परमानंद का अनुभव कराता है रंगों की सामूहिक मस्ती का यह पर्व।
समग्र समाज को तनाव से बाहर लाने का है अदभुत पर्व।
🔺डॉ. अनिल भदौरिया 🔺
किसी भी समाज का दर्पण होता है, पुरातन काल से चली आ रही उसकी परंपरा और इसी अनुक्रम में मालवा अंचल में रंगपंचमी का त्यौहार अब विश्व की अनमोल धरोहर बनने के स्तर पर आ पहुंचा है जो किसी भी स्थिति में स्पेन के टोमेटीना या टमाटर के त्योहार या ब्राज़ील के कार्निवल से उत्तम है।
रविवार 12 मार्च 2023 को रंग पंचमी के इंदौर के केंद्र बिंदु मल्हारगंज पर इंडियन मैडिकल एसोसिएशन इंदौर शाखा द्वारा स्थापित अस्थायी मंच पर सम्मिलित होने का अनुपम सौभाग्य प्राप्त हुआ।
विभिन्न समूहों के सक्रिय सहयोग से जिस प्रकार से 5 दिनी रंगपर्व (होली) के अंतिम दिन का जो दृश्य उपस्थित होता है,वह कल्पना से परे है। कोई मूवी कैमरा या फोटोग्राफ इस उत्सवी समारोह के विहंगम दृश्य को कैद करके वो अनुभव नहीं करा सकता जो मल्हारगंज से राजवाड़े तक की इस यात्रा में महसूस होता है।
यह तो तय है कि मस्ती का मद, किसी नशीले पदार्थ से नहीं उत्पन्न होता, बल्कि यह स्वतः स्फूर्त, अंतर्मन से उपस्थित होता है। इसका अलौकिक दर्शन रंगपंचमी के दिन इंदौर की इस मुख्य सड़क पर दिखता है जहां सैकड़ों नहीं, हजारों स्त्री,पुरुष और बच्चों का समूह अपने श्वेत और रंग-बिरंगे परिधानों में उपस्थित होता है। अपने हाथों में विभिन्न रंग-गुलाल लिए ये लोग एक दूसरे पर मलते और अठखेलियां करते दिखाई पड़ते हैं। यहां बड़े और छोटे टैंकर में भरे रंगीन पानी का वाटर कैनन से छिड़काव का दृश्य भी उपस्थित होता है जो अपने रंगीन पानी से उपस्थित जनसमूह को सर से पांव तक जल से सराबोर कर देता है। पूरी यात्रा मे ऐसे दृश्य प्रस्तूत हो रहे थे जो पहले कभी देखे न गये हों।
2 किलोमीटर लम्बी इस यात्रा में अकोला से आए धार्मिक ढोल के दल का प्रदर्शन और शिव के घंटानाद का घोष एक ऐसा ही दृश्य उपस्थित कर रहा था जैसे ब्रह्मांड की दसों दिशाओं में ओमनुमा ध्वनि अंकित हो रही है।
श्वेत और रंगीन वस्त्र धारण किए बड़े, छोटे उम्र के इंदौर के नागरिक कुछ अकुलाते कुछ संकुचाते जब इस रंगपंचमी की गेर की धारा में सम्मिलित होते हैं तो एक अनजान सा डर उनके मन में रहता है जो ढोल संगीत और मस्ती के शंखनाद के कान में घुलते ही बिंदास सहभागी के रुप में परिवर्तित हो जाता है। अनजान व्यक्ति पर भी पानी के गुब्बारे फेंकने, साथी के गालों में गुलाल और रंग मलते, बालों में सुखा रंग उड़ेलते, खुशी से मित्रों के गले लगते लगाते, प्लास्टिक की थैली में रखे मोबाइल फ़ोन से फोटो खिंचवाते, पानी उछालते और न जाने ऐसे कितने ही दृश्य बरबस मुस्कान लहरा देते हैं चेहरों पर।
मस्ती और मौज की शिवनुमा प्रस्तुति की इस अद्वितीय घटना को शब्दों में बांध पाना जटिल है परंतु कुछ-कुछ यह परमानंद जैसा प्रतीत होता है।
लगभग 200 बरस से मनाए जा रहे त्योहार के मस्ती-मद भरे स्वरूप का मुख्य कारण संभवत: साल में एक बार रंगों की गेर से समाज का रेचन किया जाना है जो ना केवल तनाव से मुक्त कर देता है बल्कि एक अनुपम साक्षात्कार भी इस घटनाक्रम से करा देता है। संभवतः हर बरस, जीवन में पहली बार हुआ है का मूल्यवान अनुभव करवा देता है।
विचार में निमग्न हो गया मैं यह सोच कि इस मस्ती स्वरूपा त्यौहार का उददेश्य क्या है?
क्या यह समग्र समाज के तनाव को कम करने में सहायक है ?
क्या यह एक सुधिमन या बदिमन को नितांत शून्य भाव में प्रस्तुत कर देता है?
क्या इस रंगों के त्योहार का यह स्वरूप, तनावहीनता को पाने के एक रास्ता है जो आपको धकेल देता है एक अद्भुत अपार मस्ती के जनसमूह में जहां राजवाड़े पर आपके पैर नहीं चलते बस उपस्थित जनसमूह में आप एक परमाणु की भान्ति बहते चले जाते हैं?
“रंगो से सराबोर हो,
आश्चर्य से आकन्ठ हो,
तुष्टी से संतुष्ट हो और परमानंद की क्षणिक अवस्था हो।”
लौटते समय यही भाव रह जाता है, चैरेवति चैरेवति।
(लेखक डॉ. अनिल भदौरिया आईएमए इंदौर शाखा के अध्यक्ष हैं।)