युवाओं को रोजगार लेने वाला नहीं रोजगार देने वाला बनना है।
देवी अहिल्या उत्सव समिति द्वारा शिक्षकों के लिए आयोजित की गई वक्तृत्व स्पर्धा
इंदौर : किसी भी देश के स्वाभिमान की रक्षा के लिए देश का स्वावलंबी होना अति आवश्यक है ।शिक्षा की कमी और जागरूकता के अभाव में आजादी के 75 वर्षों के बाद भी हम स्वावलंबी बनने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हमारे देश में योग्यता और संसाधनों की कमी नहीं है, शिक्षा और तकनीकि कमी ने इनका दोहन नहीं होने दिया। युवा रोजगारोन्मुखी हो रहे हैं। उन्हें तो स्वयं का उद्यम चलाकर रोजगार देने वाला बनना चाहिए। अब युवा स्वावलंबन की राह पर आगे बढ़ चला है। पढ़ेगा इंडिया तो बढ़ेगा इंडिया के वाक्य का अनुसरण कर युवा कौशल विकास, वोकल फार लोकल पर काम कर रहे हैं आने वाला भारत निश्चित ही स्वावलंबी होगा इसके लिए प्रत्येक नागरिक को सहभागी बनना होगा। ये प्रेरक विचार देवी अहिल्याबाई के 227 वे पुण्यस्मरण के अवसर पर अहिल्या उत्सव समिति द्वारा आयोजित वक्तृत्व स्पर्धा में शिक्षकों द्वारा व्यक्त किए गए। विषय था “आने वाला कल स्वावलंबी भारत का है”।
शिक्षक अब्बास अली बड़नगर वाला कहते हैं कि ईश्वर उसी की सहायता करते हैं जो स्वयं की सहायता करते हैं। अब भारत को अपने ही पंखों पर उड़ान भरना है। प्रणामिका तिवारी का कहना था कि नई शिक्षा नीति उन लोगों के लिए अनंत आकाश खोलती है जो असफल हो जाते हैं। शिक्षिका शेफाली का कहना था कि कृषि में 1990 तक आते-आते हमने आत्मनिर्भरता का शिखर छू लिया था। हम निर्यात करने लगे थे। हमारा प्राचीन भारत विश्व गुरु था लेकिन हमने विदेशी मॉडल को विकास मान लिया। भारत के स्वावलंबी होने में एक महत्वपूर्ण बाधा उच्च शिक्षा का महंगा होना है। हमने वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत पर कार्य करके ऊर्जा के क्षेत्र में 2047 तक आत्मनिर्भर होने का लक्ष्य रखा है। जागृति व्यास का कहना था स्वावलंबन के लिए हमें स्वदेशी व स्थानीय को महत्व देना होगा। विकेंद्रीकरण, सहकारिता, कौशल विकास पर जोर देना होगा। डाटा साइंस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आदि को विकसित करना होगा। शिक्षक जयदीप ठाकुर का मानना था कि भारत आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ चला है। कोरोना वायरस ने जब पूरे विश्व में त्राहि-त्राहि मचाई थी तो भारत बायोटेक ने कोवैक्सीन का निर्माण कर विश्व को राहत प्रदान की थी। रक्षा के क्षेत्र में ब्रह्मोस,तेजस इसके उदाहरण हैं। सपना तिवारी कहती है कि स्वावलंबी भारत आत्ममुग्धता का नहीं आत्म चिंतन का विषय है। स्वावलंबन के लिए आवश्यक है सक्षम अर्थव्यवस्था ,प्रौद्योगिकी, शिक्षा, जनसांख्यिकी एवं व्यापार विनिमय, इन सभी में भारत मजबूती दिखा रहा है जो उसको स्वावलंबन की दिशा पर चलने की राह दिखा रहा है ।अर्चना शर्मा का कहना था कि प्राचीन भारत में गांव आत्मनिर्भर हुआ करते थे। गणित में शुन्य से लेकर पाई भारत ने दिया। विश्व को योग भारत की देन है। चिकित्सा में सुश्रुत संहिता जाना माना नाम है।
अहिल्या उत्सव समिति की प्रतियोगिता प्रमुख विनीता धर्म संयोजक रचना गुप्ता, शांता सोनी ने बताया कि प्रतियोगिता में 25 विद्यालयों के 25 शिक्षकों ने भाग लिया मुख्य अतिथि के तौर पर पूर्व कुलपति नरेंद्र धाकड़ ,कवि श्यामसुंदर पलोड शामिल हुए। निर्णायक के रूप में माया इंगले, डॉक्टर संगीता नरूका एवं डॉ प्रज्ञा शुक्ला मौजूद थी। प्रतियोगिता में प्रथम रामगोपाल पोरवाल, द्वितीय प्रवीण कुमार मंडलोई तृतीय श्रीमती प्रणामिका तिवारी, चतुर्थ श्रीमती कुसुम त्यागी एवं जागृति व्यास विजेता रहे ।
कार्यक्रम में श्यामसुंदर पलोड ने कहा कि देश की नारी शक्ति ही देश को प्रगति के मार्ग पर ले जा सकती है। देवी अहिल्या का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि देवी अहिल्या स्वयं नारी शक्ति की स्व निर्भरता के लिए प्रयास करती रही। इस अवसर पर राम मुदडा सुधीर देडगे , सुधीर दांडेकर, नितिन तापड़िया ,राखी परिहार, सुधा शर्मा ,विनीता खंडेलवाल, सरिता मंगवानी, राजेंद्र कश्यप, रेखा खत्री आदि उपस्थित थे।