*कीर्ति राणा।*
इंदौर : जिस तरह राजा भगीरथ ने कठोर तपस्या कर गंगा नदी को पृथ्वी पर आने के लिए राजी किया था। कुछ उसी तरह 50 वर्ष पूर्व छह लाख की आबादी वाले शहर इंदौर और महू की एकजुटता से 49 दिन चले #गांधीवादीआंदोलन के सामने राज्य सरकार को झुकना पड़ा था।# इंदौर में आंदोलन तो बहुत हुए और होते भी रहेंगे लेकिन नर्मदा को इंदौर लाने का यह आंदोलन ऐसा था जिसमें न पुतले फूंके, न पथराव हुआ, न गोली चली लेकिन इस गांधीवादी आंदोलन की एकजुटता के आगे तत्कालीन सरकार को झुकना ही पड़ा।
नई पीढ़ी को नहीं है जानकारी।
शहर की 50 वर्ष से कम उम्र वाली पीढ़ी को तो इस बात का अंदाज ही नहीं है कि आज उन्हें आसानी से पीने का जो पानी मिल रहा है उसके लिए 1970 के दौरान कितना संघर्ष करना पड़ा था। 5 जुलाई से 23 अगस्त 1970 तक #49_दिनी_नर्मदा_आंदोलन के बाद जब नर्मदा योजना मंजूर करने की घोषणा हुई तो आंदोलन की सफलता का श्रेय देने की अपेक्षा अन्य जिलों के लोग यह कहने से भी नहीं चूके थे कि मुख्यमंत्री ने दामाद वाली उदारता दिखा कर इंदौर की मांग मंजूर कर ली।तत्कालीन #मुख्यमंत्री_श्यामाचरण_शुक्ल का विवाह वैद्य ख्यालीराम द्विवेदी की पुत्री पद्मिनी से हुआ था इस वजह से एससी शुक्ल को इंदौर का दामाद भी कहा जाता था।
जिस नर्मदा के पानी से महू, इंदौर (नर्मदा-क्षिप्रा लिंक योजना के बाद) उज्जैन तक के गांवों की प्यास बुझ रही है, उस नर्मदा को जलूद से इंदौर तक लाना भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं रहा। इस 70 किमी के मार्ग में एक तरह से पहाड़ों को मोटे पाइपों से बांध कर वॉटर सप्लाय का काम आसान किया गया।जलूद से इंदौर के बीच विंध्याचल के पर्वतों की जो श्रृंखला है उन पर से इन पाइपों को लाया गया है।
इंदौर के लिए नर्मदा योजना की मंजूरी जन आंदोलन की सफलता के साथ इंदौर के तत्कालीन #सांसद_प्रकाशचंद्र_सेठी (जो केंद्र में मंत्री, मप्र के सीएम भी रहे) का इंदौर के मतदाताओं से किए वादे को पूरा करने का प्रमाण भी है।यही वजह है कि आंदोलन समिति से जुड़े सदस्य जितना श्रेय एससी शुक्ला को देते हैं उतना ही पीसी सेठी और शुक्ल मंत्रिमंडल में इंदौर का प्रतिनिधित्व करने वाले कृषि मंत्री (स्व) भागवत साबू को भी देते हैं। साबू ने सरकार तक इंदौर की जनभावना पहुंचाने के लिए सेतु का काम करने के साथ ही शुक्ल का मंजूरी देने के लिए मानस भी बनाया।
अभ्यास_मंडल के तत्वाधान में बनाई गई थी 14 सदस्यीय समिति।
नर्मदा लाओ आंदोलन 49 दिन चला था।पत्रकार कमलेश पारे के मुताबिक युवा बुद्धिजीवियों मुकुंद कुलकर्णी, सीपी शेखर, महेंद्र महाजन ने 14 लोगों की समिति बनाई इसमें महेश जोशी, सुभाष कर्णिक, पं कृपाशंकर शुक्ला, शशिकांत शुक्ल, विद्याधर शुक्ल, राकेश शर्मा, डॉ प्रकाश खराटे, उपेंद्र शुक्ल अप्पा, ओम प्रकाश साबू, कैलाश खंडेलवाल और शलभ शर्मा शामिल थे।
इंजीनियर आप्टे ने किया था ‘जलूद’ का चयन।
सुप्रसिद्ध इंजीनियर वीजी आप्टे ने एक माह से अधिक समय नर्मदा किनारे रह कर खोजबीन के बाद #जलूद को हर तरह से उपयुक्त पाया जहां बीते सौ वर्षों में भी जलस्तर एक समान रहा था। यहां से पानी भी पर्याप्त मिलता रहेगा और खर्च भी कम लगेगा यह उन्हीं का आंकलन था। उनके जलूद चयन की ही तरह भाप्रसे के सेवानिवृत्त अधिकारी पीएस_बाफना ने तकनीकी-वैज्ञानिक आधार पर एक ‘फीजिबिली’ और प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाई। बाद में राज्य सरकार ने इन्हीं बाफना की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई जिसने भविष्य की ‘सस्टेनेबिलिटी’ पर रिपोर्ट सौंपी थी।इनके साथ ही कामरेड होमी दाजी, राजेंद्र धारकर, सत्यभान सिंघल, कल्याण जैन, आदि विभिन्न दलों के नेता अपने राजनीतिक मतभेद भुलाकर आंदोलन के समर्थन में खड़े थे।
बिना शुल्क लिए सेवा दी पूर्व_न्यायाधीशों ने।
नर्मदा तो इंदौर आ गई लेकिन वहां से यहां तक पानी लाने में बिजली के भारी भरकम बिल का मामला आज तक अदालत में चल रहा है।अदालत में शहरवासियों का पक्ष रखने को लिए न्यायमूर्ति वीएस कोकजे ने याचिका तैयार की। सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति पीडी मूल्ये, जीएल ओझा, विद्युत मंडल के पूर्व अध्यक्ष पीएल नेने ने तकनीकी सहयोग दिया।वरिष्ठ अधिवक्ता जीएम चाफेकर ने कोर्ट में इंदौर का पक्ष रखा। (फेसबुक से साभार)