इंदौर : वीर सावरकर को लेकर राहुल गांधी से लेकर तमाम कांग्रेसी नेता अकसर बयानबाजी करते रहते हैं। अक्सर ये आरोप लगाया जाता है की सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी। उन्हें लेकर कई भ्रांतियां भी फैलाई जाती है। ऐसे में सानंद न्यास ने हाल ही में अपने अनुउपक्रम फुलोरा के तहत इतिहास के गहरे अभ्यासक ,चिंतक और लेखक पार्थ बावस्कर का ‘साहसी सावरकर’ विषय पर दो दिवसीय व्याख्यान कार्यक्रम जाल सभागृह में आयोजित किया। युवा पार्थ क्रांतिकारियों पर अपने धाराप्रवाह संबोधन के लिए प्रसिद्ध हैं।उन्होंने इंग्लिश में सुपर मेन सावरकर नामक किताब लिखी है। यही नहीं अंडमान स्थित सेल्यूलर जेल में सावरकर पर वे बीते छह वर्षों से व्याख्यान दे रहे हैं।
पार्थ बताते हैं कि वीर सावरकर के बारे में हमेशा भ्रांतियां फैलाकर भारत की स्वतंत्रता में उनके योगदान को कमतर आंकने की कोशिश की गई। उनके बारे गलत बातें कहीं गई।जबकि सावरकर का पूरा जीवन देश के लिए समर्पित रहा। अंग्रेजों की कैद में वे 27 बरस तक रहे। वे अकेले ऐसे स्वतंत्रता सेनानी रहे जिन्होंने दो बार कालापानी की सजा भुगती। देश उनके लिए सर्वोपरि रहा। तमाम क्रांतिकारियों के वे प्रेरणास्रोत थे।
अंडमान की सेल्यूलर जेल में भोगी अंग्रेजों की अमानवीय यातनाएं।
पार्थ ने अपने धाराप्रवाह उद्बोधन में कहा कि विनायक दामोदर सावरकर युगदृष्टा और दूरदृष्टि रखने वाले महामानव थे। उन्होंने दो बार कालापानी की सजा भुगती। अंडमान स्थित सेल्यूलर जेल आज भी वीर सावरकर के देश के लिए किए गए त्याग और बलिदान की गवाही देती है। पार्थ ने अंडमान जेल में अंग्रेजों द्वारा वीर सावरकर को दी गई अमानवीय यातनाओं का वर्णन किया तो उपस्थित श्रोताओं के रोंगटे खड़े हो गए। पार्थ ने कहा कि अंग्रेजों के भारी अत्याचार भी सावरकर को उनके लक्ष्य से डिगा नहीं पाए। करीब नौ बरस तक वे सेल्यूलर जेल में रहे। बाद में उन्हें रत्नागिरी की जेल में शिफ्ट कर दिया गया।
क्रांतिकारियों के प्रेरणास्त्रोत थे सावरकर।
पार्थ ने अपने प्रभावी उद्बोधन में कहा कि वीर सावरकर भगत सिंह, मदनलाल ढींगरा सहित कई क्रांतिकारियों के प्रेरणास्रोत थे। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने सावरकर से मुलाकात के बाद उनसे प्रेरित होकर ही आजाद हिंद फ़ौज का गठन किया था।
स्वतंत्रता आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया।
पार्थ ने कहा कि ये सावरकर ही थे, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया। जहाज से छलांग लगाने के बाद वे फ्रांस के एक द्वीप पर पहुंच गए थे लेकिन ब्रिटेन की पुलिस ने वहां तैनात फ्रांस के सुरक्षा कर्मियों को घूस देकर सावरकर को पुनः हिरासत में ले लिया। ब्रिटेन ने ऐसा कर अंतरराष्ट्रीय कानुनों का उल्लंघन किया था। इस मामले में फ्रांस के तत्कालीन रक्षा मंत्री को इस्तीफा तक देना पड़ा था। हालांकि सावरकर की समुद्र में लगाई गई छलांग की खबर दुनियाभर के अखबारों की सुर्खियां बनीं और पूरी दुनिया को भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की जानकारी मिली।
सावरकर द्वारा माफी मांगने की बात गलत।
पार्थ ने जोर देकर कहा कि वीर सावरकर द्वारा अंग्रेजों से माफी मांगने की बात जबरन फैलाया गया झूठ है। सावरकर ने कैदियों के अधिकारों को लेकर आवाज उठाई थी और अंग्रेज सरकार को पत्र लिखे थे। उन्हें माफिनामें से जोड़ देना सही नहीं है।
अस्पृश्यता दूर करने के लिए किया काम।
पार्थ बावस्कर ने सावरकर के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि महाराष्ट्र के रत्नागिरी में रहते हुए उन्होंने अस्पृश्यता के खिलाफ लड़ाई लड़ी और दलितों को कुएं से पानी भरने व अन्य बच्चों के साथ बैठकर शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार दिलवाया। सावरकर अच्छे कवि और साहित्यकार भी थे। उन्होंने जेल में रहते हुए कई पुस्तकें लिखीं।
आजादी के बाद भी तीन बार कैद किए गए सावरकर।
पार्थ ने कहा कि इसे विडंबना ही कहा जाएगा की आजादी के बाद भी सावरकर का संघर्ष खत्म नहीं हुआ। तत्कालीन सरकारों ने उन्हें तीन बार जेल में डाला। हर बार वे निर्दोष होकर बाहर निकले।
मौत को खुद लगाया गले।
पार्थ ने कहा कि सावरकर ने मौत की राह नहीं चुनी बल्कि खुद आगे बढ़कर मौत को गले लगाया। उन्होंने अन्न, जल का त्याग कर धीरे – धीरे मौत की ओर कदम बढ़ाए और अंततः 26 फरवरी 1966 को देहत्याग दिया।
पार्थ ने कहा कि सावरकर के जीवन चरित्र और देश की आजादी में उनके अतुलनीय योगदान को जन- जन तक पहुंचाने का उन्होंने बीड़ा उठाया है। वे व्याख्यानों के अलावा अंडमान की सेल्यूलर जेल पर वे युवाओं के लिए शिविर लगाकर वीर सावरकर के बारे में उन्हें अवगत कराते हैं।