।।रक्षाबंधन पर विशेष।।
🔹राज राजेश्वरी क्षत्रिय🔹
वह कौन सा उपहार है, सबसे अच्छा, जो आपको रक्षाबंधन के उपहार के रूप में अब तक मिला है…?
एक रात फोन पर मेरे एक मित्र ने मुझसे यह प्रश्न तब पूछा जब हम रक्षाबंधन पर अब तक मिले उपहारों के बारे में चर्चा कर रहे थे। हमने एक-दूसरे को उपहारों के बारे में बताया और कुछ और बातचीत के बाद हमने कॉल खत्म कर दी।
पता नहीं क्यों, लेकिन यह सवाल अवचेतन मन में कहीं अटक गया था और मुझे सोने नहीं दे रहा था।
इसी सवाल पर सोचते-सोचते मैं यादों के समंदर में गोते लगाने लगी ।
ऐसा ही एक रक्षाबंधन था जब मैं इंदौर से मुंबई में अपने बड़े भैया के घर त्योहार मनाने गई थी। मैं अपने भैया के दोस्त के परिवार के साथ आयी थी क्योंकि वे भी उसी शहर में रहते थे। त्यौहार के बाद, भैया के दोस्त का परिवार कुछ और दिनों के लिए मुंबई शहर में रुका। मेरे भैया ने मेरी वापसी की टिकट बुक करवा दी। हम स्टेशन पर थे, मैं बहुत घबराई हुई थी…या अगर मैं कहूं कि बहुत डरी हुई थी तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इससे पहले मैंने कभी कोई यात्रा अकेले नहीं की थी। (आपकी जानकारी के लिए बता दूं, मैं उन दिनों बेहद अंतर्मुखी हुआ करता थी।)
जब मुझे वॉशरूम जाना होगा तो मेरे सामान की देखभाल कौन करेगा…?!!
अगर मैं सो जाऊं और कोई मेरा बैग चुरा ले तो क्या होगा…?!!
अगर कोई मुझे कुछ सुंघा दे तो…?!!
इस तरह के सवाल मुझे और तनाव में डाल रहे थे। फिर मैंने भैया की ओर देखा, इस उम्मीद से कि वो कहेंगे – चिंता मत करो.. मैं तुम्हारे साथ आ रहा हूँ. लेकिन मेरी झूठी आशा को पोषित करने के स्थान पर, उन्होंने मुझे आवश्यक बातें समझानी शुरू की, जैसे कि किससे बात करनी है, किससे नहीं, वॉशरूम का उपयोग करते समय अपने सामान का प्रबंधन कैसे करना है, सह-यात्रियों के साथ दोस्ती कैसे करनी है, खासकर उन लोगों के साथ जो परिवार के साथ यात्रा कर रहे हैं।. उन्होंने मुझे एक महिला से भी मिलवाया जो अपने दो बच्चों के साथ यात्रा कर रही थी और अंततः मैंने अपनी पहली एकल यात्रा सफलतापूर्वक पूरी की।
स्मृतियों के इस विशेष सागर में गोते लगाने के बाद, मैं सोने की कोशिश करने लगी और अचानक एक और घटना याद आने लगी।
मैंने हाल ही में मास कम्युनिकेशन में अपनी दूसरी स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की थी और अब वास्तविक पेशेवर दुनिया का सामना करने का समय आ गया था। मेरे एक मित्र ने फोन करके बताया कि एक समाचार पत्र संगठन के संपादकीय विभाग में एक पद रिक्त है। मैंने साक्षात्कार के लिए आवश्यक औपचारिकताएं पूरी कीं और मुझे इसके लिए बुलावा आ गया। इंटरव्यू से ठीक एक दिन पहले मेरी अपने दूसरे बड़े भाई से फोन पर बात हुई।हालाँकि मैं एक अच्छी छात्रा थी और मेरे पास अच्छे अंकों के साथ डिग्री थी, फिर भी मैं थोड़ा तनाव में थी । खासतौर पर पर्सनल इंटरव्यू राउंड को लेकर।
वे क्या पूछेंगे…?!!
अगर मैं गलत उत्तर दूं तो…?!!
उस अनुभाग के बारे में क्या, जहां वे वेतन के बारे में चर्चा करेंगे…?!!
डिग्री, ज्ञान, काम से जुड़े पूछे गए सवालों का जवाब देना तो ठीक है, लेकिन सैलरी…?!!
मैं जिस मानदेय की अपेक्षा कर रही हूं, वह कैसे मांगूंगी और यदि यह उनके प्रस्ताव से मेल नहीं खाता है तो…?!! (वही आशंकाओं से भरे सवालों का शोर ।)
मेरे भाई ने मुझे इंटरव्यू केबिन में प्रवेश, बैठने के तरीके, आत्मविश्वास से जवाब देने से लेकर वेतन पर चर्चा तक सब कुछ बताया। मैंने बिल्कुल वैसा ही किया, एक इंच भी ऊपर या नीचे नहीं। इंटरव्यू के दौरान मुझे ऐसा लगा जैसे मैं पहले भी इस प्रक्रिया से गुजर चुकी हूं। साक्षात्कार कर्ता ने लगभग उसी तरह के प्रश्न पूछे , जिनके लिए मेरे भाई ने मुझे तैयार किया था। आखिरकार, मैंने इंटरव्यू पास कर लिया।
इन दोनों घटनाओं को याद करते हुए मुझे एहसास हुआ कि उन्होंने मुझे जो सिखाया है, वह जीवन भर मेरे साथ रहेगा क्योंकि यह एक साक्षात्कार, एक ट्रेन यात्रा के बारे में नहीं है। मुझे जो आत्मविश्वास मिला, वह अमूल्य और चिरस्थायी है। और मुझे नहीं लगता कि मुझे इससे अधिक प्यारा, मूल्यवान, उत्कृष्ट, उपयोगी, सुखद और स्थायी कोई अन्य उपहार मिल सकता है।
यह सब सोचते-सोचते मैं संतुष्ट मन और चमकती मुस्कान के साथ गहरी नींद में सो गयी।
(लेखिका राज राजेश्वरी पत्रकार होने के साथ शिक्षिका भी हैं।इंदौर में पत्रकारिता कर चुकी राज अब छत्तीसगढ़ के जांजगीर में रहती हैं)