और सुविधाओं के संबंध में फीस नहीं लेनी चाहिए जो मौजूदा हालात के कारण स्टूडेंट्स द्वारा इस्तेमाल नहीं की जा रही हैं।इस तरह की गतिविधियों पर ओवरहेड्स के संबंध में भी फीस की मांग करना मुनाफाखोरी और व्यावसायीकरण में शामिल होने से कम नहीं होगा। यह एक फैक्ट है और इस पर न्यायिक नोटिस भी लिया जा सकता है कि पूर्ण लॉकडाउन के कारण, शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के दौरान स्कूलों को लंबे समय तक खोलने की अनुमति नहीं थी। इसके अलावा, स्कूल प्रबंधन की इस दौरान ओवरहेड्स और विभिन्न वस्तुओं जैसे पेट्रोल / डीजल, बिजली, रखरखाव लागत, जल शुल्क, स्टेशनरी शुल्क, आदि पर बचत भी हुई है।
स्कूलों को फीस कम करनी चाहिए।
राजस्थान के निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों की याचिका को राज्य सरकार के निर्देश के विरुद्ध मानते हुए कि उन्हें महामारी के दौरान ट्यूशन फीस का 30% चुकाना है, पीठ ने कहा कि इस तरह का आदेश पारित करने के लिए राज्य सरकार के पास कोई कानून नहीं है लेकिन पीठ इस बात पर सहमत है कि स्कूलों को फीस कम करनी चाहिए थी।