इंदौर : राधा गोरी नी कान्हा कालो रे, गरबो घूमे के बोल पर गरबा करते गुजराती कलाकारों को देखना मालवा उत्सव में पधारे इंदौर के कला प्रेमियों के लिए अनूठा अनुभव था। गरबे में कई रूप देखने को मिले जिसमें रंगरसिया, सनेड़ो ,रमझड ,क्रास, भरवाड़ी, ऐश्वर्या, कत्थक की झलक शामिल थे।
शिव आराधना ने जगाई आध्यात्मिक उल्लास की ज्योत।
अपनी 16 शिष्यों के साथ पद्मश्री डॉ. पुरु दाधीच की रचना पर उन्हीं के द्वारा कोरियोग्राफ किया हुआ शिव आराधना नृत्य बेहद मनोहारी बन पड़ा था। आंध्र प्रदेश के गरा गल्लू ने भी दर्शकों की खासी दाद बटोरी। जनजाति कलाकारों ने ढोल की थाप पर एक के ऊपर एक गुत्थमगुत्था होकर गुलाटी खाते हुए नृत्य प्रस्तुत किया।
लावणी, भगोरिया, ढिमसा, लम्बारडी आदि लोकनृत्यों की भी दी गई प्रस्तुति।
लोक संस्कृति मंच के संयोजक शंकर लालवानी ने बताया कि ओरछा के राम मंदिर की प्रतिकृति के रूप में बनाए गए मंच पर मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचल में किया जाने वाला सुप्रसिद्ध नृत्य भगोरिया हाथ में तीर कमान लेकर बीच-बीच में सीटी बजाते हुए खूब मस्ती में नाचते हुए एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत कर गया। तेलंगाना का सुप्रसिद्ध नृत्य लंबार्डी, जो बंजारा जनजाति द्वारा फसल कटने के बाद खुशी में किया जाता है प्रस्तुत किया गया। तेलंगाना के ही आदिलाबाद क्षेत्र में मथुरा से जाकर बसे जनजाति समूह ने माथुरी नृत्य प्रस्तुत किया । विशाखापट्टनम से आए हुए समूह ने वहां के पौरजा जनजाति का ढिम्सा नृत्य प्रस्तुत किया। मध्य प्रदेश की धूलिया जनजाति द्वारा नृत्य गुदुम बाजा शहनाई की धुन पर पेश किया गया। नासिक की टीम द्वारा तारपा नृत्य प्रस्तुत किया गया। मुंबई की टीम ने मराठी लोक संगीत का प्रसिद्ध नृत्य लावणी प्रस्तुत किया जिसमें वीर व श्रृंगार रस से ओतप्रोत भाव भंगिमाएं देखने को मिली।
स्वच्छता के पंच पर नृत्य प्रस्तुति।
स्थानीय कलाकार संतोष देसाई एवं साथियों ने इंदौर द्वारा स्वच्छता में जो पंच लगाया है, उसको लेकर क्लासिकल कत्थक मालवी गाने पर लाइव परफारमेंस दी गई जिसमें म्हारो प्यारो है इंदौर, सबसे न्यारो है इंदौर ,पूरे देश में नंबर वन है इंदौर ,पर सुंदर प्रस्तुतिकरण देखने को मिला।
जुगल जोशी एवं निवेश शर्मा ने बताया ने बताया कि दिनांक 27 दिसंबर को कला कार्यशाला दोपहर 2:00 से 4:00 तक लालबाग परिसर में होगी साथ ही नृत्य में गरबा, गणगौर, तेरहताली, कोरकु ,भगोरिया, मटकी आदि पेश किए जाएंगे।