🔺कीर्ति राणा 🔺
इंदौर : हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने मध्य प्रदेश में होने वाले नगरीय निकाय एवं पंचायत चुनाव में महापौर/अध्यक्ष की आरक्षण प्रक्रिया पर रोक लगाने का फैसला सुनाया है। एक तरह से भाजपा, कांग्रेस सहित सभी दल इस फैसले से मन ही मन खुश हैं।पांच राजयों में चल रहे विधानसभा चुनाव के चलते मध्य प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक दल तो किसी हालत में नहीं चाहते थे कि पंचायत या नगरीय निकाय चुनाव की प्रकिर्या शुरु हो लेकिन हाईकोर्ट इंदौर की खंडपीठ के निर्देश के तहत प्रक्रिया शुरु करना पड़ी थी। इसीलिए ग्वालियर हाईकोर्ट के निर्णय को सभी राजनीतिक दल ‘सांप भी मर गया, लाठी भी नहीं टूटी’ मानकर खुश हैं।
घोषित तौर पर इस निर्णय को लेकर सभी दल प्रतिक्रिया व्यक्त करने से बचते नजर आए लेकिन ऑफ द रिकार्ड यह कहने से नहीं हिचकिचाए कि भाजपा हो या कांग्रेस सभी दलों के वरिष्ठ नेता, स्टार प्रचारक से लेकर मुख्यमंत्री-मंत्री आदि खासकर पश्चिम बंगाल और अन्य चार राज्यों असम, केरल, तमिलनाडू, पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव में व्यस्त हैं।मई के पहले सप्ताह में इन राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद ही सभी नेता मप्र लौटेंगे, ऐसे में संभव नहीं कि पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव के लिए वक्त निकाल पाते।
अप्रैल-मई में परीक्षाओं का दौर भी एक कारण।
यदि मप्र में पंचायत-नगरीय निकाय चुनाव की तारीखें घोषित कर भी दी जाती तो अप्रैल-मई के महीने में चुनाव कराना पड़ते। इसी अवधि में दसवीं-बारहवीं की परीक्षाएं भी होना है।ऐसी स्थिति में स्कूलों को मतदान केंद्र बना पाना संभव नहीं होता और न ही निर्वाचन प्रक्रिया में अध्यापकों का सहयोग मिल पाता।यही वजह है कि नेताओं की अपेक्षा आम कार्यकर्ता भी यह मानकर चल रहा था कि चुनाव अभी तो नहीं होंगे।
परीक्षा के बाद बारिश का मौसम
अप्रैल-मई में परीक्षाओं का दौर निपटने के बाद जून से सितंबर तक मानसून की वजह से भी चुनाव करवाना संभव नहीं होता।ग्वालियर हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद यदि राज्य सरकार नए सिरे से आरक्षण प्रक्रिया अपनाए तो भी वक्त लगना है। ऐसे हालात में पंचायत-नगरीय निकाय चुनाव सितंबर-अक्टूबर में ही संभव हैं।
सरकार के दोनों हाथ में लड्डू।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के लिए भी नगरीय निकाय चुनाव टल जाना हर तरीके से फायदे का सौदा है। सभी नगर निगमों में ना मेयर हैं ना मेयर इन कौंसिल। सारी बागडोर अफसरों के हाथ में हैं जिनके सीधे तार सीएम हाउस से जुड़े हैं। इसी तरह इंदौर में जिस तरह कॉलोनियों में गड़बड़ी का निदान, वर्षों के बाद भूखंडधारकों को कब्जे मिलना शुरु हुए हैं और मुख्यमंत्री ने इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह वाले मॉडल को अन्य जिलों के कलेक्टरों को निर्देश दिए हैं तो भूमाफिया पर शिकंजा कसना, असली हकदारों को कॉलोनियों में प्लॉट का कब्जा दिलाने जैसी कार्रवाई का फायदा सत्तारूढ़ दल को ही मिलना है। इस अभियान के बाद राज्य सरकार प्रदेश की अवैध कॉलोनियों के नियमितीकरण की घोषणा वाला कदम उठाने वाली है। जाहिर है सरकार के ये सारे फैसले प्रदेश की सभी नगर निगमों में भाजपा का बोर्ड बनाने में मदगार साबित होंगे।
उच्च न्यायालय ग्वालियर ने नोटिफिकेशन स्थगित कर दिया।
उच्च न्यायालय खंडपीठ ग्वालियर के समक्ष नगर पालिकाओं एवम नगर पंचायतों में मेयर व प्रेसीडेंट के पद को आरक्षित करते हुए सरकार द्वारा जारी आदेश दिनांक 10/12/20 को चुनौती देते हुए एक याचिका अधिवक्ता मानवर्द्धन सिंह तोमर द्वारा प्रस्तुत की गयी। जिसमें याचिकाकर्ता की तरफ से पैरवी अभिभाषक अभिषेक सिंह भदौरिया द्वारा की गयी ।
इस मामले की प्रथम सुनवाई 10/03/2021 को की गई थी। सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए समय देकर 12/03/2021 की तारीख सुनवाई के लिए नियत की गई थी । उच्च न्यायालय की युगल पीठ ने दोनों पक्षों की सुनवाई उपरांत पाया की चूँकि प्रथम दृष्ट्या ऐसा प्रतीत होता है कि 10/12/2020 को जारी आरक्षण आदेश में रोटेशन पद्धति का पालन नहीं किया गया है।
उच्च न्यायालय ने एक अन्य प्रकरण में ऐसा मान्य किया है की प्रथम दृष्ट्या आरक्षण रोटेशन पद्धति से ही लागू होना चाहिए ऐसी स्थिति में प्रकरण के अंतिम निराकरण तक उक्त आरक्षण का नोटिफिकेशन दिनांकित 10/12/2021 को पूर्ण रूप से स्थगित किया जाता है l साथ ही कहा है कि सरकार चाहे तो नए सिरे से आरक्षण की प्रक्रिया अपना सकती है।
उच्च न्यायालय के समक्ष शासन की तरफ से पैरवी अतरिक्त महाधिवक्ता अंकुर मोदी ने की।