इंदौर: स्टेट प्रेस क्लब मप्र द्वारा आयोजित तीन दिवसीय भारतीय पत्रकारिता महोत्सव में विभिन्न विषयों पर देशभर से आए दिग्गज पत्रकार विचार मंथन कर रहे हैं। महोत्सव के पहले दिन उद्घाटन सत्र में मीडिया और समाज, दरकता विश्वास विषय पर वक्ताओं ने बेबाकी के साथ अपनी बात रखी। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और महापौर पुष्यमित्र भार्गव भी इस दौरान मौजूद रहे।
स्वागत भाषण देते हुए स्टेट प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल ने विषय प्रवर्तन किया।
लोगों का दरकता विश्वास चिंतन – मनन का विषय।
संदर्भित विषय पर हैदराबाद से आई देश के सबसे बड़े न्यूज नेटवर्क न्यूज 18 की एंकर सना परवीन वारिस ने जोरदार ढंग से अपने विचार व्यक्त करते हुए टीवी पत्रकारिता की कमियों और खूबियों को बखूबी रेखांकित किया। उन्होंने कहा, आज के दौर में पत्रकारिता पैशन से फैशन की ओर बढ़ रही है। ऐसे दौर में हमें खुद को टटोलने की जरूरत है।
ये सही है की इक्कीसवीं सदी में पत्रकारिता ने बुलंदियों के नए शिखर छुए हैं। लोकतंत्र को बचाए रखने के साथ लोगों के हक की लड़ाई लड़ने का काम मीडिया करता है। मीडिया सरकार और समाज के बीच सेतु का काम करता है लेकिन ये सेतु अब टूल बनकर रह गया है। फेक न्यूज ने लोगों के मीडिया के प्रति भरोसे को कम किया है। सना ने महिला पत्रकारों को समुचित स्थान न मिलने पर भी सवाल उठाया। उनका कहना था कि जेंडर के आधार पर नहीं लेकिन काबिलियत के आधार पर महिलाओं को उचित अवसर मिलने चाहिए। उन्होंने महिलाओं के हक में चंद लाइनें भी पेश की।
तिरे माथे पे ये आंचल बहुत ही खूब है लेकिन,
तू इस आंचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था..
सना ने मीडिया के प्रति लोगों का भरोसा कम होने की वजह
पत्रकारिता के खेमें में बंट जाने और जनता से जुड़े मुद्दों को तरजीह न मिलना बताया। उन्होंने कहा कि खबरों के सिलेक्शन से लेकर सवाल तक में तब्दीली आई है।जो सवाल सत्ता से पूछे जाने चाहिए वो विपक्ष से पूछे जा रहे हैं। सना ने कहा कि मीडिया के प्रति लोगों के दरकते विश्वास को चिंतन और मनन की जरूरत है।
अपनी बात को सना ने एक कविता के माध्यम से विराम दिया।
“सुबह हो या शाम हो, तुम्हारा काम ज्ञान हो
नायाब, अंदाज ए गुफ्तगू की हाथ में कमान हो
किधर चले हो ,चल पड़े हो, आओ तो इधर जरा,
हाथ में कलम थमाके,कहते हो मत लिखो ..
आवाज़ में हो खनखनाहट,
जिसमें तुम महान हो
चेहरा हो खिला खिला, फूल तुम जहान हो
ज़रा ज़रा सी बात पर, हुडकियों की ये धरा, हाथ में कलम थमाके, कहते हो मत लिखो..
हर इल्म से हो आशना, जिसके तुम मचान हो
गलत, सही, गलत, की तुमको
पहचान हो
क्यूं पड़े हो इस बहस में, कोई तो होगा डरा
हाथ में कलम थमा के कहते हो मत लिखो….