इंदौर : रामबाग निवासी, मराठी और हिंदी की वरिष्ठ कवयित्री सुशीलाताई कुलकर्णी जो” माई” के नाम से मशहूर थी, का बीते रविवार (12 मार्च) को निधन हो गया। पीठ में गहरी चोंट होने से उनका ऑपरेशन हुआ था।उन्होंने अस्पताल में ही अंतिम सांस ली। अंतिम संस्कार रामबाग मुक्तिधाम पर किया गया। कई रचनाकारों, साहित्यकारों और समाजसेवियों ने सुशीलाताई कुलकर्णी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अनिल्कुमार धड़वाईवाले ने बताया कि सशक्त रचनाकार सुशीलाताई कुलकर्णी का जन्म निमाड़ के सनावद गांव में 8 अक्टूबर 1928 को हुआ था। पिताजी स्वर्गीय दामोदर नामचीन चिकित्सक थे। सात भाई- बहनों में माई सबसे बड़ी थी। पिता का निधन होने के बाद सुशीलाताई ने अपना सारा जीवन भाई – बहनों को पढ़ाने और उनकी जिंदगी संवारने में लगा दिया। इसके चलते उन्होंने शादी भी नहीं की।
संत साहित्य और आध्यात्म में उनकी गहरी रुचि रही।सुशीलाताई की आठ मराठी-हिंदी रचनाओं की पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी थी। खास जिक्र करने जैसी बात यह भी है कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व.मोरारजी देसाई के अलावा विनोबा भावे, मराठी कवि पद्मश्री नारायण सुर्वे व्यंग लेखक वी.आ. बुवा ( मुंबई) के हाथों सुशीला ताई सम्मानित व पुरस्कृत हो चुकी थी। महाराष्ट्र साहित्य सभा, इंदौर का राष्ट्रीय स्तर का स्वर्गीय तात्या साहेब सरवटे पुरस्कार भी उन्हें दिया गया था। धड़वईवाले ने बताया कि हम छह भाइयों में बहन नही होने से बचपन से माई हम भाईयों को हर साल राखी बांधती थी। उनकी स्मृति को सादर नमन।