इंदौर : वेदांत की महत्ता हर युग में प्रासंगिक है। हमारा समाज नैतिक मूल्यों के पतन की ओर बढ़ रहा है। वेदांत वह दर्शन और चिंतन है जो मानव को महामानव बनाता है। वेदांत का दर्शन और मंथन संस्कारों की विकृति को रोकता है। ब्रह्मलीन स्वामी अखंडानंद महाराज ने अपने तप, तेज और साधना से वेदांत के साथ ही सनातन धर्म को भी घर-घर पहुंचाया। महापुरुषों के सदकर्मो की सुगंध कभी नष्ट नहीं हो सकती। संत-विद्वान चलते-फिरते तीर्थ हैं। उनके बताए रास्ते पर आगे बढ़ना ही उनके प्रति हमारी सच्ची आदरांजलि होगी।
जगदगुरु शंकराचार्य, भानपुरा पीठाधीश्वर स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ महाराज ने बिजासन रोड स्थित अखंडधाम आश्रम पर चल रहे 54वें अ.भा. अखंड वेदांत संत सम्मेलन में आश्रम के संस्थापक ब्रह्मलीन स्वामी अखंडानंद महाराज की 54वीं पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धासुमन समर्पित करते हुए उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। गत 19 दिसम्बर से चल रहे इस सम्मेलन के समापन सत्र में चित्रकूट पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी दिव्यानंद महाराज की अध्यक्षता में महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी चेतन स्वरूप, चित्रकूट से आए स्वामी प्रभुतानंद, रतलाम से आए महामंडलेश्वर स्वामी स्वरपानंद, साध्वी अर्चना दुबे, चौबारा जागीर के वेदांत भूषण स्वामी नारायणनानंद, स्वामी राजानंद, स्वामी दुर्गानंद आदि ने अपने विचार व्यक्त किए और आश्रम तथा स्वामी अखंडानंद से जुड़े प्रेरक संस्मरण भी सुनाए।
प्रारंभ में आयोजन समिति की ओर से संयोजक विधायक रमेश मेंदोला, अध्यक्ष हरि अग्रवाल, आदित्य सांखला, दीपक चाचर, कुलभूषण मित्तल कुक्की, श्याम अग्रवाल, सरस्वती पेंढारकर, सुश्री किरण ओझा आदि ने सभी संत- विद्वानों का स्वागत किया। जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ का अग्रवाल समाज की ओर से वरिष्ठ समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, बालकृष्ण छाबछरिया, कुलभूषण मित्तल, हरि अग्रवाल आदि ने शाल-श्रीफल भेंटकर सम्मान किया। मंच का संचालन स्वामी नारयणनानंद एवं हरि अग्रवाल ने किया। अंत में आश्रम के महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी चेतन स्वरूप एवं अध्यक्ष हरि अग्रवाल ने सभी सहयोगी बंधुओं के प्रति आभार व्यक्त किया।
1008 दीपों से की गई महाआरती।
इस अवसर पर देशभर से आए डेढ़ सौ से अधिक साधु-संतों और विद्वानों ने सैकड़ों भक्तों के साथ ब्रह्मलीन स्वामी अखंडानंद के विग्रह पर हजारों दीपों से महाआरती कर उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन समर्पित किए। सैकड़ों महिलाएं अपने घरों से गोबर से बने दीप एवं आरती की थालियां सजाकर लाई थी। ‘शिवोहम’ के उदघोष के बीच भक्तों ने स्वामी अखंडानंदजी को याद किया। आरती के पश्चात कोविड नियमों का पालन करते हुए महाप्रसादी का आयोजन भी हुआ, जिसमें चार हजार से अधिक भक्तों ने पुण्य लाभ उठाया।