नई दिल्ली : फ्लोर टेस्ट से बचने के सीएम कमलनाथ और कांग्रेस के सारे सियासी और कानूनी दांवपेंच नाकाम रहे। पूर्व सीएम शिवराज सिंह की याचिका पर दो दिन तक चली मैराथन बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार शाम अपना फैसला सुनाते हुए शुक्रवार 20 मार्च को विधानसभा का सत्र बुलाकर फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दे दिया।
हाथ उठाकर होगा फ्लोर टेस्ट।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले के जरिये आदेश दिया है कि 20 मार्च को विधानसभा का सत्र बुलाकर केवल बहुमत परीक्षण किया जाएगा। दूसरे किसी एजेंडे पर चर्चा नहीं होगी। बहुमत का परीक्षण हाथ उठाकर होगा। समूची प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग की जाएगी। बहुमत परीक्षण के लिए शाम 5 बजे तक का समय सुप्रीम कोर्ट ने तय किया है।
बागी विधायक आना चाहें तो दें सुरक्षा।
सुप्रीम कोर्ट ने बागी विधायकों को बंधक बनाकर रखे जाने सम्बन्धी कांग्रेस की ओर से रखी गई दलील को दरकिनार कर दिया। कोर्ट ने आदेश दिया कि बंगलुरु में ठहरे 16 विधायक (जिनके इस्तीफे अभी मंजूर नहीं हुए) अगर बहुमत परीक्षण में भाग लेना चाहें तो कर्नाटक और मप्र के डीजीपी उन्हें पूर्ण सुरक्षा प्रदान करें।कोर्ट ने यह बागी विधायकों पर छोड़ दिया है कि वे विधानसभा में बहुमत परीक्षण के लिए जाना चाहते हैं या नहीं।
विधायकों को भोपाल लाने के लिए लगाया था पूरा जोर।
सीएम कमलनाथ और वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने लगातार ये प्रचार किया कि बागी विधायकों को बंगलुरु में बंधक बनाकर रखा गया है। वे वापस आना चाहते हैं लेकिन उन्हें आने नही दिया जा रहा। दिग्विजय सिंह ने तो बंगलुरु पहुंचकर बागी विधायकों से मिलने के लिए सारे हथकंडे अपनाए। वे धरने पर बैठे, डीजीपी से मिले, कर्नाटक हाईकोर्ट में भी गुहार लगाई पर हर जगह उन्हें मुंह की खानी पड़ी। बागी विधायकों ने तो वीडियो जारी कर दिग्विजय सिंह से मिलने से ही इनकार नहीं किया बल्कि उन्हें खरी- खरी भी सुनाई। दिग्विजय सिंह ने आखरी हथियार के रूप में एक मार्मिक पत्र लिखकर विधायकों को लौट आने की अपील की पर उसका भी कोई असर नहीं हुआ।
गिर सकती है सरकार…
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शुक्रवार 20 मार्च को मप्र विधानसभा में फ्लोर टेस्ट होना तय हो गया है। अभी जो संख्या बल का समीकरण नजर आ रहा है उसके मुताबिक कांग्रेस के सिंधिया समर्थक 22 विधायक बागी हो गए हैं।जिनमे से 6 विधायकों के इस्तीफे स्पीकर ने मंजूर कर लिए हैं। शेष 16 बंगलुरु में डेरा डाले हुए हैं जिनकी भोपाल आने की संभावना नहीं के बराबर है। ऐसे में 228 सदस्यों ( 2 सदस्यों का निधन होने से खाली है।) वाली विधानसभा में 22 विधायक कम होने से कुल 206 विधायक रह गए हैं जिनमे से बहुमत के लिए 104 विधायकों का समर्थन जरूरी है। कांग्रेस के 114 में से 22 विधायक सिंधिया के साथ चले गए। उसके पास अब 92 विधायक हैं। 4 निर्दलीय, 2 बसपा और एक सपा का मिलाकर ये संख्या 99 हो जाती है। बीजेपी के विधायक नारायण त्रिपाठी का समर्थन मिलने के बाद भी ये आंकड़ा 100 से आगे नहीं बढ़ पा रहा। उधर बीजेपी के पास 106 विधायक हैं। सारे समीकरण को देखते हुए आसार तो यही दिखाई दे रहे हैं कि कमलनाथ सरकार का बचना फिलहाल नामुमकिन सा है।