इंदौर : लगता है बीजेपी के लिए सत्ता ही सर्वोपरि हो गई है। काँग्रेसयुक्त बीजेपी अपने उन नेता और कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर रही है, जिन्होंने पार्टी के बुरे समय में दरी बिछाने से लेकर बूथ पर डटे रहकर एक- एक वोट के लिए जद्दोजहद की। कई बरस पार्टी को देने वाले ये नेता व कार्यकर्ता सिर्फ इतना चाहते हैं कि आयातित नेताओं की मिजाजपुर्सी करने वाले सत्ता और संगठन के कर्ताधर्ता उनकी भी सुध ले। उमेश शर्मा जैसे कुछ नेता इस बारे में खुलकर बात करते हैं तो उन्हें अनुशासनहीन मान लिया जाता है और सफाई मांगी जाती है।
उमेश शर्मा को जारी किया गया नोटिस।
छात्र राजनीति से ही बीजेपी की पतवार थामकर उसे आगे बढाने के लिए अथक मेहनत करने वाले उमेश शर्मा की अपेक्षा केवल इतनी सी थी कि सत्ता और संगठन में पार्टी के उन कार्यकर्ताओं की उपेक्षा न हो जिन्होंने बीजेपी को मजबूती देने में अपना सबकुछ दिया हैं। जब ऐसा होते नहीं दिखा तो उन्होंने सोशल मीडिया पर जिम्मेदारों को आइना दिखाने की कोशिश की। हालांकि पार्टी अनुशासन का अनुपालन करते हुए उन्होंने खेद भी जता दिया पर पार्टी के कर्ताधर्ताओं को उनका मुखर होना रास नहीं आया। बीजेपी के संभागीय प्रभारी भगवानदास सबनानी ने उमेश शर्मा को नोटिस थमाकर 7 दिन के भीतर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को स्पष्टीकरण देने को कहा है। उनके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई की भी बात कही गई है।
बहरहाल,उमेश शर्मा अपनी सफाई में क्या कहेंगे और पार्टी उनके खिलाफ क्या एक्शन लेगी ये तो वक्त बताएगा लेकिन उमेश शर्मा अकेले नहीं हैं जो पार्टी में आयातित नेताओं को ज्यादा तवज्जो दिए जाने से नाराज हैं। ऐसे कई नेता व कार्यकर्ता हैं जो पार्टी का कांग्रेसीकरण होते देख दुःखी और असन्तुष्ट हैं।फर्क सिर्फ इतना है कि उन्हें पार्टी अनुशासन का हवाला देकर चुप करा दिया जाता है। अभी भले ही सत्ता और संगठन के कर्ताधर्ता आत्ममुग्ध होकर समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर रहे हों, पर उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए 2023 अब ज्यादा दूर नहीं है। चुनाव में अगर समर्पित कार्यकर्ताओं ने दूरी बना ली तो बीजेपी को वनवास भोगने की नौबत आ सकती है।